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छत्तीसगढ़: नक्सलियों की रईसी का राज खुला, उद्योगपतियों और ठेकेदारों के गठजोड़
बस्तर में नक्सलियों के साथ उद्योगपतियों और ठेकेदारों के गठजोड़ और जबरिया वसूली के माओवादियों का व्यापक तंत्र पहली बार बेपर्दा हुआ है. और विडंबना यह कि यह काम नक्सल पीड़ित बस्तर इलाके में खुफिया एजेंसियों ने नहीं, बल्कि दुनिया भर में बड़े-बड़ों की पोलपट्टी खोलने वाले विकीलिक्स ने किया.
इस वेबसाइट ने खुलासा किया था कि बस्तर की बैलाडीला खदानों से लौह अयस्क ले रही बहुराष्ट्रीय कंपनी एस्सार अपनी सुरक्षा के लिए नक्सलियों को बड़ी रकम दे रही है. इससे चौकस हुई पुलिस ने हफ्ते भर के भीतर एस्सार के एक स्थानीय ठेकेदार बी.के. लाला को दो नक्सल समर्थकों को पैसा देते हुए रंगे हाथों पकड़ लिया.
9 सितंबर की दोपहर दंतेवाड़ा जिला मुख्यालय से 35 किमी दूर पालनार के साप्ताहिक बाजार में बाजार पहुंचा लाला नक्सल समर्थक लिंगाराम कोड़ोपी को 15 लाख रु. से भरा बैग थमा रहा था कि पुलिस ने उन्हें दबोच लिया. लाला ने किरंदुल के स्टेट बैंक से 7 सितंबर को ही यह रकम निकाली थी. एक आदिवासी आश्रम की अधीक्षिका सोढ़ी सोनी भी लिंगाराम के साथ थी लेकिन वह भीड़ में गायब हो गई. लाला ने माना कि पैसे एस्सार के थे और उसे नक्सलियों तक पहुंचाना था.
दंतेवाड़ा के एसपी अंकित गर्ग ने इंडिया टुडे को बताया, ''ठेकेदार ने बयान दिया है कि एस्सार के कहने पर वह 15 लाख रु. पहुंचाने बाजार गया था. लिंगाराम और सोनी रकम दरभा डिविजनल कमेटी के नक्सली विनोद और रधु तक पहुंचाते जो पास के जंगल में छिपे थे.'' दोनों पर राष्ट्रद्रोह और जनसुरक्षा अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर लिया गया. पुलिस ने एस्सार की किरंदुल इकाई के महाप्रबंधक डी.वीसी.एस. वर्मा समेत दूसरे अधिकारियों से पूछताछ करने के बाद वर्मा के खिलाफ भी मामला दर्ज कर लिया.
मामला सामने आने के बाद मुंबई से कंपनी के वाइस प्रेसिडेंट कारपोरेट कम्युनिकेशंस बी. गणेश और डिप्टी जनरल मैनेजर रबिन घोष 14 सितंबर को रायपुर पहुंचे. इंडिया टुडे से बातचीत में गणेश ने माना कि लाला उनकी कंपनी में ठेकेदारी करता है मगर कंपनी के नक्सलियों को रु. देने के आरोप को उन्होंने निराधार करार दिया. गणेश कहते हैं, ''एस्सार नियम-कायदों से चलने वाली कंपनी है. वह ऐसे काम में भरोसा नहीं रखती.''
एस्सार राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) की बैलाडीला खदानों से 1995-96 से लौह अयस्क ले रही है. लौह अयस्क की खुदाई के बाद इसकी धुलाई से निकलने वाली लौह चूर्ण की गाद इलाके के पर्यावरण के लिए बड़ी समस्या बन रही थी. एस्सार ने लौह चूर्ण, जिसे ब्लू डस्ट कहा जाता है, को लेने के लिए एनएमडीसी से लंबी अवधि का करार कर लिया. ब्लू डस्ट को पानी के दबाव के जरिए भेजने के लिए कंपनी ने किरंदुल से ओडीशा होते हुए आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम तक 267 किमी लंबी पाइपलाइन बिछाई है.
बस्तर में इस पाइपलाइन की लंबाई करीब 90 किमी है. यह पाइप लाइन माओवादियों के प्रभाव वाले क्षेत्र से गुजरती है और 2005 में इसका बेधड़क समय सीमा में बिछ जाना भी चर्चा का विषय रहा है. पिछले चार साल में नक्सलियों ने एस्सार की पाइप लाइन में तोड़फोड़ कर करोड़ों रु. की चपत लगाई थी. धुर नक्सली इलाका होने की वजह से दो-दो बार टेंडर निकालने के बाद भी कोई ठेकेदार काम करने के लिए तैयार नहीं हुआ. इसके बाद लाला ने ठेका लिया और बिना किसी बाधा के काम पूरा कर लिया. तभी पुलिस को उस पर शक हुआ था.
गौरतलब है कि माओवादियों के बंद के दौरान जब सड़क और रव्ल यातायात ठप हो जाता है, एस्सार पाइप लाइन का काम निर्बाध चलता रहा. दंतेवाड़ा के विधायक भीमा मंडावी, जो इस मामले के काफी पहले से ही एस्सार की माओवादियों से सांठगांठ का आरोप लगा चुके हैं, कहते हैं, ''कंपनी के पूरे क्रियाकलापों की जांच होनी चाहिए.''
लाला और लिंगराम ने इस मामले में कुछ प्रभावशाली लोगों के नाम बताए हैं. लिंगाराम को पिछले साल पुलिस ने नक्सलियों का समर्थक होने के आरोप में गिरफ्तार किया था और बिलासपुर हाईकोर्ट के दखल के बाद उसकी रिहाई हुई थी.
दंतेवाड़ा में कांग्रेस नेता अवधेश गौतम के घर हुए नक्सली हमले में लिंगाराम का नाम आया तो स्वामी अग्निवेश और सुप्रीम कोर्ट के वकील प्रशांत भूषण ने उसे निर्दोष बताते हुए पुलिस पर उसे प्रताड़ित करने का आरोप लगाया था. इस बार भी प्रशांत भूषण और अरुंधति राय उसे पत्रकार निरूपित कर बेकसूर बता रहे हैं. हालांकि दंतेवाड़ा के एसपी कहते हैं कि लिंगाराम ने शुरूआती पूछताछ में अग्निवेश का नाम लिया है.
पुलिस महानिदेशक अनिल नवानी का कहना है, ''एसपी जांच कर रहे हैं, जो भी तथ्य आएंगे, उस हिसाब से कार्रवाई की जाएगी.'' प्रमुख सचिव, गृह, एन.के. असवाल मानते हैं, ''मामला गंभीर है और दोषी कोई भी हो, उसके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी.'' दरअसल, इस मामले ने नक्सलियों की बड़े पैमाने पर जबरिया वसूली को बेपर्दा कर दिया है. पुलिस को माओवादियों की वसूली के कई अहम सुराग हाथ लगे हैं.
नक्सली कई तरह से वसूली करते हैं. मसलन, वे अपने संगठन को राजनैतिक दल बताकर बड़े स्तर पर चंदा लेते हैं; इलाके में काम करने वाले ठेकेदारों से कमीशन लेते हैं, बिना कमीशन दिए कोई ठेकेदार काम शुरू नहीं कर सकता, यहां तक कि ठेका या सप्लाई का टेंडर भरने से पहले भी नक्सलियों से हरी झंडी लेनी पड़ती है.
जनप्रतिनिधियों को भी राजनीति करने के लिए पैसे देने पड़ते हैं. बस्तर में 12 विधानसभा क्षेत्र हैं. इनमें से 10 इलाके ऐसे हैं, जहां नक्सलियों के इशारे के बिना पत्ता भी नहीं हिलता. नक्सली इलाके में किसी भी तरह की कमाई में हिस्सा लेते हैं, समर्थक लोगों से दान वसूलते हैं, अपने लड़ाकों के मासिक मेहनताने में से एक दिन की रकम संगठन में योगदान के नाम पर लेते हैं और अपने संपूर्ण प्रभुत्व वाले इलाकों से सरकार की तरह टैक्स वसूलते हैं.
बस्तर में पदस्थ रहे एक पुलिस महानिरीक्षक की मानें तो रकम जुटाने का नक्सलियों का तगड़ा नेटवर्क है. छत्तीसगढ़, ओडीशा, झारखंड और बिहार में सर्वाधिक वसूली होती है. इनमें छत्तीसगढ़ सबसे ऊपर है. पहले आंध्रप्रदेश में सबसे अधिक वसूली होती थी. मगर वहां से नक्सलियों के पैर उखड़ गए हैं. अंदाज है कि नक्सली छत्तीसगढ़ से हर साल 300 करोड़ रु. से अधिक की वसूली करते हैं. मुख्यमंत्री डा. रमन सिंह ने नक्सलियों पर तेंदूपत्ता ठेकेदारों से ही 60 करोड़ रु. उगाही करने के आरोप लगाए थे.
बस्तर के अंदरूनी इलाकों में, जहां पुलिस और अर्द्धसैनिक बलों के जवान नहीं जा पाते, वहां से हर साल बिना किसी बाधा के तेंदूपत्ता की तोड़ाई हो जाती है. बताते हैं, एक-एक ठेकेदार से नक्सली 5-6 लाख रु. वसूलते हैं. बस्तर से करोड़ों रु. की वनोपज यूं ही बाजार में नहीं पहुंच जाती है. लकड़ी ठेकेदार, वन विभाग के अधिकारी, एनजीओ सभी को करार के हिसाब से नक्सलियों को महीने या साल में सिक्यूरिटी मनी देनी पड़ती है.
अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक, नक्सल ऑपरेशन रामनिवास कहते हैं, ''नक्सलियों की बड़े पैमाने पर उगाही की खबर पुलिस को है. उन्होंने कहां से, कितनी राशि वसूली है, इसकी जानकारी लेने की कोशिश की जा रही है.'' खुफिया अधिकारियों की मानें तो नक्सलियों को जनप्रतिनिधियों से भी हर साल करोड़ों रु. मिलते हैं. बस्तर की 90 फीसदी ग्राम पंचायतें नक्सल इलाके में हैं. विकास कार्यो के लिए पंचायतों में हर साल लाखों रु. आते हैं. पुलिस को मालूम है कि नक्सली जिसे चाहते हैं, वही ग्राम पंचायत का प्रमुख बनता है.
यही नहीं, बस्तर में मलाईदार पदों पर तैनात अधिकारियों को भी नक्सलियों को कमीशन देना पड़ता है. कांकव्र में पदस्थ पीडब्लूडी के एक इंजीनियर इस मामले में पकड़े भी जा चुके हैं. कांकव्र में काम कर चुके एक अधिकारी बताते हैं, ''नक्सलियों को हिस्सा पहुंचाने के बाद काम करने की पूरी आजादी मिल जाती है. बस्तर के अंदरूनी इलाके में चल रही योजनाओं के भौतिक सत्यापन का सवाल ही नहीं उठता. सो, कागजों में करोड़ों रु. के काम हो जाते हैं.'' यही वजह है, पुलिस को छोड़, बस्तर में पदस्थ दीगर विभाग के अधिकांश अधिकारी वहां से लौटना नहीं चाहते.
नक्सली गांजे की तस्करी के साथ ही बड़े पैमाने पर बस्तर में अफीम की खेती भी कर रहे हैं. दंतेवाड़ा, बीजापुर और नारायणपुर का दूरस्थ और पहुंचविहीन इलाका उनके लिए मुफीद साबित हो रहा है.
दंतेवाड़ा के तत्कालीन डीआइजी एस.आर.पी. कल्लूरी ने पिछले साल बीजापुर में नक्सलियों की अफीम की खेती पकड़ी थी. कल्लूरी कहते हैं, ''गांजा और अफीम की खेती से भी नक्सली खासा धन जमा कर लेते हैं.'' अलग-अलग खुफिया रिपोर्टों से खुलासा हुआ है कि नक्सल प्रभावित पांच राज्यों में नक्सली 1443 हेक्टेयर जमीन पर अफीम की खेती कर रहे हैं. दंतेवाड़ा में तैनात रहे एक पुलिस अधीक्षक को नक्सलियों की एक खुफिया रिपोर्ट हाथ लगी थी, जिसमें इस बात का जिक्र था कि वसूली की पूरी जानकारी केंद्रीय कमान को देनी पड़ती है.
लेवी का आधा से अधिक हिस्सा मिलिट्री कमांड को जाता है. उससे हथियार खरीदे जाते हैं. सुरक्षा बलों का कहना है कि 2007 में नक्सलियों ने 17.5 करोड़ रुपए खर्च कर एके-47 और राकेट लांचर खरीदे थे. इसी तरह दिसंबर 2008 में 200 एके-47 राइफलें खरीदीं. पुलिस कहती है कि एस्सार मामले में कुछ और भी लोगों के नाम सामने आ रहे हैं, जिनके खिलाफ पुख्ता सबूत जुटाकर जल्द कार्रवाई की जाएगी. छत्तीसगढ़ के लोगों को उसका इंतजार है.
हर साल 300 करोड़ रु. की वसूली
बस्तर के एक पूर्व पुलिस महानिरीक्षक की मानें तो यहां पर नक्सलियों
का फंडिंग का तगड़ा नेटवर्क है.
*छत्तीसगढ़, ओडीशा, झारखंड और बिहार में वसूली, सबसे ज्यादा छत्तीसगढ़
में. खुद को राजनैतिक दल बताकर मोटा चंदा लेते हैं नक्सली.
*बस्तर में, तेंदूपत्ता के ठेकेदारों से 5-6 लाख रु. वसूलते हैं.
लकड़ी ठेकेदारों, वन अधिकारी आदि को भी सिक्यूरिटी मनी या कमीशन देना
होता है. ठेका या सप्लाई टेंडर भरने से पहले ठेकेदारों को नक्सलियों
से इजाजत लेनी होती है.
*मलाईदार पदों पर तैनात अधिकारियों को भी कमीशन देना पड़ता है. कांकेर
में पदस्थ पीडब्लूडी के एक इंजीनियर इस मामले में पकड़े जा चुके
हैं.
*जनप्रतिनिधियों से भी हर साल करोड़ों रु. लिए जाते हैं. बस्तर के 12
विधानसभा क्षेत्रों में से 10 इलाकों में नक्सलियों के इशारे के बिना
पत्ता भी नहीं हिलता.
*जिन इलाके में नक्सलियों का प्रभुत्व है, वहां वे सरकार की तरह टैक्स
वसूलते हैं. इलाके से गुजरने वाली गाड़ियों से भी टैक्स लेते हैं.
*पुलिस का अनुमान है कि नक्सली छत्तीसगढ़ से हर साल 300 करोड़ रु. तक
की वसूली करते हैं, इस लिहाज से पिछले दस सालों में नक्सलियों ने
3,000 करोड़ रु. तक की वसूली कर ली है. -संजय दीक्षित
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