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हरिद्वार : कुष्ठ रोगियों के लिये खुले आत्मनिर्भर जीवन के द्वार

गंगा नदी के किनारे मौत हुई तो मऩुष्य के सारे पाप धुलकर उसे
मुक्ति मिलती है, ऐसा पुराण युग से कहा जाता रहा है और इसी विश्वास
के कारण मुक्ति की अभिलाषा मन में लिये हजारों लोक हरिद्वार में गंगा
नदी के किनारे बरसों मौत का इन्तजार करते पडे रहते है| इन लोगों में
काफी बडी संख्या होती है, रिश्तेदार एवं समाज ने नकारे हुए असहाय बूढे
और असाध्य रोगियों की| खुद को पापी समझ बैठे ये लोग यहॉं बहुत ही बुरे
हालात सहन करते हुए अपने आखरी दिन की प्रतिक्षा करते रहते है| इन
लोगों के पास ना खाने के लिये पैसा होता है, ना रहने की कोई सुविधा|
ये लोग तो खुद के बिमारियों का साधा इलाज भी नहीं कर पाते|
हरिद्वार में आनेवाले इस प्रकार के निराश्रितों में बडी संख्या कुष्ठ
रोगियों की देखी जाती है| समाज से मिली धुतकार, बीमारी से मिली पीडा
और जीवन से मिली निराशा लिये हरिद्वार में स्वर्ग के द्वार खुलने की
राह देखते हुए इन कुष्ठ रोगियों के लिये एक संगठन ने अच्छे इलाज और
आत्मनिर्भर जीवन के नये द्वार खोले हैं| ’दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ नामक
यह संगठन पिछले १४ सालों से इसी दिशा में कार्य कर रहा है|
१९८६ के दौरान गंगाजी के दर्शन करने के लिये हरिद्वार पहुँचे, रा.
स्व. संघ के पूर्व प्रचारक आशिष गौतम से गंगाजी के किनारे बैठे, हाथ
फैलाकर भीख मॉंगते कुष्ठ रोगियों की दुर्दशा देखी नहीं गई| और इसी
व्यथा से उन्होंने इन कुष्ठ रोगियों के लिये कार्य प्रारंभ किया| उनके
घावों पर हर दिन मरहम- पट्टी करना, रोगियों को उनके झोपडी में दवाइयॉं
पहुंचाना, और इतना ही नहीं, कुछ जगह तो समय- समय पर कुष्ठ रोगियों को
दवाई खिलाने का काम भी उन्होंने किया| गौतमजी के इस सेवा भाव के कारण
धीरे धीरे लोग उनसे जुडने लगे| कुछ सेवा भावी डॉक्टर भी उनके साथ हो
लिये| कुछ कुष्ठ रोगियों ने भी खुद प्राथमिक चिकित्सा सीख ली| इससे
कुष्ठ रोगियों की सेवा और भी अच्छी तरह और होने लगी और साथ ही साथ रखी
गई ’दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ की नींव|
कुष्ठ रोगियों के सेवा का काम अब इतने तेजी से बढता गया की जल्द ही
आशीष गौतमजी को एक डिस्पेंसरी खोलनी पडी| आगे चलते इसी डिस्पेंसरी का
लोगों की सहायता से एक छोटे अस्पताल में रूपांतरण हुआ| अस्पताल एवं
नियमित सुश्रुषा मिलने के कारण इस संगठन की छत्र छाया में आनेवाले
कुष्ठ रोगियों की संख्या बढने लगी| इनमें स्त्री -पुरुष दोनों ही थे,
मगर उसमें एक विरोधाभास भी था| ज्यादातर स्त्री कुष्ठ रोगी अकेली आती
थी, और पुरुष कुष्ठ रोगी के साथ उसकी पत्नी रहती थी| इसका कारण बडा ही
विचित्र और मानवतापर एक धब्बा सा है| यदि किसी पुरुष को कुष्ठ रोग हुआ
है ये पता चलने के बाद भी उसकी पत्नी उसका त्याग नहीं करती| बल्कि पति
की सेवा करने के लिये वह स्वयं सारा घर-बार, खुद का सारा सुख चैन
छोडकर उसके साथ हो लेती है| मगर दुर्भाग्यवश यदि किसी भी स्त्री को
कुष्ठ रोग हुआ, तो यह पता चलते ही उसका पती उसका साथ छोड कर उसे घर से
बाहर खदेड देता है, और स्वयं दुसरी शादी रचा कर नये संसार में लिप्त
हो जाता है| यदि महिला बूढी हो, उसका पति ना हो तो भी उसे इसी प्रकार
का अनुभव उसके बेटे ओर अन्य रिश्तेदारों से मिलता है| ऐसी
बेसहारा महिला कुष्ठ रोगी अपने शरीर और मन पर हुए घावों के इलाज के
लिये भीख मॉंगकर अपना गुजारा करती है| कुष्ठ रोगियों के विधवाओं की
समस्या तो ओर भी गंभीर हो जाती है| साथ ही इन रोगियों के बच्चों की
शिक्षा आदी के भी नए सवाल खडे हो जाते हैं|
ऐसी जो महिलाएँ ’दिव्य प्रेम सेवा मिशन’ में पहुँचती है उन्हे
आत्मनिर्भर बनाने का भी काम यहॉं होता है| ये महिलाएँं भीख मॉंगने को
मजबूर ना हो इसी विचार के साथ आशीष गौतमजी ने यहॉं गृह उद्योगों की
शुरुआत की| साथ ही साथ उन्होंने यहॉं कुष्ठ रोगियों के बच्चों के लिए
एक स्कूल भी शुरू किया है|
आशीष गौतमजी कहते है- समाज में बदलाव और सुधार का काम यह सिर्फ सरकार
की जिम्मेदारी नही है| हम आम लोग भी समाज का ही एक हिस्सा हैं| हमें
भी खुद होकर इस बदलाव के लिए आगे आना चाहिए| हमने यह कोशिश की, और यही
वजह है कि पिछले १४ सालों की मेहनत से तैयार यह ’दिव्य प्रेम सेवा
मिशन’ सामाजिक ताने-बाने से ही अपना काम कर रहा है| हमारे इस कार्य
में अंशमात्र भी सरकारी धन का सहभाग नहीं है| मिशन का पूरा कार्य आज
भी स्वयंसेवकों की मेहनत औ़र आम लोगों से मिले आर्थिक सहायता के
बलबूते चल रहा है|
कुष्ठ रोग को लेकर समाज में कई गलत धारणाएँ हैं| मगर यह सच है कि यह
रोग न तो छूने से फैलता है और न ही वह ला-इलाज है| रोग से घृणा करो,
रोगी से नहीं ऐसा कहा जरूर जाता है, मगर व्यवहार में यह बात दिखती
नहीं| समाज अगर अपने नजरिए में बदलाव लाए और कुष्ठ रोगियों की सहायता
के लिये हाथ बढाए तो ये समस्या जड से खत्म हो सकती है| यही मेरे जीवन
का लक्ष्य है, और वह पूरा नहीं हो जाता तब तक मेरा ये मिशन जारी
रहेगा... इन शब्दों के साथ आशिष गौतमजी उनका संकल्प दोहराते हैं|
सम्पर्क :
दिव्य प्रेम सेवा मिशन
सेवा कुंज, चांदीघाट
हरिद्वार २४९४०८
उत्तराखंड (भारत)
फोन : (०१३३४) २२२२११
ई-मेल : [email protected]
कैसे पहुँचे :
हवाई मार्ग- नजदीक हवाई अड्डा जॉली ग्रान्ट देहरादून है| लेकिन दिल्ली
तक रेल या सडक मार्ग से आने के बाद हरिद्वार के लिए फ्लाइट लेना
सुविधाजनक है|
रेल मार्ग- भारत के सर्व प्रमुख शहरोंसे हरिद्वार रेल मार्ग से जुडा
है|
सडक मार्ग- राष्ट्रीय महामार्ग ४५ हरिद्वार और दिल्ली को जोडता
है|
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