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नागालैंड में स्वदेशी शिक्षा के लिए प्रयासरत तसिले एन जेलियांग : सेवा भारती, आर.एस.एस.

नागालैंड में स्वदेशी शिक्षा के लिए प्रयासरत " तसिले एन जेलियांग
"
(नागालैंड में शिक्षा के विकास और समाज के उन्नयन के लिए कार्यरत नारी
शक्ति, छोटी उम्र में ही राष्ट्र सेविका़ समिति से जुडीं और नागपुर
में उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद नागा भूमि पर शिक्षा के विकास,
संवर्धन व उन्नयन में संलग्न सरकारी शिक्षक का पद त्याग कर विद्या
भारती विद्यालय से सम्बद्ध हुईं, स्वदेशी शिक्षा के लिए सतत प्रयासरत,
जेलियांगरौंग लोककथा पर आधारित पुस्तक की लेखिका, रानी मॉं
गाईदिन्लियु के दुर्लभ १०० चित्रों की संग्रहकर्ता, भारतीयता,
देशप्रेम, राष्ट्रीय स्वाभिमान, राष्ट्रीयता और हिन्दु संस्कृति को नई
पीढी में रोपने वाली मार्गदर्शक, पूर्वोत्तर को देश की मुख्यधारा से
जोडने के प्रयास में सतत प्रयत्नशील सुश्री तसिले एन जेलियांग भारतीय
चेतना की ध्वजवाहक बनी हुई हैं...)
प्रश्न : आपका जन्म कहॉं हुआ, आप किस परिवेश में पली-बढ़ी?
मेरा जन्म नागालैण्ड के पेरेन जिले के एक गॉंव में हुआ| हमारे आस-पास
ईसाई माहौल था| ज्यादातर लोग ईसाई थे, मेरे अधिकतर मित्र भी
ईसाई ही थे| उन्ही के साथ खेलना-कूदना होता था| वही मेरा परिवेश था|
मॉं बचपन मे ही गुजर गई थी किन्तु पिता ने मेरा पालन-पोषण
हिन्दू संस्कारों में किया| उसके बाद प्राथमिक और स्कूल की पढाई
अपने जिले मेंे ही की; फिर नागपुर चली आई|
प्रश्न : जब आप पल-बढ़ रही थीं उस समय आपकी रुचि किस क्षेत्र में
थी?
माहौल अच्छा था| मेरी खेलकूद में दिलचस्पी थी, इसलिए मैने दूसरी बातों
की तरफ ध्यान नहीं दिया| मुझे बचपन से ही बर्फीले पहाडों पर चढने का
शौक था| १९९६ से १९९९ तक मैंने लगातार ट्रेकिंग की, राष्ट्रीय खेलों
में भी भाग लिया|
प्रश्न : आप खेलकूद की तरफ भी झुक सकती थी, लेकिन आपने अध्यापन को ही
पेशा क्यों बनाया?
खेलकूद में मेरे समुदाय के बहुत से लोग आगे बढ़े है| मुझे अपने समुदाय
को उन्नत बनाना था, उनके बीच काम करना था, उनका शैक्षणिक स्तर सुधारना
था और उनमें राष्ट्रीयता तथा देशी ज्ञान के प्रति रुझान पैदा करना था;
इसलिए मैंने अध्यापन का रास्ता चुना| राष्ट्र सेविका समिती के संपर्क
मे रहते हुए मैं इसका महत्त्व समझ चुकी थी|
प्रश्न : पूर्वोत्तर के बारे में आम राय है कि उस प्रदेश की ओर विशेष
ध्यान नही दिया गया; क्या आपको भी ऐसा महसूस होता है?
ऐसा तो नही लगा| सरकार बहुत कोशिश करती है किन्तु स्थानीय स्तर पर कुछ
असंतोष अवश्य है| इसका कारण दुसरा है| पूर्वोत्तर को राष्ट्र की मुख्य
धारा से जोडेने की आवश्यकता है|
प्रश्न : पूर्वोत्तर में धर्मांतरण बहुत हुआ है इस कारण वहॉं हिंदूओ
को बाहरी समझा जाता है| क्या यह सही है?
धर्मांतरण अवश्य हुआ है और इसका कारण अशिक्षा तथा आदिवासियों का
भोलापन है| कुछ आर्थिक कारण भी है| अभी बीच में हिन्दू-गैर
हिन्दू की बात चलने लगी थी, कुछ अलगाव सा था, लेकिन अब ऐसा नही
है| भारतीय संस्कृति और धर्म का महत्त्व समझा जाने लगा है| लोग
हिन्दुत्त्व का सही अर्थ समझ रहे है| अपनी परम्पराओं को अपना रहे है|
स्थानीय आदिवासी चिन्हों को पुनर्जीवित कर रहे है| मैं ‘हराका’ समुदाय
से हूँ| यह समुदाय स्वयं को हिन्दू ही मानता है और हमारे समुदाय मे
धर्मांतरण उतना नही है| बाकी समुदाय भी इस बात को समझने लगे है|
धर्मांतरण पहले की अपेक्षा कम हो रहा है| इसमें स्वधर्म चेतना और
स्वदेशी शिक्षा का व्यापक योगदान है|
प्रश्न : आप राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से जुडी है| पहले उस क्षेत्र
में संघ कार्यकर्ताओं को तंग किया जाता रहा है, कई बार उन्हे धमकियॉं
भी मिली हैं| अब माहौल कैसा है?
माहौल में बदलाव है| लोग समझ रहे है कि संघ का कार्य सामाजिक समरसता
और राष्ट्रीय स्वाभिमान को पुनर्जीवित करना है, स्वदेशी चेतना को
बढावा देना है, स्वधर्म के प्रति लोगों को जागृत करना है| आज स्थिती
यह है कि ईसाई समुदाय भी वहॉं संघ को सम्मान की दृष्टि से देखता
है|
प्रश्न : वातावरण में यह जो बदलाव हुआ है इसमें आपका क्या सहयोग रहा;
और भविष्य की क्या संभवनाएं है?
मैंने लोगों के बीच काम किया| विद्याभारती स्कूल से जुडकर स्वदेशी
शिक्षा और स्वधर्म चेतना को बढावा दिया| मैं नागालैण्ड की जनजाति
शिक्षा समिती की प्रदेश बालिका शिक्षा प्रमुख हूँ| हमारा उद्देश्य
मातृ शक्ति को शिक्षित और सशक्त बनाना है ताकि राष्ट्र सही दिशा में
प्रगति कर सके| मैं राष्ट्रीय महिला समन्वय समिती, विद्याभारती की
नागालैण्ड प्रतिनिधी हूँ तथा नागालैण्ड में जालुकि स्थित ‘हेरका
विद्याभारती स्कूल’ की प्रधानाचार्य और उत्तर असम सेविका समिती की सह
प्रधानकार्यवाहिका भी हूँ | जहॉं तक बदलाव का प्रश्न है, इसका श्रेय
शिक्षा को भी है| जो बच्चें नागालैण्ड से उच्च शिक्षा प्राप्त कर देश
के अन्य हिस्सों मे नौकरी करने गये उन्होने भारत की विविधता और परिवेश
के बारे में वहॉं के लोगों को बताया| इस प्रकार लोगों में चेतना
जागी और वे भारतीयता की तरफ मुडने लगे| हम गॉंव-गॉंव जा रहे है, लोगों
के बीच काम कर रहे है, उन्हे स्वदेशी और स्वधर्म के विषय मे जागृत कर
रहे है, इसका लाभ यह हुआ है कि धर्मांतरण पर रोक लगी है| भविष्य में
इस तरह से मिल जुलकर काम करने से लाभ होगा|
प्रश्न : नागा संस्कृति और बाकी भारत की संस्कृति में क्या अंतर
है?
नागा भी भारतीय संस्कृति ही है, कोई अंतर नही है| मैं दोनो को अलग नही
देखती| हम प्रकृति के उपासक है| हमारे देवी-देवता प्रकृति में ही है|
खान-पान, पहनावा थोडा भिन्न अवश्य है, लेकिन यही भिन्नता भारतीय
संस्कृति की विशेषता है| मैं नागपुर मे ११ वर्ष रही, उस दौरान वहॉं की
संस्कृति और जीवन को नजदीक से देखा| मूलतत्त्व वही है, इसलिये यह एक
ही संस्कृति है| शादी-ब्याह आदि परम्पराओं, रिवाजों के तरीके, मंत्र
भले ही भिन्न हो लेकिन भावना तो वही है| ‘अतिथि देवो भव:’ यह हमारी
संस्कृति है और नागा भी इसी को प्रमुखता से मानते है|
प्रश्न : शिक्षा में स्थानीय परम्पराओं, संस्कारों को आप किस तरह
रोपित कर रही है?
मैंने एक किताब लिखी है जो जेलियांगरौंग लोक कथाओं पर आधारित है|
इसमें बच्चों को स्थानीय कथाओं के विषय में बताया जा रहा है| हम
प्रयास कर रहे हैं कि नागा संस्कृति का सही तरीके से प्रचार-प्रसार
हो| मैंने रानी मॉं गाईदिन्लियू के सौ दुर्लभ चित्रों का संग्रह किया
है| मैं उनके जीवन से प्रभावित हूँ| रानी मॉं ने भारतीय स्वतंत्रता
संग्राम में व्यापक योगदान दिया था जिसका मूल्यांकन पहले नही किया गया
किन्तु, हमने प्रयास करके इस वीरांगना को इतिहास की गुमनामियों से खोज
निकाला और आज सरकार भी उनका महत्त्व समझ रही है| मैं इसी महान रानी के
नाम पर स्थापित एक सांस्कृतिक और सामाजिक कल्याण संस्था की कोषाध्यक्ष
हूँ|
प्रश्न : रानी मॉं के जीवन के विषय में कुछ बताइये?
रानी मॉं गाईदिन्लियू ने हेराका समाज को संगठित बनाये रखा| उन्होने
हेराका संस्कृति और परस्पराओं को जीवित रखने मे योगदान दिया| १९३२ में
असम के निकट एक गॉंव के जंगलों मे बडी वीरता से वे अंग्रेजो से लड़ी
भी| १३ वर्ष की आयु मे ही उन्होने अपनी कुशलता से ब्रिटिश राज्य से
लोहा लिया| वे मणिपुर के लोंगकाओ गॉंव मे पैदा हुई थी और उन्होंने
नागा क्षेत्र में सामाजिक-राजनीतिक अभियान चलाया था| १९३२ में उन्हें
१६ वर्ष की आयु में ही गिरफ्तार कर लिया गया| १४ वर्ष वे जेल में रही|
इतने लम्बे समय तक जेल मे रहने वाली वे पहली भारतीय महिला थी| उन्हें
भारत सरकार ने १९९३ में पद्मभूषण भी दिया था उनके ऊपर एक डाक टिकिट भी
जारी हुआ है| उन्होंने स्वधर्म और स्वदेशी के लिये भी बहुत काम किया|
सरकार, कोहिमा में उनसे जुडी सामाग्री का एक संग्रहालय भी बनाने का
विचार कर रही है|
प्रश्न : आपके साथ कितनी महिलाएँ जुडी हैं?
हमारा काम गॉंव-गॉंव में फैला हुआ है| करीब सब हराका महिलाएँ हमसे
जुडी हुई है; संख्या तो निश्चत नही कह सकती| जब भी कोई सभा या बैठक
होती है तो महिलाएँ दूर से चलकर, बच्चों को पेट और पीठ पर बॉंधकर भाग
लेने के लिए आती है|
प्रश्न : नागा समाज में महिलाओं की स्थिती कैसी है?
नागा समाज में महिलाओं को बहुत सम्मान देते है| यहॉं ग्राम परिषद में
भी बडी संख्या मे महिलाएँ है जो आर्थिक रूप से सशक्त है और निर्णय में
भागीदार भी हैं| वे खेतीकिसानी में लगी हुई है| अपने बच्चों को पाल
रही हैं और हर क्षेत्र में पुरुषों के साथ हैं, यद्यपि समाज
पितृसत्तात्मक है|
प्रश्न : महिलाओं के लिए आप किस तरह से काम कर रही है?
मैंने महिलाओं का एक समूह बनाया है जिसमे उनके आर्थिक सशक्तिकरण का
प्रयास किया जाता है| जो महिलाएँ आर्थिक तंगी से जूझती हैं, उन्हे हम
सहयोग करते है| इससे बहुत सी महिलाएँ जुड रही है| इन महिलाओं को किसी
न किसी काम में लगाया जाता है ताकि उनकी आजीविका चलती रहे| बच्चों को
भी शिक्षा में लगाते हैं ताकि वे खाली न रहें|
प्रश्न : आपका जन्म कब हुआ?
मेरा जन्म २ जनवरी १९७७ को हुआ|
प्रश्न : अभी तक अविवाहित क्यों हैं?
यदि मैंने शादी कर ली तो इतना काम नही कर पाऊंगी| यही सोचकर अविवाहित
हूँं| मैंने अपना जीवन समाज के लिए समर्पित कर दिया है| मेरे परिवार
में मेरे पिता और दो बडें भाई है| एक छोटी बहन है| सभी का विवाह हो
चुका है|
... ...
(‘ओजस्विनी’ पत्रिका नवम्बर २०११ से साभार)
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