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बाघा जतिन के १४० वें जन्मदिवस पर शत् शत् नमन : राष्ट्र वंदना

बाघा जतिन ( ०७ दिसम्बर, १८७९ - १० सितम्बर , १९१५) जतींद्र नाथ
मुखर्जी का जन्म जैसोर जिले में सन् १९७९ ईसवी में हुआ था। पाँच वर्ष
की अल्पायु में ही उनके पिता का देहावसान हो गया। माँ ने बड़ी कठिनाई
से उनका लालन-पालन किया। १८ वर्ष की आयु में उन्होंने मैट्रिक पास कर
ली और परिवार के जीविकोपार्जन हेतु स्टेनोग्राफी सीखकर कलकत्ता
विश्वविद्यालय से जुड़ गए। वह बचपन से हई बड़े बलिष्ठ थे। सत्यकथा है
कि २७ वर्ष की आयु में एक बार जंगल से गुजरते हुए उनकी मुठभेड़ एक बाघ
(रॉयल बेन्गाल टाइगर) से हो गयी। उन्होंने बाघ को अपने हंसिये से मार
गिराया था। इस घटना के बाद यतीन्द्रनाथ "बाघा जतीन" नाम से विख्यात हो
गए थे।
उन्हीं दिनों अंग्रेजों ने बंग-भंग की योजना बनायी। बंगालियों ने इसका
विरोध खुल कर किया। यतींद्र नाथ मुखर्जी का नया खून उबलने लगा।
उन्होंने साम्राज्यशाही की नौकरी को लात मार कर आन्दोलन की राह पकड़ी।
सन् १९१० में एक क्रांतिकारी संगठन में काम करते वक्त यतींद्र नाथ
'हावड़ा षडयंत्र केस' में गिरफ्तार कर लिए गए और उन्हें साल भर की जेल
काटनी पड़ी।
जेल से मुक्त होने पर वह 'अनुशीलन समिति' के सक्रिय सदस्य बन गए और
'युगान्तर' का कार्य संभालने लगे। उन्होंने अपने एक लेख में उन्हीं
दिनों लिखा था-' पूंजीवाद समाप्त कर श्रेणीहीन समाज की स्थापना
क्रांतिकारियों का लक्ष्य है। देसी-विदेशी शोषण से मुक्त कराना और
आत्मनिर्णय द्वारा जीवनयापन का अवसर देना हमारी मांग है।'
क्रांतिकारियों के पास आन्दोलन के लिए धन जुटाने का प्रमुख साधन डकैती
था। दुलरिया नामक स्थान पर भीषण डकैती के दौरान अपने ही दल के एक
सहयोगी की गोली से क्रांतिकारी अमृत सरकार घायल हो गए। विकट समस्या यह
खड़ी हो गयी कि धन लेकर भागें या साथी के प्राणों की रक्षा करें! अमृत
सरकार ने जतींद्र नाथ से कहा कि धन लेकर भागो। जतींद्र नाथ इसके लिए
तैयार न हुए तो अमृत सरकार ने आदेश दिया- 'मेरा सिर काट कर ले जाओ
ताकि अंग्रेज पहचान न सकें।' इन डकैतियों में 'गार्डन रीच' की डकैती
बड़ी मशहूर मानी जाती है। इसके नेता जतींद्र नाथ मुखर्जी थे। विश्व
युद्ध प्रारंभ हो चुका था। कलकत्ता में उन दिनों राडा कम्पनी
बंदूक-कारतूस का व्यापार करती थी। इस कम्पनी की एक गाडी रास्ते से
गायब कर दी गयी थी जिसमें क्रांतिकारियों को ५२ मौजर पिस्तौलें और ५०
हजार गोलियाँ प्राप्त हुई थीं। ब्रिटिश सरकार हो ज्ञात हो चुका था कि
'बलिया घाट' तथा 'गार्डन रीच' की डकैतियों में जतींद्र नाथ का हाथ
था।
९ सितंबर १९१५ को पुलिस ने जतींद्र नाथ का गुप्त अड्डा 'काली पोक्ष'
(कप्तिपोद) ढूंढ़ निकाला। जतींद्र बाबू साथियों के साथ वह जगह छोड़ने
ही वाले थे कि राज महन्ती नमक अफसर ने गाँव के लोगों की मदद से उन्हें
पकड़ने की कोशश की। बढ़ती भीड़ को तितरबितर करने के लिए जतींद्र नाथ
ने गोली चला दी। राज महन्ती वहीं ढेर हो गया। यह समाचार बालासोर के
जिला मजिस्ट्रेट किल्वी तक पहुंचा दिया गया। किल्वी दल बल सहित वहाँ आ
पहुंचा। यतीश नामक एक क्रांतिकारी बीमार था। जतींद्र उसे अकेला छोड़कर
जाने को तैयार नहीं थे। चित्तप्रिय नामक क्रांतिकारी उनके साथ था।
दोनों तरफ़ से गोलियाँ चली। चित्तप्रिय वहीं शहीद हो गया। वीरेन्द्र
तथा मनोरंजन नामक अन्य क्रांतिकारी मोर्चा संभाले हुए थे। इसी बीच
यतींद्र नाथ का शरीर गोलियों से छलनी हो चुका था। वह जमीन पर गिर कर
'पानी-पानी' चिल्ला रहे थे। मनोरंजन उन्हें उठा कर नदी की और ले जाने
लगा। तभी अंग्रेज अफसर किल्वी ने गोलीबारी बंद करने का आदेश दे दिया।
गिरफ्तारी देते वक्त जतींद्र नाथ ने किल्वी से कहा- 'गोली मैं और
चित्तप्रिय ही चला रहे थे। बाकी के तीनों साथी बिल्कुल निर्दोष हैं।
'इसके अगले दिन भारत की आज़ादी के इस महान सिपाही ने अस्पताल में सदा
के लिए आँखें मूँद लीं।
बाघा जतिन के अन्तिम शब्द -
सूख न जाए कहीं पौधा ये आज़ादी का, खून से अपने इसे इसलिए तर करते
हैं
दर-ओ-दीवार पर हसरत से नज़र करते हैं, खुश रहो अहल-ए-वतन, हम तो सफ़र
करते हैं
आई.बी.टी.एल एवं राष्ट्र वंदना मिशन ऐसे क्रांतिकारियों को नमन करता
है! IBTL
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