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गुजरात की राज्यपाल ने स्वयं को खेतिहर मजदूर बताकर हथियाई करोड़ों की ज़मीन
गुजरात की माननीय राज्यपाल डॉ. कमला बेनीवाल 1000 करोड़ रुपये के
भूमि घोटाले मे फँसती नज़र आ रही हैं। डॉ बेनीवाल पर फर्जी
प्रमाणपत्रों के आधार पर खुद को बताकर करोड़ों रुपये की सरकारी ज़मीन
हथियाने के आरोप लगे हैं। डॉ। बेनीवाल पर ये आरोप भाजपा के राष्ट्रीय
मंत्री किरीट सोमैया द्वारा सहकारिता विभाग की जांच रिपोर्ट के आधार
पर लगाए गए हैं।
ज्ञात हो कि सहकारिता विभाग के रजिस्ट्रार ने 2 जुलाई 2009 को डॉ
बेनीवाल की सदस्यता वाली सहकारी समिति की जांच की थी। धारा 56 के
अंतर्गत जांच परिणाम मे समिति मे गंभीर अनियमितताएँ पायी गई तथा उसे
खत्म करने की सिफ़ारिश की गयी किन्तु राजस्थान की काँग्रेस शासित सरकार
के सहकारिता मंत्री ने 07 सितंबर 2009 के आदेश से इस जांच को ही
निरस्त घोषित कर दिया। इसके पश्चात समिति के सदस्यों ने अपने राजनीतिक
प्रभाव का दुरुपयोग करते हुए मुआवज़े मे मिली करोड़ों की ज़मीन की
बंदरबाँट कर ली।
आपको यह जानकार आश्चर्य होगा, किन्तु माननीय राज्यपाल डॉ बेनीवाल की
मानें, तो वे पिछले 58 सालों से कृषि भूमि पर रोजाना 14 से 16 घंटे
मजदूरी कर रही हैं तथा इसी आधार पर उन्होने जयपुर विकास प्राधिकरण से
मुआवजे के रूप मे करोड़ों रुपए मूल्य की ज़मीन प्राप्त की।
आश्चर्य है कि इस अवधि के अंतर्गत उनका गुजरात राज्यपाल के रूप मे
कार्यकाल भी शामिल है। प्रश्न यह है कि यदि वे नियमित रूप से अपने खेत
पर 14 से 16 घंटे मजदूरी कर रही थी तो राज्यपाल के रूप मे अपने
उत्तरदायित्व का निर्वाहन कैसे कर रही थी? इससे भी अधिक आश्चर्य की
बात यह है कि राज्यपाल के पद पर रहते हुए वे लाभ कमाने वाली
गतिविधियों मे शामिल हुई हैं जो कि संविधान के नियमों का सर्वथा
उल्लंघन है। संविधान के अनुसार राज्यपाल अपने पद पर रहते हुए
व्यवसायिक लाभ का कार्य नहीं कर सकता।
गौरतलब है कि डॉ बेनीवाल 10 जनपथ की बेहद करीबी मानी जाती हैं। शायद
इसी के पुरस्कार स्वरूप उन्हे गुजरात का राज्यपाल नियुक्त किया गया।
राज्यपाल के पद पर रहते हुए उन्होने अपने संवैधानिक कर्तव्यों से अधिक
राजनैतिक कलाबाजियों का निर्वहन किया। राज्यपाल के रूप मे अपने
कार्यों से अधिक वे गुजरात भाजपा सरकार का विरोध करने तथा
येन-केन-प्रकारेण गुजरात के मुख्यमंत्री श्री नरेंद्र मोदी के कार्यों
मे व्यवधान उत्पन्न करने हेतु ही सुर्खियां बटोरती रही हैं।
गुजरात सरकार की सलाह लिए बिना जबरन लोकयुक्त की नियुक्ति करना तो
उनके 10 जनपथ प्रेम का जीवंत उदाहरण बन गया। उनके हिसाब से उन्होने यह
कदम भ्रष्टाचार के खिलाफ सख्ती दिखाने के लिए उठाया था। अब जब वे
स्वयं भ्रष्टाचार के आरोपों मे घिर चुकी हैं, क्या वे नैतिक आधार पर
राज्यपाल पद से त्यागपत्र देंगी?
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