महान देशभक्त चंद्रशेखर आजाद 15 वर्ष की अल्पायु में ही अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर गांधी जी के असहयोग आंदोलन में कूद स्वतंत्र..
भारतवासियों ने विश्व को कपड़ा पहनना एवं बनाना सिखाया है : भारत का स्वर्णिम अतीत
पूर्णतः दोषी आप नहीं है, संपन्नता एवं उन्नति रूपी प्रकाश हेतु हम
पूर्व की ओर ताकते है किंतु सूर्य हमारी पीठ की ओर से निकलता है।
देशकाल की दृष्टि से कहूँ तो मात्र १९०-२४० वर्ष पूर्व का भारत, दूसरे
शब्दों में, मनुष्य की औसत आयु ६० वर्ष भी मान ले तो मात्र ३-४ पीढ़ी
पूर्व। दो सौ से भी अधिक विद्वान इतिहासकारों ने, शोधकर्ताओं ने जब
"सोने की चिड़िया" (वर्तमान भारतियों में भारत के इतिहास के नाम पर
शेष) पर शोध कर जो शोधपत्र, पुस्तके आदि लिखी उसके कुछ अंश आपसे साझा
कर रहा हूँ।
जिनमें से एक थे, थोमस बेबिगटन मैकोले (टी.बी.मैकोले) जो १८३४ में आये
एवं १८५१ लगभग १७ वर्ष तक भारत में रहे। जिस कुव्यवस्था के कारण हमे
अपने ही देश का अतीत आपको विदेशी विद्वानों के प्रमाणों आदि से बताना
पड़ रहा है, उसमें इनका बहुत बड़ा योगदान रहा है। इन्हें अभी विराम देते
है, लोगो में धारणा बनी रहती है की अंग्रेजो के पहले का भारत मात्र
कृषि प्रधान देश था जो की पूर्णतः असत्य है। अंग्रेजी इतिहासकार
विलियम डिग्वी जिनके बारे में प्रचलित है की वे बिना किसी प्रमाण के
कुछ बोलते नहीं, लिखते नहीं उन्होंने १७ वी शताब्दी में भारत को
"सर्वश्रेष्ठ" व्यापारिक, कृषि एवं औद्योगिक देश लिखा है। भारत की
भूमि को सबसे उपजाऊ, व्यापारियों को सबसे निपुण एवं भारतीय शिल्पकारों
एवं दस्तकारो द्वारा निर्मित किसी भी उत्पाद का केवल स्वर्ण के ही
बदले विक्रय होने की बात लिखता है। आगे इनकी लेखनी से यह निश्चित हो
जाता है की भारत निर्यात प्रधान देश था।
फ़्रांसिसी इतिहासकार फ्रांस्वा पेराड ने सन १७११ में भारत पर लिखे
ग्रन्थ में सैकड़ों प्रमाण दिए है, वे लिखते है " मेरी जानकारी में
भारत देश में ३६ प्रकार के ऐसे उद्योग चलते है जिनमें उत्पादित
प्रत्येक वस्तु विदेशो में निर्यात होती है", "भारत के उत्पाद सबसे
उत्कृष्ट एवं सबसे सस्ते होते है", "मुझे मिले प्रमाण के अनुसार है
भारत का निर्यात ३००० वर्षों (अर्थात बुद्ध से ५०० वर्ष एवं महावीर जी
से लगभग ६५० वर्ष पूर्व) से निर्बाधित रूप चलता आ रहा है"। स्कॉटिश
इतिहासकार मार्टिन लिखते है "जब ब्रिटेन एवं इंग्लैण्ड के निवासी
बर्बर एवं जंगली जानवरों की तरह जीवन जीते थे तब भारत में सर्वोच्च
कोटि का वस्त्र बनता था एवं विश्व के देशों में विक्रय होता था"। आगे
लिखते है की "मुझे यह स्वीकार करने में कोई शर्म नहीं है की
भारतवासियों ने विश्व को कपड़ा पहनना एवं बनाना सिखाया है" इसके साथ वह
यह भी जोड़ते है की "रोमन साम्राज्य में जितने भी राजा रानी हुए है उन
सभी ने भारत में ही निर्मित कपड़े पहने है, आयात किये है"|
विलियम वार्ड ने एवं फ़्रांस के टेवर्नियर ने भी भारत के वस्त्र उद्योग
के बारे में बहुत से प्रमाण दिए है। सन १८१३ में अंग्रेजो की संसद में
बहस के समय कई अंग्रेजी सांसदों ने कई प्रमाणों एवं सर्वेक्षणों के
आधार पर विवरण दिया, सारे विश्व का लगभग ४३% उत्पादन अकेले भारत में
होता है,यही बात उन्होंने १८३५ में एवं १८४० तक उद्धरण (quote) की।
ऐसे ही सारे विश्व के निर्यात में भी भारत का भाग लगभग ३३% था इसे भी
संसद में १८४० तक तक उद्धरण किया गया। इसी क्रम में एक अकड़ा सकल जगत
की कुल आमंदनी का अंग्रेजो ने उद्धरण किया जिसमें से लगभग २७% भाग
हमारा था।
जी.डब्ल्यू.लिटनेर, थोमस मुनरो, पैनडर्कास्ट्, कैम्पवेल आदि
अधिकारीयों ने भी भारत की तकनीकी एवं शिक्षा व्यवस्था पर बहुत कार्य
किया।
कैम्पवेल लिखते है "जिस देश का उत्पादन सबसे अधिक होता है यह तभी संभव
है जब वहाँ कारखाने हो, कारखाने तभी संभव है जब तकनिकी हो, तकनीकी तभी
संभव है जब विज्ञान हो एवं जब विज्ञान मूल रूप से शोध के लिए प्रस्तुत
हो तब उसमें से तकनीकी का निर्माण होता है"।
शोध → विज्ञान { मूल विज्ञान (फंडामेंटल) > प्रयोगिक विज्ञान
(एप्लाइड) } → तकनीकी → कारखाने → उत्पाद
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आगे पढ़ें : भारत
में ७ लाख ३२ हज़ार गुरुकुल एवं विज्ञान की २० से अधिक शाखाएं
थीं
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IBTL
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