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नई दिल्ली, ०२ जुलाई, २०१२: 'गुरुपूर्णिमा के अवसर पर "उपासना
हिन्दु धर्मोत्थान संस्थान" की संस्थापिका, सुश्री तनुजा ठाकुर ने
गुरु पूर्णिमा के दिन का महत्त्व बताते हुए कहा कि गुरु पूर्णिमा का
दिन सद्गुरु को कृतज्ञता व्यक्त करने का स्वर्णिम दिन है, जब
गुरु-तत्त्व अन्य दिनों की अपेक्षा एक हजार गुना अधिक सक्रिय होता
है
लिटिल थियेटर ग्रुप के सभागार में 'गुरुपूर्णिमा महोत्सव' के अवसर पर
पत्रकारों के साथ बातचीत करते हुए सुश्री ठाकुर ने कहा कि
'गुरु-शिष्य' परंपरा भारतीय समाज और शिक्षा प्रणाली का आधार-स्तम्भ
थी। उन्होंने कहा कि इस परंपरा का ह्रास एक सीमा तक हमारे समाज में
मूल्यों के क्षरण के लिए उत्तरदायी है।
गुरु की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए सुश्री ठाकुर ने बताया कि जब कोई
आत्म-ज्ञानी संत धर्म और आध्यात्मिकता पर शिक्षा प्रदान करता है व एक
साधक आत्म बोध हो जाता है, इस तरह के महान व्यक्तित्व को गुरु के रूप
में जाना जाता है। उन्होंने कहा कि संत, अर्थात निर्गुण ईश्वर के सगुण
रूप के बारे में आज अल्प जानकारी है और लोगों के मन में उनके विषय में
अनेक प्रश्न रहते हैं, ऐसी ही कुछ शंकाओं का समाधान करने हेतु वे
प्रयासरत हैं|
आजकल लोग ढोंगी बाबाओं के चंगुल में क्यों फंस जाते हैं, इसके कारण
गिनाते हुए सुश्री तनुजा ने कहा कि सूक्ष्म दुनिया के ज्ञान की कमी,
आध्यात्मिकता के विज्ञान पर पूर्ण शिक्षा की कमी, या आध्यात्मिकता का
सहारा लेकर भौतिक कष्टों से भागने का प्रयास, भौतिक जीवन से संबंधित
सामग्री और आराम पाने हेतु, भौतिक विलासिता के अधिग्रहण के लिए या जब
हम भीड़ देखकर गुरु धारण करने जाते हैं ।
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