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कर्नाटक विधानसभा अश्लीलता कांड में अब पत्रकारों को ही कठघरे में खड़ा कर दिया है
कर्नाटक विधानसभा के अश्लीलता कांड ने अब एक नया मोड़ लिया है|
इसके पहले कि उन तीनों मंत्रियों से पूछताछ होती, जो कि अश्लील वीडियो
देख रहे थे, उस कन्नड़ चेनल के संपादक की खिंचाई शुरू हो गई है, जिसने
इन मंत्रियों को रंगे हाथ सबको दिखा दिया था| विधानसभा अध्यक्ष ने जो
जांच-कमेटी बिठाई है, उसने इस संपादक से बड़े मज़ेदार सवाल पूछे हैं|
इन सवालों की संख्या 15 हैं| कुछ सवाल इस प्रकार हैं|
क्या आपने प्रेस गेलरी के फलॉं-फलॉं नियम का उल्लंघन नहीं किया है?
आपको प्रेस गेलरी में क्यों आने दिया जाता है? आप विधानसभा की
कार्रवाई दिखाने के लिए वहां बैठते हैं या सदस्यों के निजी कारनामों
का प्रचार करने के लिए बैठते हैं? आपको पता था कि मंत्रियों द्वारा
देखे जा रहे फोन-वीडियो अश्लील याने असंसदीय थे, फिर भी वे आपने दिखा
दिए? क्यों दिखा दिए? क्या दिखाने के पहले आपने अध्यक्ष की अनुमति ली
थी? जो अश्लील वीडियो आपने अपने चेनल पर दिखाए, उनके कारण लाखों
दर्शकों के मन पर कितना बुरा प्रभाव पड़ा? क्या इससे उनकी अभिव्यक्ति
की स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन नहीं हुआ? क्या यह संविधान की
अवमानना नहीं है? टीवी पत्रकारों ने उनके मूल कर्तव्य का उल्लंघन करके
क्या विधानसभा का सम्मान नहीं गिराया है?
लगता ऐसा है कि यह कमेटी उन विधानसभा सदस्यों (जो अब मंत्री नहीं हैं)
की जांच के लिए नहीं बनाई गई है बल्कि पत्रकारों को कठघरे में खड़े
करने के लिए बनाई गई है| जहां तक दोषी मंत्रियों का सवाल है, उन्हें
तो अपने किए की सजा मिल चुकी है और सारा मामला इतना खुल चुका है कि
उसमें किसी प्रकार की जांच की गुंजाइश ही नहीं है| क्या यह कमेटी उन
पूर्व मंत्रियों को विधानसभा से निकलवाने की सिफारिश करेगी या किसी
अन्य सजा की? यदि नहीं तो फिर जांच का यह नाटक क्यों रचाया जा रहा है?
जिन टीवी पत्रकारों से आजकल आड़े-टेड़े सवाल पूछे जा रहे हैं, वास्तव
में कर्नाटक विधानसभा द्वारा उनका अभिनंदन किया जाना चाहिए| उन्होंने
विधानसभा के सम्मान की रक्षा को मजबूत बनाया और विधायकों के भावी
दुराचरण को हतोत्साहित किया|
साभार : डॉ. वेदप्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
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