सरहद को प्रणाम, फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी की पहल

Published: Monday, Dec 10,2012, 19:45 IST
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फरीदाबाद से जाने वाले दल का विवरण : आशीष गौड़, तुषार त्यागी, दिनेश शर्मा, प्रदीप सिंह, विपिन वर्मा, ब्रिजेन्द्र सिंह, कनिष्क गुप्ता, अशोक कुमार, स्वामीनन्द सिन्हा और पुनीत सिंगोदिया
कार्यक्रम : सरहद को प्रणाम,
आयोजक : फोरम फॉर इंटीग्रेटेड नेशनल सिक्योरिटी, जिला : फरीदाबाद,
सीमा क्षेत्र : मेघालय भारत बांग्लादेश सीमा,
आधार शिविर : शिलॉंग
कार्यक्रम अवधि : 19 -23 नवम्बर

गत सितम्बर मास में फिन्स द्वारा आयोजित इस साहसिक कार्यक्रम के बारे में पता चला, कार्यक्रम का नाम था सरहद को प्रणाम, नाम में ही इतना आकर्षण था कि पूछे बिना रहा न गया, क्या है यह कार्यक्रम?, क्या होगा इसमें?, कहां जायेंगे? क्या करेंगे? कहां रहेंगे? क्या सच में सरहद पर जाने का मौका मिलेगा? क्या हम सच में सैनिकों से मिल सकते है? इस कार्यक्रम का हेतु क्या है? तो उत्तर था हाँ सरहद पर जाने का अवसर मिलेगा, परन्तु पूरे देश में हर जिले से केवल 10 युवकों को, और वह भी तब जब आप इससे पहले आयोजित होने वाले प्रशिक्षण वर्ग में उत्तीर्ण होते है जहाँ आपको अपनी शारीरिक दक्षता सिद्ध करनी होगी, साथ ही साथ आपको आधार शिविर तक जाने व वापस आने का पूरा खर्च स्वयं वहन करना होगा, इस कार्यक्रम का हेतु है युवाओं को, जो किसी भी देश के सबसे मजबूत स्तंभ होते है, उनको सरहद पर हमारे सैनिकों व हमारे सीमान्त क्षेत्र में रहने वाले ग्राम वासियों से मिलने का अवसर देना, जिससे वह सीमा पर रहने वाले हमारे सैनिक भाइयों व ग्राम वासियों के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को जान सके कि किस प्रकार विषम से विषम परिस्थिति में भी हमारे वीर सैनिक हर समय दिन हो या रात, हमारे देश की सीमाओं की रक्षा करते है। साथ ही साथ हम जान सके कि शत्रु के आक्रमण का सबसे पहले सामना करने वाले हमारे ग्राम वासी किन सुविधाओं के साथ सुदूर सीमा पर अपना गुजारा करते है। क्या-क्या समस्या का उन्हें सामना करना पड़ता है, यही सब जानने व यह जान कर सरहद के इस मार्मिक सन्देश को संपूर्ण देश वसियों तक पहुँचाने वाले इस मिशन का नाम है "सरहद को प्रणाम"।

इस प्रकार 50 से भी अधिक आवेदनोँ में से शारीरिक व मानसिक रूप से दक्ष केवल 10 युवकों का चयन इस अद्भुत कार्यक्रम के लिए किया गया था कार्यक्रम के कुल चार चरण थे : 1) चयन व प्रशिक्षण 2) तीर्थ जल संग्रह 3) सरहद को प्रणाम 4) सरहद का सन्देश लोगो तक पहुँचाना. पहला चरण पूरा हुआ तो अब समय था सीमा के पूजन के लिए तीर्थ जल संग्रह का, लगा कि मंदिरों व तीर्थ स्थलों से जल लेना है तो ले लेंगे। परंतु जब पता चला कि यह तीर्थ धार्मिक स्थल तो है ही, साथ ही साथ यह तीर्थ वह पवित्र घर है, जंहा पर इस देश की रक्षा के लिए अपने प्राणों को न्योछावर करने वाले शहीद रहते थे, जी हाँ हमारे हुतात्मा शहीद सैनिक भाई, कैसे जाकर शहीद सैनिक के घर से जल मांगेंगे, और वह क्या सोचेंगे। क्या कहेंगे? इसी पशोपेश में ढूढते-2 पहुँच गए शहीद देशराज सिंह भडाना के घर पर, जाकर प्रणाम कर उस वीर के पिता के चरण स्पर्श किये तो थोडा साहस बढ़ा। और सकुचाते हुए उनसे थोडा सा जल माँगा तो उस वीर के पिता जो स्वयं एक सैनिक रह चुके है, भावुक हो गए। आँखों से अनायास ही अश्रु बहने लगे तो हमारा भी मन भारी हो गया। लगा कि उनकी दुखती रग पर वार किया हो, परन्तु जब उन्होंने सहर्ष जल दिया व कहा कि वह तो मान बैठे थे कि आज की पीढ़ी अपने कर्तव्य को भूल ही गयी है, और हमें देख उनका विश्वास पुनः जागृत हुआ है तो उनके मुख से यह सुन कर हमारा भी साहस बढ़ा और हम आगे बढ़ चले हमने तय किया कि आगे जिस घर में जायेंगे हमारे शहीद की माता के चरण धो कर ही जल लेंगे क्योंकि उन चरणों का ही प्रताप है यह जो हमारे सैनिक भाई बिना किसी भय के हर क्षण देश सेवा में तल्लीन है। आज तक यह केवल सुना था कि भारतीय सेना में सर्वाधिक सैनिक ग्रामीण क्षेत्र से आते हैं परन्तु प्रत्यक्ष यह देखा तो किसी आश्चर्य से कम नहीं था। जिस भी ग्राम में जायें, मानों वीरों की धरती है यह, कोई भी ग्राम देश के प्रति बलिदान देने में पीछे नहीं, हर ग्राम में कोई न कोई शहीद था। इस कार्यक्रम में अब तक का यह सबसे भावुक कर देने का क्षण था। अब हमारे पास फरीदाबाद के शहीदों के तीर्थ स्वरुप घरों से लिया गया पवित्र जल था, यही जल ले कर हम भारत के पूर्वोतर भाग में स्थित हमारे आधार शिविर शिलॉग की और चल पड़ें।

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15 नवम्बर 2012, शिलॉग जाने के लिए हम 10 युवक रात्रि 10 बजे फरीदाबाद से दिल्ली गये व वहां से रात्रि 12 बजे शिलॉग के लिए ट्रेन में रवाना हुए। यह पहला मौका था हम सभी के लिए, अपने देश के पूर्वोतर भाग में जाने का। ट्रेन में ही हमें मेरठ (उत्तर प्रदेश) से इसी कार्यक्रम में भाग लेने के लिए आये हुए भाई मिले। इनसे मिल ही रहे थे कि गंगानगर (राजस्थान ) से आया हुआ दल भी मिल गया। उन्हें आगे त्रिपुरा जाना था। पूरे जोश के साथ हम गुवाहाटी पहुंचे, हमें अपने आधार शिविर पर 19 नवम्बर को पहुँचना था तो समय देख हम सभी गुवाहाटी स्थित माता कामाख्या के दर्शन करने पहुँच गए। वहां माता से कार्यक्रम व इसके हेतु की सफलता हेतु आशीर्वाद मांग शेष गुवाहाटी भ्रमण को निकले। अपने देश के इस भाग को देख इस बात पर और भी दृढ़ विशवास हो गया कि ईश्वर ने हमारे देश से अधिक सुन्दरता संपूर्ण विश्व में किसी को नहीं दी। इस प्रकार गुवाहाटी दर्शन के बाद हम शिलॉग की ओर रवाना हो गये। यहाँ मार्ग में गाडी पेट्रोल भरवाने रुकी तो एक और शहीद के दर्शन हुए। जी हाँ, यह पेट्रोल पंप कारगिल युद्ध में वीरगति पाने वाले कप्तान कीशिंग क्लिफोर्ड नोंग्रुम को तत्कालीन सरकार ने दिया था। भारत माता की रक्षा हेतु अपने प्राण देने वाले इस वीर को नमन कर हम आगे बढ चले। प्रथम दिन 19 नवम्बर को विश्राम करने के बाद 20 नवम्बर प्रातः को ही हमारा प्रशिक्षण पुनः प्रारंम्भ हुआ। शिलॉग स्थित आधार शिविर पर फरीदाबाद (हरियाणा) के हम 10 युवकों के साथ तमिलनाडु से 11, हैदराबाद (आंध्र प्रदेश) से 8 और झाँसी (उत्तर प्रदेश) से 8 युवक इस साहसिक कार्यक्रम में भाग लेने हेतु आये थे। अब हम 37 युवकों को 5 अलग -2 दलों में विभाजित किया गया और बताया गया कि हमे क्रमशः डोकी, नोंग्जिरी, बलात, शेल्ला व रानिकोर जाना होगा। हमें हमारे दल के स्थान की मूलभूत जानकारी दे कर हमारे प्रस्थान का समय बताया गया। डोकी जाने वाला दल 20 नवम्बर को ही रवाना हो गया। उनके साथ 2 स्थानीय सहायक व इन्हें मिला कर कुल 10 स्थानीय सहायक हमारे साथ गए। इनमे से मुझे रानिकोर जाने वाले दल का प्रमुख बनाया गया, मेरे साथ ईस्टर विंग जी, जो हमारे स्थानीय सहायक थे। 21 नवम्बर प्रातः 7 बजे हम सभी शिलॉग से 130 कि.मी. दूर स्थित रानिकोर जाने के लिए रवाना हुए।

सबसे पहले हम जम्द्वर पहुंचे जहाँ हमारे एक और सहायक का घर था। वहां भोजन के पश्चात ग्राम वसियों को रक्षा सूत्र बांधे व उन्हें फिन्स की व इस कार्यक्रम की जानकारी दे उनसे उनकी समस्याएं पूछी तो जान कर आश्चर्य हुआ कि इस ग्राम में दो माह पूर्व बिजली का ट्रांसफार्मर ख़राब को गया था जो आज तक भी बदला नहीं गया व यह ग्राम दो माह से अँधेरे में ही है, और आश्चर्य तो यह जान कर हुआ कि यह ग्राम सीमा से मात्र 1.5 कि. मी. दूर है मतलब मात्र 1.5 कि मी दूर बांग्लादेश है और ऐसे स्थान पर बिजली तक नहीं!! ज्ञात हो हमें इस ग्राम तक पहुँचाने में 4 घंटे लगे थे। इतनी दूर स्थित यह ग्राम सीमा के इतना समीप हो कर भी बिजली जैसे मूलभूत सुविधा से वंचित था। इसके बाद हम अपने क्षेत्र के सबसे पहले काक्रगोरा बॉर्डर आउट पोस्ट (B.O.P.) पहुंचे। वह पर सभी बीएसएफ़ के जवानों से मिले। सब-इंस्पेक्टर कन्हैया लाल गुप्ता जो उस पोस्ट के इंचार्ज थे, उन्होंने सभी जवानों को हमसे मिलने की अनुमति दी जिसके बाद हम सभी ने हमारे वीर जवानों को रक्षासूत्र बांधे व उनसे जाना कि किस प्रकार यह जवान दिन रात हमारी रक्षा के लिए सजग हो सीमा की रक्षा करते है। 8 से 10 घंटे लगातार दो जवान हर 500 मीटर पर तैनात होते है व 2-2 घंटे की दो पालिओं में ही पोस्ट से आ कर आराम करते है व पुनः ड्यूटी के लिए चले जाते है। साथ ही हमने जाना की इस इलाके में किसी भी प्रकार का टेलीफोन सिग्नल नहीं था। इसकी पुष्टि हमने अपने फ़ोन को देख कर की, जो काम नहीं कर रहा थ। सोचिये, हमारे जवान यहाँ से केवल वायरलेस सेट से ही दूसरी किसी पोस्ट को सूचित कर सकते थे और वह पोस्ट ही आगे कोई आवश्यक सूचना भेज सकती थी। साथ ही जवानों को अपने घर पर बात करने के लिए दूर ग्राम में जा कर जहाँ सिग्नल आता था बात करनी पड़ती है। हाँ बांग्लादेश के सिग्नल अच्छी तरह आ रहे थे वहां! है न बड़ी ही विचित्र बात? इस प्रकार उनसे गले मिल सायं की पूजा उनके साथ कर हम सरहद की ओर गए। सब-इंस्पेक्टर कन्हैया लाल गुप्ता जी हमारे साथ ही चले और उनके हाथों से ही सीमा पूजन करा कर हमने उनके हाथों से ही सरहद की पवित्र माटी अपने साथ लाये पैकेट्स में भर ली और उसे माथे से लगा अपने जवानों से विदा ले हम आगे चल दिए। अब तक रात हो चुकी थी। यहाँ आपको यह बता देना उचित होगा की भारत के सुन्दर प्रदेश मेघालय में प्रातः 4 से 4:30 बजे सूरज निकल जाता है व अँधेरा भी 4:30 बजे तक हो जाता है। अतः रात्रि होते देख व पोस्ट प्रमुख कन्हैया लाल जी की बात मान हमने अपनी पैदल यात्रा यहीं पूरी कर आगे गाड़ी से चल दिए। हमने देखा की इस क्षेत्र में तारबंदी मजबूत थी व प्रत्येक 500 मीटर पर 2 जवान इसकी सुरक्षा में सजग थे।

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आगे कोरोइगोरा (BOP) पर रुके वहां भी पोस्ट प्रमुख जी से मिले, सीमा पूजन किया, सीमा की पवित्र माटी एकत्र की, यहाँ भी सिग्नल नहीं था। पता चला की यहाँ BSF की नयी बटालियन आई है। यह जान कर दुःख हुआ की उनके पास बैठने की पूरी व्यवस्था भी नहीं थी। पता चला की जब कोई टुकड़ी जाती है, वह अपना सामान भी साथ ले जाती है। इसके बाद जवानों से विदा ले हम अपने रात्रि विश्राम स्थल कोरिगोरा ग्राम की आंगनबाड़ी गए यहाँ रास्ते में हमारी गाडी यहाँ के टूटे फूटे रास्ते का शिकार हो फंस गयी। भाग्य से यह हमारे विश्रामस्थल के करीब ही था तो हमारी सहायता के लिए स्थानीय निवासी भी आ गए। ग्राम पहुँचने पर हमारा स्वागत ग्राम प्रमुख जी ने बड़े ही जोश व आदर के साथ किया किया। साथ ही अगले दिन जहाँ हमारा दोपहर का भोजन व कार्यक्रम समापन था, उस ग्राम के प्रमुख भी थे। वह मोबाइल सिग्नल न होने के कारण पहले ही हमसे मिलने के लिए आये थे। जिससे हमारे दल की सही संख्या पता कर अगले दिन व्यवस्था कर सके। भोजन करते समय अलग-2 आकार के बर्तन बता रहे थे की ग्राम का प्रत्येक घर हमारा स्वागत कर रहा है। वहां ग्राम की बहने भी हमसे मिलने आई। बातचीत में पता चला की ग्राम में 110 से अधिक परिवार रहते है और ग्राम का प्रत्येक बच्चा स्कूल जाता है। ग्राम में मिडल स्कूल है। हाई स्कूल थोडा दूर रामकृष्ण मिशन का है, जहाँ हमारा दूसरा दल गया था। बाद में दूसरे दल द्वारा उस स्कूल की दयनीय स्थिति देख बड़ा दुःख हुआ। बातचीत में पता चला की प्रत्येक बहन कॉलेज में पढ़ती है। यहाँ बता दे की कॉलेज शिलॉग में ही है जो 130 कि मी दूर है। वहां जाने की लिए यहाँ कोई बस नहीं आती। आपको टैक्सी करके जाना पड़ता है जिसका एक तरफ का किराया 180 रूपए है, और वापसी का 200 रूपए। यहाँ आपको बता दे की पूरे पूर्वोतर में सभी वस्तुएं उत्तर भारत की तुलना में 3-4 गुना महँगी है। उदाहरण के लिए जो माचिस की डिब्बी आपको हरियाणा में मात्र 50 पैसे में मिलेगी वो आपको सीमा क्षेत्र में 2 से 3 रूपए की मिलेगी अर्थात 4 से 6 गुना महँगी। यही हाल कपड़ों से लेकर जीवन की सामान्य आवश्यकताओं का है। वहां दूध नहीं मिलता, चाय भी आपको बिना दूध की ही मिलेगी। वर्ष भर में मात्र एक ही फसल होती है। वह लोग जीवनयापन के लिए चावल की खेती करते है। इसलिए यहाँ आपको तीनो समय चावल का ही भोजन मिलेगा। साथ में बिना दाल की दाल और अच्छे सम्पन्न घर में एक सब्जी और हमारे लिए जब पूरा ग्राम ही स्वागत के लिए आया था, तो हमें रात्रि में एक मिष्ठान खीर प्रेमपूर्वक न जाने कहाँ से दूध का प्रबंध करके बनायीं गयी थी। यह भारत की अतिथि भाव की द्योतक थी, नहीं तो इतनी कठिनाइयों में जीवन यापन कर रहा ग्राम विश्व के किसी और कोने में इसकी जहमत तक न उठाता। खैर बात शिक्षा व्यवस्था की हो रही थी। अब या तो इतनी महंगाई में एक फसल पर गुजरा करने वाला ग्राम 380 रूपए खर्च कर शिलॉग तक अपने बच्चे को प्रतिदिन भेजे अथवा वही शिलॉग जो एक बेहद महँगा शहर है, वहां पर अपने बच्चे के रहने को व्यवस्था करें। हमारे सहायक, जो जम्द्वर ग्राम के रहने वाले है, उन्होंने बताया की उनका बेटा मंगलौर से बी. कॉम. की पढाई कर रहा है। पूछने पर की इतनी दूर उन्होंने अपने बेटे को क्यों भेजा जबकि शिलॉग में विश्वविद्यालय है और बहने तो उसमे पढ़ती ही है, उनका जवाब था की शिलॉग में पदाई कराने और मंगलौर में उनके बेटे के पढने का खर्च समान है!! कितनी दुर्भाग्यपूर्ण है यह स्थिति की एक विश्विद्यालय जो 130 कि.मी. दूर और दूसरा मंगलौर जो की 2300 कि.मी. से भी अधिक और खर्चा शिक्षा का दोनो स्थान पर समान है। ऐसे पढ़ते है हमारे शिलॉग के भाई और बहनें!! परन्तु प्रणाम है इस ग्राम व ग्राम वासियों को, जो इतनी कठिनाईयों के बाद भी वहाँ के ग्राम प्रमुख ने बताया की उस क्षेत्र के सभी ग्रामों के बच्चे शिक्षा ग्रहण करने जाते है। इसकी पुष्टि अगले दिन परीक्षा में जाते हुए बच्चों को देख कर हमें हो गयी। शिलॉग और आस पास के क्षेत्रों में स्कूल सामान्यता प्रातः 9:30 से 10:30 बजे से दोपहर 2:30 से 3:30 बजे तक चलते है परन्तु दूर-2 से आने वाले बच्चे आपको सायं 5 बजे तक घर जाते हुए दिख जाते है। इतनी सजगता है शिक्षा के प्रति।

यहाँ पर एक बात अगर में नहीं लिखूँ तो यह इस मातृसत्ता प्रमुख प्रदेश के साथ अन्याय होगा। मेघालय में जैसे मैंने लिखा मातृसत्ता है अर्थात यहाँ घर व समाज की सत्ता मातृशक्ति के हाथ में है। जहाँ आज हम पूरे विश्व में स्त्रियों के प्रति होने वाली हिंसा के प्रति चिंतिंत है, यह प्रदेश उससे मुक्ति का एक अनोखा उपाय देता है व इससे पूर्णतः अछूता है। मेघालय में विवाह के बाद स्त्रियाँ नहीं अपितु पुरुष स्त्रियों के घर जाते है अर्थात विदाई पतियों की होती है संपत्ति का अधिकार स्त्रियों के पास होता है। अगर पति व पत्नी में कोई झगडा हो तो पति अपनी बहन के घर जाता है, पत्नी को कही नहीं जाना होता। यहाँ तक की घर में जब बच्चे का जन्म होता है तो वह पिता का नहीं अपितु अपनी माता का नाम ग्रहण करता है। स्त्री सत्ता प्रमुख होने के कारण मेघालय में बलात्कार जैसी घिनौनी घटना नगण्य है व समाज में अत्यंत ही निंदनीय ही नहीं इसका न्याय केवल दोषी की मृत्यु ही है। मेघालय में आपको हर दुकान पर व बाज़ार में माताएं ही बैठी हुयी मिलेगी व घर का काम व अन्य कामों में पुरुष व स्त्री को लिंग अनुसार कोई भेदभाव नहीं। दोनो सामान रूप से सुविधानुसार काम मिल बाँट कर करते है। शायद यही कारण है की मेघालय में लिंग अनुपात 1000 स्त्रियों पर 1000 पुरुष है जो की विश्व में एक आदर्श है। मेघालय की एक बात और विशेष है, शेष भारत में किसी स्त्री अथवा पुरुष की उनके माता पिता स्वयं शादी करवा देते है, परन्तु मेघालय में ऐसा बिलकुल भी नहीं है। यहाँ केवल प्रेम विवाह है। अगर आप प्रेम नहीं कर सकते तो जीवन भर आप अविवाहित ही रहेंगे। महिलाय घर से बाहर बेझिझक रहती है। यातायात व्यवस्था यहाँ की सडको की ही तरह लचर है बसें केवल मुख्य स्थानों पर वह भी निश्चित समयावधि के लिए ही चलती है। सीमान्त के क्षेत्रों के लोगो को कही भी जाने के लिए अपने वाहन जिनका पेट्रोल भी मुख्य शहर में ही उपलब्ध है, उससे जाना होता है अथवा आल मेघालय टैक्सी सर्विस की किसी टैक्सी लेकर जो की वह हर प्रकार के परिवहन का सबसे मुख्य साधन है। यह टैक्सी चालक अपनी मर्जी से मनमाना किराया लेते है और कठिन परिस्थिति होने पर आपसे खूब अच्छी तरह किराया वसूलना जानते है। रात्रि 11 बजे तक इन महत्त्वपूर्ण विषयों पर बातचीत के बाद बहनों व ग्राम प्रमुखों से आज्ञा ले हमने विश्राम किया। 22 नवम्बर प्रातः ग्राम वासियों से मिलकर उन्हें रक्षा सूत्र बाँध कर व उनसे बातचीत कर और अपनी उन बहनों से विदा ले हम अपने हाथों में तिरंगा ले, अगले पड़ाव चिकंबारी बॉर्डर आउट पोस्ट की और चल दिए, यहाँ पर हम सभी BSF के जवानों के साथ मिले। यहाँ भी सैनिकों की समस्या वही थी। यहाँ सैनिकों ने बताया की बांग्लादेश में शेख हसीना की सरकार होने के कारण आज बहुत हद तक स्थिति शांतिपूर्ण है परन्तु फिर भी बांग्लादेश अत्यंत गरीब देश होने के कारण यहाँ से कई प्रकार की वस्तुओँ जैसे लकड़ी, बीडी, फल अदि की तस्करी करते है। साथ ही कभी -2 पशुयों की तस्करी भी होती है। सामान्य शिष्टाचार व अपने सैनिक धर्मं का पालन करते हुए उन्होंने हमें इतनी ही जानकारी दी। यहाँ हमें समझना होगा की यह इस बात का द्योतक (सूचक ) है की अभी भी वहां तस्करी होती है और हमारे सुरक्षाबलों के हाथ अभी भी वैसे ही बंधे है जैसे पहले थे। एक जवान ने हमें अकेले में बताया की गाय की तस्करी बांग्लादेश में धड़ल्ले से जारी है और इसकी पुष्टि अगले दिन नोंग्जिरी जाने वाली टीम ने कर दी जब उनके सामने ही BSF ने तस्करी की 22 गाय पकड़ी। यहाँ यह बता देना आवश्यक है की पकड़ी गयी सभी गाय उत्तर प्रदेश, बिहार व उत्तर भारत की थी, जैसे उनके बड़े आकार व बड़े सींगों से स्पष्ट था\ मेघालय व पूर्वोतर की गाय कद में बेहद छोटी होती है और वह दूध भी न के बराबर देती है जबकि पकड़ी गयी सभी गाय दुधारू थी। एक बात जो किसी भी उत्तर भारत के राज्ये में रहने वाले को विचलित कर सकती है वह है गौमांस का मेघालय में खुला भक्षण। जी हाँ, गौमांस मेघालय के मुख्य मांस उद्योग का हिस्सा है व खुले रूप से उपलब्ध है व खाया जाता है। जो की प्रत्येक बाज़ार में गौमांस देखने से सपष्ट है। यह किसी भी प्रकार मुझे तो कम से कम स्वीकार नहीं और यह बात हमें हमारे स्थानीय सहायकों ने पहले से ही बता दी थी जिससे हम सचेत हो जायें व हमारी सुरक्षा सुनिश्चित की जा सके। मांस का भक्षण सीमान्त ग्रामों में कम है साथ ही सीमान्त ग्रामों में हिंदी जानने वालों की संख्या भी अधिक है। जो अपने आप में आश्चर्य से कम नहीं।

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पूरे मेघालय को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है -

1) खासी
2) जयंतिया
3) गारो

इन सभी में इनकी स्थानीय भाषा बोली जाती है जो की खासी, पनार व गारो है

चिकनबारी में सैनिकों से मिलने के बाद हमारी पैदल यात्रा आगे बढ़ चली। इसके बाद हम वहां की अंतिम BOP पर गये, जहाँ के इंचार्ज ने हमें पीछे चलने वाली नदी और उसके पार उसमे कुछ दूंढ़ रहे सैंकड़ों लोग दिखाए। पता चला कि यह सभी बंगलादेशी है और यह सभी नदी में बह कर आये कोयले के बेहद छोटे-छोटे टुकड़े गोटा मार कर बीन रहे थे। इस नदी के दूसरी ओर जहाँ ये लोग खड़े थे, वह भी हमारी ही धरती है और दूसरी ओर उस स्थान से अलग एक ग्राम भी हमारा है, जहाँ पहुँचने के लिए सभी ग्राम वासियों को नाव पर जाना होता है। जी हाँ, यही वह प्रसिद्ध स्थल है जहाँ एक माचिस की डिब्बी 3 रूपए की मिलती है। इस नदी के बारे में जवानों ने बताया की यह बेहद गहरी है और न तो कोई जवान न ही कोई ग्राम वासी ही इसमें तैरता है परन्तु ज़िन्दगी की जद्दोजहद में बांग्लादेशी जो की तथाकथित बेहद गरीब है, रात्रि में हमारी पोस्ट तक आ जाते है, साथ ही पोस्ट इंचार्ज ने हमें रात्रि को पकड़ी गयी 8 लकड़ी की नावें भी दिखाई जो की उनके अनुसार आगे कस्टम को दे दी जाएंगी। इतना साहस बांग्लादेशियों का !! अब सोचिये कि अगर इस स्थान पर BSF की पोस्ट न होती तो बांग्लादेशी उस ग्राम का क्या हाल करते जो नदी के उस पार है, सोच कर देखे?

इसके बाद हमने थोड़ी आगे बोर्बो संग नाम का पुल देखा, जो कि भारत के इन्जिनीरिंग कौशल का नमूना है। 10 वर्षों में पूरा हुआ यह पल तो पर्वतों को नदियों के ऊपर से जोड़ता है, और इसके मध्य में कोई आधार स्तम्भ भी नहीं है। इस प्रकार से बना यह पूरे एशिया का दूसरा सबसे बड़ा पुल है, ऐसे हमे बताया गया। फिर हम अपने अंतिम पडाव रानिकोर की ओर बढ़ गए। इनके ग्राम प्रमुख ही एक रात पहले हमसे मिलने कोरोइगोरा आये थे। यहाँ सभी ग्राम वासी हमसे मिलने के लिए एकत्र थे। यहाँ सर्वप्रथम अपने राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान करते हुए हमने सबसे पहले मानव श्रंखला बनाई और भारत माता माता की जय व वन्दे मातरम के जयघोष के बाद राष्ट्रगान गाने के बाद हमने राष्ट्रीय ध्वज को उतार दिया व उसके पश्चात भोजन अदि कर ग्राम वासियों से चर्चा की, उन्हें रक्षासूत्र बांधे और सबसे विदा लेकर अपने आधार शिविर शिलॉग की और प्रस्थान किया। आधार शिविर पर हम रात्रि 8 बजे पहुंचे जहाँ अलग -2 स्थानों पर गयी। हमारी बाकी की 4 टीमें भी आ चुकी थी। रात्रि को सभी ने अपने-अपने अनुभव सुनाएं व फिर अगले दिन की पत्रकार वार्ता की तैयारी में सभी जुट गए और तैयारी पूर्ण करने के पश्चात प्रातः 3 बजे सभी सो गए। 23 नवम्बर प्रातः सभी ने तैयार हो कर शिलॉग में खासी समुदाय के एक वार्षिकोत्सव में भाग लिया व उसके पश्चात शिलॉग प्रेस क्लब में माननीय श्री शेषाद्री चारी जी ने पत्रकार वार्ता को संबोधित किया। सर्वप्रथम हम सभी द्वारा जुटाई गयी जानकारी व फोटो दिखाई गयी, फिर शेषाद्री जी ने हम सभी के द्वारा एकत्र जानकारी व सरहद को प्रणाम कार्यक्रम का हेतु व अन्य पक्ष पत्रकार बन्धुओं के समक्ष रखा। और हमें यह जान कर अति प्रसन्नता हुयी कि अगले दिन मेघालय के सभी प्रतिष्ठित व छोटे सभी समाचार पत्रों व मीडिया चैनेल्स ने कार्यक्रम का विस्तार पुर्वक वर्णन किया। इस पत्रकार वार्ता के बाद हम सभी दूसरे राज्यों से आये अपने साथियों व स्थानीय सहायकों को धन्यवाद दे व भावभीनी विदाई दे व अपना ह्रदय भारत माता के अंचल में स्थित इस सुन्दर प्रदेश में ही छोड़ शिलॉग से गुवाहाटी की और चल पड़े और अगले दिन 24 नवम्बर प्रातः 6 बजे ही ट्रेन द्वारा दिल्ली की ओर प्रस्थान किया और 26 नवम्बर 2012 को सन्देश ले फरीदाबाद पहुंचे।

लेखक : आशीष गौड़, फरीदाबाद

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