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महाराष्ट्र में आरटीआइ का गला घोंटने की तैयारी, चुपचाप विधानमंडल में मंजूर भी करवा लिया
मुंबई [ओमप्रकाश तिवारी]। सूचना अधिकार कानून [आरटीआइ] के जरिए जिस
महाराष्ट्र में आदर्श सोसाइटी जैसा बड़ा घोटाला उजागर हुआ, वहां अब
आरटीआइ कानून का ही गला घोंटने की तैयारी शुरू हो गई है। महाराष्ट्र
सरकार ने हाल में चुपचाप दो नोटिफिकेशन निकालकर आरटीआइ एक्ट में कुछ
ऐसे संशोधन किए हैं, जिनके कारण अब इस कानून का उपयोग कर सूचनाएं
हासिल करना काफी मुश्किल हो जाएगा।
राज्य सरकार ने 16 जनवरी, 2012 को महाराष्ट्र आरटीआइ कानून 2012 में
संशोधन कर दिया है। इस संशोधन के बाद महाराष्ट्र में अब आरटीआइ आवेदन
की सीमा 150 शब्दों तक सीमित कर दी गई है। इसके अलावा एक आरटीआइ आवेदन
में सिर्फ एक विषय ही उठाने की अनुमति दी गई है। खास बात यह कि आरटीआइ
एक्ट में इस संशोधन का नोटिफिकेशन चुपचाप निकालकर उसे विधानमंडल के
सत्र में मंजूर भी करवा लिया गया है। जबकि, आरटीआइ कानून की धारा 4[1]
[सी] के अनुसार प्रत्येक सार्वजनिक प्राधिकरण के महत्वपूर्ण निर्णय व
नियम बनाते या बदलते समय सभी तथ्यों का प्रकाशन समाचार पत्र में होना
चाहिए और आम जनता से सूचना, आपत्ति व सुझाव मंगाए जाने चाहिए।
जल्दबाजी में किए गए इस संशोधन के बाद मुंबई के पूर्व पुलिस आयुक्त
जूलियो रिबेरो के नेतृत्व में आरटीआइ कार्यकर्ताओं के एक
प्रतिनिधिमंडल ने मुख्यमंत्री से मिलकर अपनी नाराजगी जाहिर की थी।
आरटीआइ कार्यकर्ता अनिल गलगली कहते हैं, पृथ्वीराज चह्वाण ने केंद्र
में कार्मिक लोक शिकायत व पेंशन विभाग के प्रभारी रहते आरटीआइ कानून
बनाने और उसे लागू करवाने में बड़ी भूमिका निभाई थी। अब वही
मुख्यमंत्री के रूप में अपने ही कार्यालय में बड़ी संख्या में आ रहे
आरटीआइ आवेदनों से तंग आ गए हैं। देश में आरटीआइ का सबसे ज्यादा
इस्तेमाल महाराष्ट्र में होता है। सबसे ज्यादा आरटीआइ आवेदन
मुख्यमंत्री कार्यालय को ही प्राप्त हो रहे हैं। पिछले साल
मुख्यमंत्री कार्यालय को 1,89,017 आरटीआइ आवेदन मिले। चह्वाण के
आरटीआइ से खुन्नस खाने का एक और कारण बताया जाता है। दिल्ली से मिस्टर
क्लीन की छवि लेकर महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद संभालते ही उनके
बारे में यह जानकारी उजागर हुई थी कि उन्होंने वर्ष 2003 में गलत
जानकारी देकर मुख्यमंत्री कोटे का फ्लैट हासिल किया था। यह जानकारी
आरटीआइ के जरिए ही सामने आई थी।
साभार जागरण
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