विकास भारती के झारखंड में शिक्षा प्रकल्प

Published: Monday, Oct 17,2011, 13:40 IST
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दूरदराज के क्षेत्र में रहनेवाले अनेक वनवासी बच्चों के लिए शाला में पढ़ने जाना, यह अभी भी स्वप्नवत है| समाज का यह बहुत बड़ा हिस्सा शहरी क्षेत्र से कटा और - आरोग्य, स्वच्छता, शिक्षा आदि - प्राथमिक सुविधाओं से वंचित है| ऐसे क्षेत्र में झारखंड राज्य का बहुत बड़ा भाग आता है| विकास भारती के कार्यकर्ता इस क्षेत्र के नागरिकों को जीवनावश्यक प्राथमिक सुविधाएँ उपलब्ध कराने के लिए काम कर रहे हैं| यहॉं हम, विकास भारती द्वारा झारखंड में चलाए जा रहे कुछ शिक्षा प्रकल्पों की जानकारी लेंगे|

श्रम निकेतन

यहॉं अनाथ एवं वनवासी जमाति के बच्चों को पहली से पॉंचवी कक्षा तक शिक्षा दी जाती है| इस शिक्षा में नियमित पुस्तकी शिक्षा के साथ व्यावसायिक शिक्षा का भी समावेश है| शाला में बच्चों के निवास की भी व्यवस्था है| निकेतन के कर्मचारी इन बच्चों के साथ पारिवारिक सदस्यों जैसा स्नेहपूर्ण व्यवहार कर इन बच्चों के मानसिक विकास का भी ध्यान रखते है; उन्हें आदर्श नागरिक के रूप में संस्कारित करने का प्रयास करते है| यहॉं से शिक्षा प्राप्त करनेवाले कई लड़के-लड़कियॉं स्वयंरोजगार कर, स्वयं के साथ औरों को भी रोजगार दिलाने का काम कर रहे है| इन विद्यार्थींयों की सफलता देखकर वनवासी जनजाति के अन्य लोगों को, उनके बच्चों को शिक्षा के लिए निकेतन में भेजने की प्रेरणा मिलती है| इस प्रकार निकेतन से पढ़कर निकले विद्यार्थी समाज में, निकेतन के ‘प्रचार-दूत’ बन जाते है| देश और समाज की प्रगति के लिए यह एक शुभसंकेत है|

जत्रा ताना भगत विद्या मंदिर

ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले पिछड़ी जनजाति के विद्यार्थींयों को शिक्षा देने के लिए १९८८ में यह शाला आरंभ की गई| यहॉं पहली से आठवी कक्षा तक के शिक्षा की व्यवस्था है| ग्रामीण क्षेत्र के प्रशिक्षित सेवाभावी शिक्षक अध्यापक का काम करते है| इन शिक्षकों के लिये व्यवस्थापन की ओर से समय-समय पर आवश्यक प्रशिक्षण की व्यवस्था की जाती है| विद्यार्थींयों के निवास एवं अध्ययन व्यवस्था के लिए प्रशस्त भवन, खेल के लि ए मैदान और अन्य साधन-सुविधाएँ हैं| दानदाताओं की ओर से प्राप्त दान से आरंभ की गई इस शाला में नाममात्र शिक्षा शुल्क लिया जाता है| अब शाला को ‘सर्व शिक्षा अभियान’ से भी आंशिक सहायता मिलती है|

कोलेश्‍वरनाथ विद्या मंदिर

आश्रम व्यवस्था के अनुरूप, विद्यार्थींयों को पहली से आठवी कक्षा तक शिक्षा देने के लिए १९८८ में कोएल नदी के किनारे यह शाला आरंभ की गई| यहॉं नैसर्गिक वातावरण में अध्यापन होने के कारण, ग्रामीण क्षेत्र में रहनेवाले ये विद्यार्थी, वातावरण में सहजता से घुल-मिल जाते है| शिक्षा के आरंभ काल में विद्यार्थी और शिक्षकों में सही समन्वय स्थापित हो सके, इस हेतु से प्राथमिक कक्षाओं में स्थानिय उम्मीदवारों को ही शिक्षक नियुक्त किया जाता है| विद्यार्थींयों के लिए  सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है| नियमित पढ़ाई के साथ क्रीडा, योग, व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था है| शिक्षा के संदर्भ में नए अनुभव प्राप्त करने हेतु  विद्यार्थींयों कोअन्य शालाओं को भेट देने ले जाते है|

शक्तिमान विद्यालय, चिंग्री

यह शाला अपंगों के लिए है| यहॉं विद्यार्थींयों को नियमित शिक्षा के साथ, अपंगों के लिए बनाए गए कुछ विशेष प्रशिक्षण दिए जाते है| इन विद्यार्थींयों को स्वयंरोजगार आरंभ करने के लिए इस प्रशिक्षण का उपयोग होता है|

आदिम जनजातीय बालिका प्राथमिक विद्यालय

जैसे कि नाम से स्पष्ट होता है, यह शाला वनवासी बालिकाओं के लिए शुरू की गई है| आदिवासी कल्याण विभाग की सहायता से २००८ में इसकी स्थापना की गई| इस शाला ने अब शिक्षा के लिए वनवासी बालिकाओं को ढुंढना, समाज में शिक्षा और बालिका जागृति का काम भी अपने हाथों में लिया है|

संपर्क

विकास भारती मुख्य कार्यालय
ब्लॉक बिशुनपुर
जिला : गुमला ८३ ५३ ३१
झारखंड (भारत)
फोन : +९१ - ६५२३ - २७८३०६, २७८३५६
फॅक्स : + ९१ - ६५२३ - २७८३०६
ई-मेल : [email protected]
          [email protected]

कैसे पहुँचे

बिशुनपुर गुमला से ३९.४ और रांची से ९५ किलोमीटर दूर है|
हवाई मार्ग : समीपवर्ती हवाई अड्डा रांची| हवाई अड्डा रांची से करीब ७ किलोमीटर दूर| देश के मुख्य शहरों से जुड़ा|
रेल मार्ग : समीपवर्ती रेल स्थानक राची| देश के मुख्य शहरों से जुड़ा|
सड़क मार्ग : रांची, झारखंड के मुख्य शहरों के लिए बस सेवा उपलब्ध|

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