अपनी ही गोली से शहीद हुआ दिलेर : शहीद चन्द्रशेखर आजाद

Published: Monday, Feb 27,2012, 08:18 IST
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महान देशभक्त चंद्रशेखर आजाद 15 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद स्वतंत्रता संग्राम के अनन्य योद्धा के रूप में ख्याति प्राप्त किए थे। आजाद का जन्म 23 जुलाई को हुआ था। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने के कारण उन्हें पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। अदालत में जज के प्रश्नों का उत्तर आजाद ने बड़ी निर्भीकता से दिया था। जज ने पूछा तुम्हारा नाम? जवाब था आजाद। उनके उत्तर से गुस्साए जज ने 15 बेंत मारने की सजा दी। प्रत्येक बेंत पड़ते ही आजाद भारत माता की जय तथा महात्मा गांधी की जय का उद्घोष किए। आजाद यह नारा तब तक लगाते रहे जब तक कि वह बेहोश नहीं हो गए।

उन्होंने संकल्प किया था कि वे न कभी पकड़े जाएँगे और न ब्रिटिश सरकार उन्हें फाँसी दे सकेगी। इसी संकल्प को पूरा करने के लिए इसी पार्क में उन्होंने स्वयं को गोली मारकर मातृभूमि के लिए प्राणों की आहुति दी। आजाद आजीवन ब्रह्मचारी रहे। आजाद का जन्म स्थान भाबरा अब 'आजादनगर' के रूप में जाना जाता है।

जब क्राँतिकारी आंदोलन उग्र हुआ, तब आजाद उस तरफ खिंचे और 'हिन्दुस्तान सोशलिस्ट आर्मी' से जुड़े। रामप्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में आजाद ने काकोरी षड्यंत्र (1925) एवं साण्डर्स गोलीकांड (1928) में सक्रिय भूमिका निभाई। अलफ्रेड पार्क, इलाहाबाद में 1931 में उन्होंने रूस की बोल्शेविक क्राँति की तर्ज पर समाजवादी क्राँति का आह्वान किया। आजाद ने भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव व अन्य क्रांतिकारियों के साथ देश की आजादी के लिए संगठित हो प्रयास शुरू किए। काकोरी कांड के बाद जब आजाद 27 फरवरी को प्रयाग के अल्फ्रेड पार्क में बैठे थे तभी उन्हें घेर लिया गया।

एक घंटे तक दोनों तरफ से गोलियां चलती रही। एक ओर पूरी फौज और दूसरी तरफ अकेले आजाद। जब गोलियां खत्म होने लगीं तो आखिरी गोली अपनी कनपटी पर मारकर आजाद ने अपना नाम आजाद सार्थक करते हुए शहीद हो गए। डा. रविंदर ने कहा कि चंद्रशेखर आजाद जैसे स्वतंत्रता संग्राम के महानायक का बलिदान देशवासियों व विशेष कर युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत है। उन्होंने कहा कि आजाद ने देश के युवाओं में राष्ट्रभक्ति की भावना उजागर की।

'हमें तो फ्रंटियर से लेकर बर्मा तक, नेपाल से लेकर कराची तक के हर हिन्दुस्तानी को साथ लेकर एक तगड़ी सरकार बनानी है।' -आजाद।

माँ हम विदा हो जाते हैं, हम विजय केतु फहराने आज।
तेरी बलिवेदी पर चढ़कर माँ निज शीश कटाने आज॥

मलिन वेश ये आँसू कैसे, कंपित होता है क्यों गात?
वीर प्रसूति क्यों रोती है, जब लग खंग हमारे हाथ॥

धरा शीघ्र ही धसक जाएगी, टूट जाएँगे न झुके तार।
विश्व कांपता रह जाएगा, होगी माँ जब रण हुंकार॥

नृत्य करेगी रण प्रांगण में, फिर-फिर खंग हमारी आज।
अरि शिर गिरकर यही कहेंगे, भारत भूमि तुम्हारी आज॥

अभी शमशीर कातिल ने, न ली थी अपने हाथों में।
हजारों सिर पुकार उठे, कहो दरकार कितने हैं॥

- चंद्रशेखर आजाद के वीर रस की काव्य झलकियाँ।

शत शत नमन ...

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