जम्मू-कश्मीर में नैशनल कॉन्फ्रेंस के नेता हाजी यूसुफ शाह की संदिग्ध हालात में मौत मामले में एक चश्मदीद के खुलासे से मुख्यम..
आंखों में उम्मीद के सपने, नयी उड़ान भरता हुआ मन, कुछ कर दिखाने का दमखम और दुनिया को अपनी मुट्ठी में करने का साहस रखने वाला युवा कहा जाता है। युवा शब्द ही मन में उडान और उमंग पैदा करता है। उम्र का यही वह दौर है जब न केवल उस युवा के बल्कि उसके राष्ट्र का भविष्य तय किया जा सकता है। आज के भारत को युवा भारत कहा जाता है क्योंकि हमारे देश में असम्भव को संभव में बदलने वाले युवाओं की संख्या सर्वाधिक है। आंकड़ों के अनुसार भारत की 65 प्रतिशत जनसंख्या 35 वर्ष आयु तक के युवकों की और 25 साल उम्रं के नौजवानों की संख्या 50 प्रतिशत से भी अधिक है। ऐसे में यह प्रश्न महत्वपूर्ण है कि युवा शक्ति वरदान है या चुनौती? महत्वपूर्ण इसलिए भी यदि युवा शक्ति का सही दिशा में उपयोग न किया जाए तो इनका जरा सा भी भटकाव राष्ट्र के भविष्य को अनिश्चित कर सकता है।
आज का एक सत्य यह भी है कि युवा बहुत मनमानी करते हैं और किसी की सुनते नहीं। दिशाहीनता की इस स्थिति में युवाओं की ऊर्जाओं का नकारात्मक दिशाओं की ओर मार्गान्तरण व भटकाव होता जा रहा है। लक्ष्यहीनता के माहौल ने युवाओं को इतना दिग्भ्रमित करके रख दिया है कि उन्हें सूझ ही नहीं पड़ रही कि करना क्या है, हो क्या रहा है, और आखिर उनका होगा क्या? आज से दो-तीन दशक पूर्व तक साधन-सुविधाओं से दूर रहकर पढ़ाई करने वाले बच्चों में ‘सुखार्थिन कुतो विद्या, विद्यार्थिन कुतो सुखम्’ के भावों के साथ जीवन निर्माण की परंपरा बनी हुई थी। और ऐसे में जो पीढ़ियाँ हाल के वर्षों में नाम कमा पायी हैं, वैसा शायद अब संभव नहीं। अब हमारे युवाओं की शारीरिक स्थिति भी ऐसी नहीं रही है कि कुछ कदम ही पैदल चल सकें। धैर्य की कमी, आत्मकेन्द्रिता, नशा, लालच, हिंसा, कामुकता तो जैसे उनके स्वभाव का अंग बनते जा रहे हैं। गत सप्ताह दिल्ली के एक निगम पार्षद के युवा हो रहे पुत्र की मृत्यु ने झकझोड़ दिया।
जानकारी के अनुसार उस बालक की मित्र मंडली उन तमाम व्यसनों से घिरी थी जिसे अब बुरा नहीं, आधुनिकता का पर्याय माना जाता है। वह किशोर अभी स्कूली छात्र ही था कि नशे का आदी हो गया। पिता समाज की सेवा में व्यस्त रहे इसलिए पुत्र को पर्याप्त समय नहीं दे सके। परिणाम ऐसा भयंकर आया कि वे अपने इकलौते पुत्र से वंचित हो गए। केवल उस एक बालक की बात नहीं, एक ताजा शोध के अनुसार अब युवा अधिक रूखे स्वभाव के हो गए हैं। वह किसी से घुलते-मिलते नहीं। इन्टरनेट के बढ़ते प्रयोग के इस युग में रोजमर्रा की जिंदगी में आमने-सामने के लोगों से रिश्ते जोड़ने की अहमियत कम हो गई है। मर्यादाहीनता के इस भयानक दौर में हम अनुशासन की सारी सीमाएँ लांघ कर इतने निरंकुश, स्वच्छन्द, स्वेच्छाचारी और उन्मुक्त हो चले हैं कि अब समाज को किसी लक्ष्मण रेखा में बाँधना शायद बहुत बड़ा मुश्किल हो गया है।
क्या यह सत्य नहीं कि आज की पीढ़ी जो कुछ सीख पायी है उसमें हमारा दोष भी सर्वाधिक है। इन परिवेशीय हालातों में अंकुरित और पल्लवित नई पीढ़ी को न संस्कारों की खाद मिल पायी, न स्वस्थ विकास के लिए जरूरी वातावरण। मिला सिर्फ प्रदूषित माहौल और नकारात्मक भावभूमि। आज का युवा अधिकतर मामलों में नकारात्मक मानसिकता के साथ जीने लगा है। उसे दूर-दूर तक कहीं कोई रोशनी की किरण नज़र नहीं आ रही। वर्तमान स्थिति के लिए हमारे स्वार्थ और समझौते जिम्मेदार हैं जिनकी वजह से हमने सिद्धान्तों को छोड़ा, आदर्शों से किनारा कर लिया और नैतिक मूल्य तक दाँव पर लगा दिए। और वे भी किसलिए, सिर्फ और सिर्फ अपनी वाहवाही कराने या अपने नाम से माल बनाने। हालात भयावह होते जा रहे हैं, हमें इसका अंदाजा नहीं लग पा रहा है क्योंकि हमारी बुद्धि परायी झूठन खा-खाकर भ्रष्ट हो चुकी है।
आज की शिक्षा ने नई पीढ़ी को संस्कार और समय किसी की समझ नही दी है। यह शिक्षा मूल्यहीनता को बढाने वाली साबित हुई है। अपनी चीजों को कमतर करके देखना और बाहरी सुखों की तलाश करना इस जमाने को और विकृत कर रहा है। परिवार और उसके दायित्व से टूटता सरोकार भी आज जमाने के ही मूल्य है। अविभक्त परिवारों की ध्वस्त होती अवधारणा, अनाथ माता-पिता, फ्लैट्स में सिकुड़ते परिवार, प्यार को तरसते बच्चे, नौकरों, दाईयों एवं ड्राईवरों के सहारे जवान होती नई पीढ़ी हमें क्या संदेश दे रही है! यह बिखरते परिवारों का भी जमाना है। इस जमाने ने अपनी नई पीढ़ी को अकेला होते और बुजुर्गों को अकेला करते भी देखा है। बदलते समय ने लोगों को ऐसे खोखले प्रतिष्ठा में डूबो दिया है जहां अपनी मातृभाषा में बोलने पर मूर्ख और अंग्रेजी में बोलने पर समझदार समझा जाता है।
संचार क्रांति का दुरपयोग चरम पर है। मोबाइल हर युवा के हाथ में ही नहीं, बल्कि प्राईमरी स्कूल से ही बस्ते में पहुंच अबोध बच्चों की जिन्दगी का अहम हिस्सा बन रहा है। एस.एम.एस. और वीडियो का शौक इतना बढ़ चुका है कि वे उसी में मस्त हैं और अपने भविष्य को लेकर बेखबर। ऐसे में पढ़ाई का क्या अर्थ रह जाता है। हमारे मन-मस्तिष्क पर इंटरनेट के प्रभावों विषय पर निकोलस कार की चर्चित पुस्तक है द शैलोज. इसे पुलित्जर पुरस्कार के लिए नामित भी किया गया था. का मत है कि इंटरनेट हमें सनकी बनाता है, हमें तनावग्रस्त करता है, हमें इस ओर ले जाता है कि हम इस पर ही निर्भर हो जायें। चीन, ताइवान और कोरिया में इंटरनेट व्यसन को राष्ट्रीय स्वास्थ्य संकट के रूप में लिया है और इससे निबटने की तैयारी भी शुरू कर दी है।
भौतिकवाद की अंधी दौड़ मे कहीं न कहीं युवा भी फंसता चला जा रहा है। पश्चिमीकरण के पहनावे और संस्कृति को अपनाने में उसे कोई हिचक नहीं होती है। आज किशोर भी 14-15 वर्ष की आयु में ही ड्रग्स, और डिस्कों का आदी हो रहा है। नशे की बढ़ती प्रवृत्ति ने हत्या और बलात्कार जैसे गंभीर अपराधों को जन्म दिया है। जिससे इस युवा शक्ति का कदम अधंकार की तरफ बढता हुआ दिख रहा है। युग तेजी से बदल रहा है, परंपराएं बदल रही है। मूल्यों के प्रति आस्था विघटित हो रही है। तब ऐसा लगता है कि सब कुछ बदल रहा है। इस बदलावपूर्ण स्थिति में बदलाहट- टकराहट टूटने से पूरी युवा पीढ़ी प्रभावित हो रही है। युवा पीढ़ी में आज धार्मिक क्रियाकलापों और सामाजिक कार्यों के प्रति उदासीनता दिखती है। ऐसे समय में युवाओं को चेतने की जरूरत है। दुःखद आश्चर्य तो यह है कि वर्तमान भौतिकवादी वातावरण में चरित्र-निर्माण की चर्चा बिल्कुल गौण है। राष्ट्र की प्राथमिकता स्वस्थ, प्रतिभाशाली युवा होने चाहिए, न कि यौन-कुण्ठा से ग्रस्त लुंजपुंज विकारी समाज। हम सभी अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, साइंटिस्ट, सी.ए.और न जाने, क्या-क्या तो बनाना चाहते हैं, पर उन्हें चरित्रवान, संस्कारवान बनाना भूल चुकेे हैं। यदि इस ओर ध्यान दिया जाए, तो विकृत सोच वाली अन्य समस्याएं शेष ही न रहेंगी।
हमेशा जोश और जुनून से सराबोर रहने वाली युवा पीढ़ी ही किसी भी देश के भविष्य की सबसे बड़ी पूंजी होती है। आज युवाओं के सामने बहुत बड़ा प्रश्न यही है कि करें तो क्या करें। जमाने की ओर जिधर देखें वहाँ कुछ कदम चल चुकने के बाद आ धमकता है कोई बड़ा सा स्पीड़ ब्रेकर, और उल्टे पाँव फिर वहीं लौटने को विवश होना पड़ता है जहाँ से डग भरने की शुरूआत की थी। हमारे सामाजिक आर्थिक ढांचे की ऊर्जा स्थिरता मुख्यतः युवा पीढ़ी पर निर्भर है लेकिन इसे बढ़ता तनाव, बेरोजगारी या फिर आधुनिकता का चलन उसकी उम्मीदों और सपनों को मिटा रही है।
एक अध्ययन के अनुसार, जिन परिवारों का मुखिया आधुनिक बुराइयों (शराब, शबाब, झूठी शानबाजी) से दूर होता है, उनके बच्चे अपेक्षाकृत अधिक संयमी, मितव्ययी तथा अनुशासित होते हैं। ऐसे परिवेश में पले-बढ़े बच्चों की देश के उच्चशिक्षा संस्थानों में भी सर्वाधिक भागीदारी है जबकि छोटी आयु से ही आधुनिक साधनों तथा खुली छूट प्राप्त करने वालों की सफलता का अनुपात काफी नीचा है। क्या यह सत्य नहीं कि ‘पहले तो हम स्वयं-ही अपने बच्चों को जरूरत से ज़्यादा छूट देते हैं, पैसा देते हैं और भूल कर भी उनकी गतिविधियों पर नजर नहीं रखते। लेकिन बाद में, उन्हीं बच्चों को कोसते हैं कि वे बिगड़ गए। आखिर यह मानसिकता हमें कहाँ ले जा रही है? आज शहरों का हर युवा छोटे-से-छोटे काम के लिए वाहन ले जाता है। शारीरिक श्रम और चंद कदम भी पैदल चलना शान के खिलाफ समझा जाता है। आश्चर्य तो तब होता है जब हम घर से महज कुछ मीटर दूर पार्क में सैर करने के लिए भी कार पर जाते हैं। यह राष्ट्रीय संसाधनों के दुरुपयोग से ज्यादा-चारित्रिक तथा मानसिक पतन का मामला है, इसकी तरफ कितने लोगों का ध्यान हैं? दरअसल आज ’जैसे भी हो, पैसा कमाओे और उसे दिखावे-शानबाजी पर उड़ाआ’े का प्रचलन है। विज्ञापनों का बहुत बड़ा दोष है जो युवाओं को ऐसे कामों के लिए उत्तेजित करते हैं।
इसका अर्थ यह भी नहीं कि देश की सम्पूर्ण युवा पीढ़ी ही पथभ्रमित है। आज हमारे बहुत से युवा अनेक कीर्तिमान स्थापित करने की दिशा में भी अग्रसर है। वास्तव में युवा शक्ति बड़ी प्रबल शक्ति है। युवा शक्ति के बल पर ही देश, दुनिया और समाज आगे बढ़ सकता है, लेकिन इसके लिए उस शक्ति को नियंत्रित करना भी बहुत जरूरी है। अबतक हुए राजनीतिक, सांस्कृतिक और सामाजिक क्रांति की बात करें तो सभी क्रांतियों के पुरोधा युवा रहे हैं। युवा शक्ति सदैव देश को आगे बढ़ाने में सहायक बनती है। समाज के युवा दुर्व्यसन मुक्त होंगे, बुराईमुक्त होंगे तो हम बड़ी से बड़ी उपलब्धियां भी अर्जित कर सकेंगे।
इन दिनों स्वामी विवेकानंद की सार्द्धशती मनाई जा रही है। स्वामी विवेकानंद में मेधा, तर्कशीलता, युवाओं के लिए प्रासंगिक उपदेश जैसी अनेक ऐसी बातें हैं जिनसे युवा प्रेरणा लेते हैं। स्वामीजी को भी युवाओं से बहुत प्यार था। वे कहा करते थे विश्व मंच पर भारत की पुनर्प्रतिष्ठा में युवाओं की बहुत बड़ी भूमिका है। स्वामीजी का मत था, ‘मंदिर जाने से ज्यादा जरूरी है युवा फुटबॉल खेले। युवाओं के स्नायु पौलादी होनी चाहिए क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन निवास करता है।’ दुर्भाग्य से खेल-कूद, व्यायाम हमारे जीवन से दूर होते जा रहे हैं क्योंकि दिन भर मोबाइल, इंटरनेट, फेसबुक हमे व्यस्त रखते हैं। सवाल है कि कौनन चिंता कर रहा है देश की इस सबसे बहुमूल्य धरोहर की।
कवि मित्र अशोक वर्मा कहते हैं- ‘बच्चे, फूल, दीया, दिल, शीशा बेहद नाजुक होते हैं, इन्हें बचाकर रखिये हरदम, पथरीली आवाज़ों से।
Share Your View via Facebook
top trend
-
मंत्री विधायक बनाने के लिए रिश्वत लेते हैं फारुक अब्दुल्ला
-
तेलंगाना के लिए बसें, ऑटो रिक्शा सब बंद, 48 घंटों का रेल-रोको आंदोलन शुरु
आंध्र प्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य के समर्थन में पिछले 12 दिनों से चल रही अनिश्चित काल की हड़ताल के तहत शनिवार से 48 घंटो..
-
क्या हिन्दू (भगवा) आतंकवाद एक राजनीतिक षड्यंत्र है ?
क्या ‘भगवा आतंक’ हिंदुओं एवं मुस्लिमों को राजनीतिक रूप से समान करने का एक उन्मादी प्रयास है? जिसके लिय..
-
सांप्रदायिक हिंसा बिल पर संघ का अल्टीमेटम
गोरखपुर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने सांप्रदायिक हिंसा बिल लाने पर केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा आंदो..
-
“मालिकों” के विदेश दौरे के बारे में जानने का, नौकरों को कोई हक नहीं है...
यह एक सामान्य सा लोकतांत्रिक नियम है कि जब कभी कोई लोकसभा या राज्यसभा सदस्य किसी विदेश दौरे पर जाते हैं तो उन्हें संसदीय क..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
IBTL Gallery
-
-
Indian spirituality and the need for a militant Hindutva : Can You Take It Francois Gautier?
-
Is Himalaya se koi Ganga nikal ni chahiya... Proud to be Indian #SatyamevaJayate
-
Baba Ramdev started Bharat Swabhiman Yatra 3 from Durg, Chhattisgarh
-
Narendra Modi addressed people across 26 places using 3D technology
-
Comments (Leave a Reply)