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वैज्ञानिक और स्वच्छता का प्रतीक है: शीतला माता पूजा
बसंत अब लगभग बिदाई की ओर है | होली के बाद अब गर्मी की मौसम की भी
शुरुआत होने लगी है| इसके साथ ही अब रोज की दिनचर्या में भी परिवर्तन
आना शुरू हो जाता है| इसी प्रकार की बातों को ध्यान में रखते हुए ही
हमारे बुजुर्गो ने त्योहारों को जन्म दिया | इन्ही में से एक त्योहार
है “शीतला पूजा” |
“शीतला पूजा” होली के एक सप्ताह बाद या कहीं कहीं होली के बाद के पहले
सोमवार को या गुरूवार को मनाया जाता है| इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य
ऋतु परिवर्तन पर होने वाले रोगों से बचना है, जैसे बुखार, पीलिया,
चेचक, आँखों के रोग |
भगवती शीलता की पूजा का विधान भी अनूठा है | देवी को ठंडा ओर बासी
भोजन अर्पित किया जाता है, इसी लिए एक दिन पहले बने भोजन का ही भोग
लगाया जाता है| इसी लिए इस उत्सव को बसोड़ा भी कहते है| ऐसी मान्यता है
की इस दिन से बासी खाने को खाना बंद कर दिया जाता है, जिस का
वैज्ञानिक कारण मौसम में परिवर्तन है| इस समय मौसम थोड़ा गरम भी होना
शुरू हो गया होता है इसीलिए बासी खाने से बीमारियों के होने का डर बना
रहता है| बासी खाना सिर्फ शरीर को ही नहीं मस्तिष्क को भी नुकसान
पहुचाता है|
धार्मिक रूप से देखने पर स्कंधपुराण में माता के रूप को दर्शाया गया
है, जिसमें माता हाथों में सूप, झाड़ू, गले में नीम के पत्ते पहने,
गर्दभ पर विराजमान दिखाई गयी है| इन बातों का वैज्ञानिक एवं
प्रतीकात्मक महत्व होता है, चेचक का रोगी कपड़े उतार देता है और उसको
सूप से हवा की जाती है, झाड़ू से चेचक के फोड़े फट जाते है, नीम के
पत्ते फोड़ों को सड़ने नहीं देते है, और कलश के रूप में ठंडा पानी रोगी
को शीतलता देता है|
इसी प्रकार से शीलता माता का पूजन हमें स्वच्छता की ओर प्रेरित करती
है और संक्रमण के इस समय मे साफ़ सुधरा भोजन करके स्वस्थ जीवन जीने का
रास्ता दिखाती है | किसी ने सही ही कहा है: “जैसा अन्न वैसा मन” |
“स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है” |
साभार : वन्दे मातृ संस्कृति | facebook.com/VandeMatraSanskrati
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