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पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या : माफिया, मीडिया और विपक्ष
मुरैना में होली के दिन हुई पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या ने
सारे देश में सनसनी-सी फैला दी थी| माना यह जा रहा था कि वह किसी
खनन-माफिया की करतूत है और यह नहीं हो सकता कि इस माफिया के मप्र
सरकार के साथ सूत्र न जुड़े हों| यह कैसे हो सकता है कि एक मामूली
ट्रैक्टर ड्राइवर एक पुलिस अफसर को कुचल कर मार डाले? कांग्रेस के कुछ
प्रांतीय नेताओं ने टीवी चैनलों पर यह तक कह डाला कि खनन माफिया के
तार सीधे मुख्यमंत्री और उनकी पत्नी के साथ जुड़े हैं| लेकिन अब
अखबारों में जो तथ्य आ रहे हैं, उनसे सारे निष्कर्ष उल्टे पड़ते दिखाई
पड़ रहे हैं|
ट्रैक्टर चलाने वाले किसान मनोज गूजर ने माना कि नरेंद्र कुमार को उसी
के ट्रैक्टर ने कुचला है लेकिन यह जान-बूझकर नहीं हुआ है| पुलिस अफसर
नरेंद्र कुमार ने मनोज पर पिस्तौल तानी और उसे रूकने के लिए कहा,
लेकिन मनोज ने डर के मारे ट्रैक्टर तेजी से भगा लिया| इस पर नरेंद्र
ने ऊपर कूदकर ट्रैक्टर का स्टीयरिंग व्हील पकड़ने की कोशिश की और वे
फिसलकर नीचे गिर पड़े| इस हड़बड़ में वे कुचले गए| मनोज के भाइयों का
कहना है कि वह अच्छे पुलिस अफसर थे और उनके उनके परिवार का कोई झगड़ा
नहीं था| लोग अपना ट्रैक्टर इसलिए अंधाधुंध भगा ले जाते है कि पकड़े
जाने पर पुलिस मोटी रिश्वत मांगती है|
जहां तक खनन माफिया की बात है, ट्रैक्टर चालक किसी का नौकर नहीं है|
उसके अपने परिवार की काफी अच्छी खेती है| यह परिवार अपना दूसरा नया
मकान बना रहा था| उसी के लिए वह अपने ट्रैक्टर पर पत्थर लादकर ले जा
रहा था| पुलिस का कहना है कि यह संपन्न परिवार है और इसका अपराधों से
दूर-दूर का भी संबंध नहीं रहा है| किसी माफिया की दलाली या नौकरी का
सवाल तो उठता ही नहीं है|
यदि ये तथ्य सत्य है तो सारी घटना पर पुनर्विचार के लिए हमें विवश
होना पड़ेगा, लेकिन पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार के बलिदान और उनकी
बहादुरी के आगे सारे देश को नतमस्तक होना ही पड़ेगा| राज्य की संपदा
की रक्षा के लिए वे अपनी जान पर खेल गए| मप्र सरकार को चाहिए कि स्व.
नरेंद्र कुमार की स्मृति को अविस्मरणीय बनाए, उनके परिवार को असाधारण
मुआवजा और उनके नाम से वार्षिक पुरस्कार प्रदान करें ताकि देश के
पुलिए वाले वीर नरेंद्र बनने की कोशिश करें|
साभार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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