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कामना से रहित तेजस्वी राजा छत्रपति शिवाजी : वंदे मातृ संस्कृति
महाराष्ट्र-सिरमौर छत्रपति शिवाजी के एक वीर सेनापति ने कल्याण का
किला जीता। काफी अस्त्र-शस्त्र के अलावा अटूट संपत्ति भी उसके हाथ
लगी। एक सैनिक ने एक मुगल किलेदार की परम सुंदर बहू उसके समक्ष पेश
की। वह सेनापति उस नवयौवना के सौन्दर्य पर मुग्ध हो गया और उसने उसे
शिवाजी को नजराने के रूप में भेंट करने की ठानी। उस सुंदरी को एक
पालकी में बिठाकर वह शिवाजी के पास पहुंचा।
शिवाजी उस समय अपने सेनापतियों के साथ शासन-व्यवस्था के संबंध में
बातचीत कर रहे थे। वह सेनापति उन्हें प्रणाम कर बोला, ''महाराज!
कल्याण में प्राप्त एक सुंदर चीज आपको भेंट कर रहा हूं।'' और उसने उस
पालकी की ओर इंगित किया।
शिवाजी ने ज्योंही पालकी का परदा हटाया, उन्हें एक खूबसूरत मुगल
नवयौवना के दर्शन हुए। उनका शीश लज्जा से झुक गया और उनके मुख से
निम्न उद्गार निकले- " काश! हमारी माताजी भी इतनी खूबसूरत होतीं, तो
मैं भी खूबसूरत होता! "
फिर उस सेनापति को डांटते शिवाजी बोले, "तुम मेरे साथ रहकर भी मेरे
स्वभाव को न जान सके? शिवाजी दूसरों की बहू-बेटियों को अपनी माता की
तरह मानता है। जाओ इसे ससम्मान इसके घर लौटा आओ।"
आभार - विश्व हिन्दू वोइस वेबसाइट
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