महाराष्ट्र के उस्मानाबाद जिले में, नळदुर्ग के पास पारधीयों के, मरीआई समाज के लोगों की करीब तीस-पैतीस झोपड़ीयों की बस्ती है|..
मध्य प्रदेश में समस्त सरकारी कामकाज हिंदी में होता है
हिंदी के मामले में म.प्र. सबसे आगे है| उसका लगभग सभी सरकारी
कामकाज हिंदी में होता है| यहां तक कि विधानसभा के मूल कानून
भी हिंदी में ही बनते हैं| म.प्र. में जो कुछ अहिंदी भाषी
राज्यपाल रहे हैं, उन्हें कुछ ही दिनों में अपने आप समझ में आ गया कि
यदि वे अंग्रेजी में भाषण देंगे तो उनकी खैर नहीं है|
लेकिन अब कुछ उद्योगपतियों ने भोपाल जाकर उपदेश झाड़ा है कि मप्र की
सरकार अपना काम-काज अंग्रेजी में शुरू करे| साधारण बाबुओं को भी अच्छी
अंग्रेजी सिखाए| इन्फोसिस जैसी भारतीय और माइक्रोसॉफ्ट जैसी विदेशी
कंपनियों के साथ पत्रचार अंग्रेजी में किया जाए| बेचारे मुख्यमंत्रीजी
क्या करते? क्या वे मेहमानों का अपमान करते? उन्होंने उनकी हॉ में हॉ
मिलाते हुए कह दिया कि ठीक है, अब अंग्रेजी को भी बढ़ावा दिया
जाएगा|
शिवराज चौहान यों तो बहुत विनम्र और मृदुभाषी व्यक्ति हैं लेकिन उनकी
तरह दबंग मुख्यमंत्री कितने हैं? ये वही शिवराज हैं,
जिन्होंने राष्ट्रमंडल खेलों की मशाल थामने से साफ़ मना कर
दिया था| गीता-पाठ व सूर्य प्रणाम का
प्रावधान करवाने की हिम्मत क्या किसी अन्य मुख्यमंत्री में है? ऐसे
मुख्यमंत्री से मैं आशा करता हूं कि वे म.प्र. के राजकाज में अंग्रेजी
के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध लगा देंगे| जैसे उन्होंने गोवध
पर प्रतिबंध लगाया, वैसे ही वे अंग्रेजी काम-काज और अंग्रेजी
की अनिवार्य पढ़ाई पर भी लगा दें| म.प्र. ऐसा राज्य बने कि देश के
सारे राज्य उसका अनुकरण करें| सब राज्यों में स्वभाषाऍं चलें|
उद्योगपतियों से शिवराज चौहान पूछे कि तुम्हें मुनाफा कमाना है या
नहीं? यदि हॉं तो तुम खुदको बदलो| अपनी गर्ज की खातिर उस भाषा में काम
करो, जिसके लोगों के बीच तुम्हें धंधा करना है| उद्योगपति तो पैसे के
गुलाम हैं| वे झक मारकर अपना काम हिंदी में करेंगे| कई बहुराष्ट्रीय
निगमों ने अपनी भाषा-नीति पहले से सुधार रखी है| हमारे गुलाम मानसिकता
वाले उद्योगपति इन निगमों से भी कुछ नहीं सीखते| उन्हें इतनी
साधारण-सी समझ भी नहीं है कि ग्राहक की भाषा में बेचेंगे तो माल
ज्यादा बिकेगा| भाषा के मामले में उल्टी गंगा बहाने के लिए उन्हें
क्या म.प्र. ही मिला है?
डा. वैद प्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Share Your View via Facebook
top trend
-
खानाबदोश समाज के लिए यमगरवाडी आश्रमशाला
-
भारतीय घरों में ५० लाख करोड़ का सोना : भारतीय संस्कृति का प्रभाव एवं मजबूत भारत
श्रृंगार का प्रतीक सोना सदैव भारत वर्ष की पहचान रहा है। ज्ञातव्य है की इसे भारतीय संस्कृति में विशेष स्थान दिया गया है। अब..
-
कैसे बने भारत फिर सोने की चिड़िया? देश से बाहर है 1400 अरब डॉलर?
कई सौ साल पहले भारत को दुनिया भर में सोने की चिडि़या माना जाता था, लेकिन विदेशी आक्रमणकारियों ने इसे लूटा-खसोटा और इसके धन..
-
मानव सेवा प्रतिष्ठान के बंगाल वनवासीयों में सेवा-प्रकल्प
भारत का पूर्वी भाग आज भी काफी पिछडा हुआ है| शिक्षा, स्वास्थ्य रक्षा की समस्याओं से लेकर आर्थिक शोषण तक कई गंभीर प्रश्..
-
आतंकवादियों के घर जाते हैं दिग्विजय और मिल कर करते हैं धंधा
आरएसएस के अखिल भारतीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार ने कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव दिग्विजय सिंह पर आतंकवादियों से रिश..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)