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क्या विदेशी कंपनियों के आने से भारत का निर्यात बढ़ता है : राजीव दीक्षित
क्या विदेशी कंपनियों के आने से पूंजी आती
है (भाग ०२) से आगे पढ़ें ... हमने प्रयास किया कि भारत के पिछले
६३-६४ (63-64) वर्षों के निर्यात के आंकड़े की खोज की जाए। वह आंकड़े
हमे प्राप्त भी हुए, भारत सरकार के विभिन्न मंत्रालयों एवं भारतीय
रिज़र्व बैंक के पुस्तकालय से भारत के विगत वर्षों के निर्यात के आकड़े
हमे मिले।
जानकारी में यह आया की जैसे-जैसे विदेशी कंपनियां भारत में आ रही है
हमारा निर्यात कम हो रहा है जब विदेशी कंपनियां नहीं थी तब हम बहुत
अधिक निर्यात करते थे। किंतु जबसे विदेशी कंपनियों का आना प्रारंभ हुआ
निर्यात घटता ही जा रहा है। सन १८१३-१८५० (1813-1850) के मध्य में
अंग्रेजी तंत्र ने भारत के कई सर्वेक्षण करवाए जैसे आर्थिक, शिक्षा,
चिकित्सा एवं सामाजिक स्थिति का सर्वेक्षण आदि
जिसमें से आर्थिक आरक्षण के आकड़े कहते है की जब भारत में अंग्रेजो की
केवल एक कंपनी थी ईस्ट इंडिया उस समय संपूर्ण विश्व में हम निर्यात
करते थे जिसका भाग सकल विश्व के निर्यात में ३३% (33) था। महत्वपूर्ण
बात यह है की यह निर्यात ईस्ट इण्डिया कंपनी नहीं करती थी, हम स्वयं
करते थे। उनका निर्यात तो बहुत मामूली सा होता था। १८४० (1840) के कुल
निर्यात के आंकड़े निकालने पर पता चलता है। यदि भारत का कुल
निर्यात १०० रु (100) का होता था तो ईस्ट इंडिया कंपनी का निर्यात
उसमें मात्र ३ रु ६० पैसे (3.60) का होता था। इस बात को ठीक से समझिए
हम भारतीय व्यापारी एवं उद्योगपति सीधे दूसरे देशों में जाकर अपनी
वस्तुएं विक्रय (बेचते) करते थे।
१०० रु (100) की तो, ईस्ट इंडिया कंपनी भारत से वस्तु क्रय (खरीद) कर
विदेशों में ३.६० रु (3.60) का विक्रय करती थी। यह तब की स्थिति थी जब
भारत में केवल एक विदेशी कंपनी थी। अब तो विदेशी कंपनियों की संख्या
बढ़ कर ५००० (5000) हो गई तो क्या होना चाहिए ?.... निर्यात बढ़ना चाहिए
! किंतु आकड़े बता रहे है की हमारा निर्यात स्वतंत्रता के पूर्व जितना
था स्वतंत्रता के पश्चात उससे भी कम होता चला गया आपको कुछ वर्षों के
अनुसार बताता हूँ विश्व में १८४० (1840) से हमारा निर्यात था ...
१९३८ (1938) तक आते आते हमारा निर्यात हो गया ४.५% (4.5)
१८४० - ३.३ % | 1940 - 3.3%
१९५० - २.२ % | 1950 - 2.2%
१९५५ - १.५ % | 1955 - 1.5%
१९६० - १.२ % | 1960 - 1.2%
१९६५ - १.० % | 1965 - 1.0%
१९७० - ०.७ % | 1970 - 0.7%
१९७५ - ०.५ % | 1975 - 0.4%
१९८० - ०.१ % | 1980 - 0.1%
१९९० - ०.०५ % | 1990 - 0.04%
१९९१ - ०.०४५ % | 1991 - 0.045%
१९९२ - ०.०४२ % | 1992 - 0.042%
१९९३ - ०.०४ % | 1993 - 0.04%
१९९४ - ०.३८ % | 1994 - 0.382%
इसी क्रम में २००८-२००९ (2008-09) में हमारा निर्यात ०.५% (0.5)
अर्थात आधा प्रतिशत हमारा निर्यात है विश्व में जब मात्र एक विदेशी
कंपनी थी हम अंग्रेजो द्वारा पदाक्रांत (गुलाम) थे तो निर्यात था ३३%
(33) लेकिन अब ५००० (5000) विदेशी कंपनियां है तो केवल ०.५% (0.5) ही
है। अब स्वयं उत्तर दे निर्यात बड़ा है अथवा घटा है ? ...
स्पष्ट है निर्यात बहुत तीव्रता से घट रहा है एवं विदेशी कंपनियां
भारत का निर्यात नहीं बढाती है। तो क्या बढाती है ? विदेशी कंपनियां
इसका उल्टा करती है भारत में आने के बाद भारत का आयत (इम्पोर्ट) बढाती
है। क्यूंकि सभी विदेशी कंपनियों को निर्यात की अपेक्षा आयात करने में
अधिक रूचि होती है क्यूंकि जब वह आयात करेंगे तो लाभ उनके देश को
मिलेगा।
एक उदाहरण से समझिए-- अमेरिका की एक कंपनी भारत आती है, अब वह अमेरिका
की वस्तुओं को भारत में ले कर आएगी विक्रय (बेचेंगे) करेगी तो लाभ
अमेरिका को ही मिलेगा। इसी कारण उनका प्रयास रहता है की अमेरिकी
वस्तुओं का आयात भारत में अधिकाधिक किया जाए जिससे भारत का अधिकाधिक
लाभ अमेरिका जाए। तो वह कंपनी अपना शुद्ध लाभ ले कर ही जायेगी, किंतु
अमेरिका से कच्चा माल, तकनीकी आदि क्रय (खरीद) कर भारत में ला कर
विक्रय (बेचेंगे) करेंगे एवं उसकी पूंजी भी अमेरिका ले जायेंगे ये
उनका दूसरा लाभ है।
जैसा आपको ज्ञात हुआ की जब ईस्ट इंडिया कंपनी भारत में थी तब भारत के
कुल निर्यात में उसका भाग मात्र ३.६% (3.6) था किंतु अब जो हमारा कुल
निर्यात है उसका मात्र ५.५२ % (5.52) विदेशी कंपनियां करती है जबकि
उनकी संख्या ५००० (5000) से अधिक हो गई है अगले भाग में पढें :
क्या विदेशी कंपनियों के आने से लोगों को आजीविका मिलती है,
गरीबी कम होती है?
# भारत में विदेशी कंपनियों द्वारा की जा रही लूट : राजीव
दीक्षित (भाग ०१)
# क्या विदेशी कंपनियों के आने से पूंजी आती है : राजीव दीक्षित
(भाग ०२)
- भाई राजीव दीक्षित | अन्य लेखों के लिए
राजीव भारत खंड पढ़ें
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