वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...

Published: Thursday, Nov 14,2013, 18:16 IST
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पटना के ऐतिहासिक गांधी मैदान में श्री नरेन्द्र मोदी की रैली में हाल ही में हुये बम धमाकों, जिसमें कि छ: लोगों को जान गवांनी पड़ी और सौ के करीब लोग घायल हुये, ने तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियों की अल्पसंख्यक तुष्टिकरण की वोट बैंक की उस राजनीति को सामने ला दिया, जो कि राष्ट्रीय हित को कहीं पीछे धकेल देती है। जब नरेन्द्र मोदी यह कहते हैं कि अगले आम चुनाव कांग्रेस की ओर से इंडियन मुजाहिदीन और सीबीआई द्वारा लड़े जायेंगे, तो वो एक ऐसे सच को सामने लाते हैं, जिसका सामना किया जाना आवश्यक है।

In English : Vote Bank Politics assumes a Jehadi Avataar

अब यह स्पष्ट हो चुका है कि, असलियत को सामने लाने वाले उस दु:खद दिन, जिन लोगों ने पटना में बम ब्लास्ट की योजना बनाई और इसे क्रियान्वित किया, वो जेहादी आतंकवादी यासीन भटकल, जोकि अभी NIA की हिरासत में है , के अत्यंत निकट के सहयोगी थे। यह भी स्पष्ट हो गया है कि यासीन और उस के सहयोगी भारत भर में आतंक फैलाने के लिये बिहार और झारखंड में कई युनिट चला रहे हैं।

इस संदर्भ में यह समझ पाना और भी कठिन हो जाता है कि क्यों बिहार की तथाकथित धर्म-निरपेक्ष सरकार ने यासीन भटकल को बिहार पुलिस की कस्टडी में रख कर ही उस से पूछताछ करने को ठीक नहीं समझा, जब कि यासीन को इसी बिहार पुलिस ने गिरफ्तार किया था। नेपाल-बिहार सीमा के पास हुई यासीन भटकल की गिरफ्तारी की प्राथमिक सूचनाओं से पता चलता है कि इस गिरफ्तारी में शामिल वीर पुलिस जवानों ने अपने इस ऑपरेशन की जानकारी अफसरों और राजनैतिक नेताओं को नहीं दी थी, और शायद इसीलिये वो इसमें सफल भी रहे। स्पष्ट रूप से, भटकल को NIA को सौंपने की अनुचित जल्दबाजी के पीछे वोट-बैंक की राजनीति ही तो है।

अब यह भी स्पष्ट हो चुका है कि बोध-गया में हुए बम धमाकों के लिये भी भटकल के यही जेहादी साथी जिम्मेदार थे, जिसके लिए कि टी वी पर बार-बार एक वीडियो-क्लिप में एक साधु को संदिग्ध के तौर पर दिखाया जाता रहा। यह सब खुलासा, बिहार सरकार द्वारा भटकल से पूछताछ से पीछे हटने को, लापरवाही का आपराधिक कृत्य बना देता है। लोगों में यह भ्रम पैदा करने का प्रयत्न करना कि, बोध गया धमाकों के पीछे एक साधु को संदिग्ध पाया गया है, भी इस तथाकथित धर्म-निरपेक्ष वोट-बैंक की राजनीति का ही हिस्सा प्रतीत होता है।

आपको याद होगा कि जब खतरनाक आतंकवादी यासीन भटकल को पकड़ा गया था, तो उत्तर-प्रदेश में शासन कर रही समाजवादी पार्टी के एक अति वरिष्ठ नेता ने भटकल के पक्ष में यह बयान दिया था कि उसे सिर्फ इसलिए गिरफ्तार नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि वो मुस्लिम है। यह वोट बैंक की राजनीति का एक और उदाहरण है।

हाल में हुई एक रैली में, कांग्रेस के उपाध्यक्ष, श्री राहुल गांधी ने कहा था कि एक IB अधिकारी उनके दफ्तर में आया था और उसने बताया कि पाकिस्तान की ISI मुजफ्फरनगर के दंगा ग्रस्त क्षेत्र के 10-12 मुस्लिम युवकों के सम्पर्क में है। एक बार फिर से, यह वोट-बैंक की राजनीति का ही उदाहरण तो है।

हाल ही में हुए खुलासे यह बताते हैं कि जब अजमल कसाब और उसके साथी जेहादियों ने 26/11 को मुम्बई में हमला किया था, तो उन्हें स्थानीय सहायता प्राप्त थी। क्योंकि महाराष्ट्र में चुनाव होने वाले थे, इसलिये हत्यारों को प्राप्त इस स्थानीय सहायता की जानकारी को दबा दिया गया और ईमानदारी से छानबीन नहीं की गई। यह भी वोट-बैंक की राजनीति ही तो थी।

यह सब जानते हैं कि डेविड कोलमैन हैडली, जिसने लश्कर-ए-तयबा के लिए 26/11 में निशाना बने  विभिन्न ठिकानों की बार-बार रेकी की थी, वो महेश भट के पुत्र के काफी निकट था और वो निशाना बने विभिन्न होटलों में उसके साथ गये थे।

इसी प्रकार, इस तथ्य के साबित होने बावजूद भी कि 1993 के बम्बई काण्ड में वो आतंकवादियों से मिला हुआ था, संजय दत्त पर POTA नहीं, बल्कि आर्म्स एक्ट के अंतर्गत मुकद्दमा चलाया जा रहा है, भी अल्पसंख्यक-तुष्टिकरण का की उदाहरण है, क्योंकि उसके पिता काग्रेस पार्टी के सांसद थे और दाऊद इब्राहिम के निकट थे।

जो लोग इस प्रकार की वोट-बैंक की राजनीति कर रहे हैं, ने हाल ही एंटी-कम्युनल फ्रंट बनाने का अति हास्यास्पद प्रयास किया।

जब तथाकथित धर्म-निरपेक्ष पार्टियां, बिना यह बताये कि पिछले 11 वर्षों में वहां एक भी साम्प्रदायिक दंगा नहीं हुआ, गुजरात में हुये 2002 के दंगों का राग अलापती हैं तो यह मुस्लिम समुदाय को डरा कर उनके वोट हासिल करने की कोशिश होती है। सत्य तो यह है कि देश में अधिकतर साम्प्रदायिक दंगे कांग्रेस पार्टी के शासन में हुये हैं और इन दंगों में कहीं अधिक लोग मारे गये हैं। उत्तर प्रदेश में हर दिन दंगे की स्थिति पर इन शक्तियों का ध्यान नहीं जाता।

ऐसा ही एक मामला श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में दिल्ली और उत्तर भारत के दूसरे राज्यों में हुए सिक्ख हत्याकांड का है, जोकि सीधा कांग्रेस पार्टी के नेताओं से जुड़ा है और जिसमें गुजरात दंगों से कहीं अधिक 2733 मौतें हुई। 2733 लोगों की मौत के बावजूद भी किसी का दोषी सिद्ध न होना, पीड़ितों के जख्मों पर नमक छिडकने के समान है।

यहाँ तक कि गुजरात में ही कांग्रेस शासन के दौरान सूरत में 1992 में और अहमदाबाद में 1985 व 1969 में दंगे हुये, जिस में एक हजार के करीब लोग मारे गये, पर वोट-बैंक की राजनीति में इनका जिक्र कभी नहीं आता।

ऐसे ही, मुरादाबाद, यूपी में 1989 में (1500 मौतें), भागलपुर,बिहार में 1989 में (1161 मौतें) और नेल्ली, असम में 1983 में (1819 मौतें) दंगे कांग्रेस शासन के दौरान ही हुये थे, पर वोट-बैंक की इस राजनीति में कांग्रेस पार्टी को कभी साम्प्रदायिक नहीं कहा जाता।

गुजरात के मुस्लिम भाईयों ने श्री नरेंद्र मोदी के मुख्यमंत्री काल में अतीव तरक्की की है और वो उनके मुख्यमंत्री बने रहने से बेहद खुश हैं, इस सच्चाई ने तथाकथित धर्म-निरपेक्ष पार्टियों को हिला कर रख दिया है। देश के आज़ाद होने के बाद से जो धोखा वो मुस्लिम समाज को देते रहें है, अब उसका पर्दाफ़ाश हो चुका है। मुस्लिम अब भाजपा को और नरेंद्र मोदी को विकास के नाम पर वोट दे रहे हैं, क्योंकि वो इन धर्म-निरपेक्ष पार्टियों के खेल को समझ चुके हैं, जिन्होंने उनके समुदाय के लिये कुछ भी ठोस नहीं किया है।

इसलिए अब ये तथाकथित धर्मनिरपेक्ष पार्टियां अपनी पूर्व पद्धति को छोड़ रही हैं और हम चुनाव रैलियों के दौरान हो रही अप्रत्याशित हिंसा को देख रहे हैं। यह तो सौभाग्य था कि नरेंद्र मोदी की पटना रैली  के दौरान मंच के निकट रखा बम फटा नहीं, नहीं तो भाजपा के सारे नेतृत्त्व की ही हत्या हो चुकी होती। यह हिंसा की राजनीति, जो अपने राजनैतिक स्वार्थों को पूरा करने के लिए जेहादी आतंकवादियों का इस्तेमाल करती है और असल में जेहादियों के प्रति ढील बरत कर और उनके खिलाफ़ कार्यवाही न करके, उन्हें बढावा देती है, का पर्दाफाश अवश्य होना चाहिये और सभी सही विचारों वाले लोगों द्वारा उन्हें नकारा जाना चाहिये।

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