बाबा रामदेव ने अपनी समर्थक राजबाला की मौत के सिलसिले में दिल्ली पुलिस और केंद्रीय गृह मंत्री पी. चिदंबरम के खिलाफ मुक..
विशाल क्रिटिकल केयर यूनिट में मृत्युशय्या पर लेटा हुआ है।
शोकातुर सिसकियों ने किरण की आवाज़ बंद कर दी है। यह आह्वान 16 जुलाई
के विनाशक दिन की देर रात में चेंगन्नूर जिला प्रचारक, किरण ने किया।
मैंने चेंगन्नूर के पास कॉलेज परिसर में विद्यार्थियों की लड़ाई के
समाचार की झलकी देखी, परंतु कॉलेज के शुरुआती दिनों के दौरन इस प्रकार
की प्रतिदिन की घटनाओं को अधिक महत्व नहीं दिया। बाद में मुझे इस घटना
की विस्तृत जानकारी देर रात किरण से मिली। यह केम्पस फ्रंट के गुंडों
द्वारा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के कार्यकर्ताओं पर सुनियोजित
हमला था। केम्पस फ्रंट कुख्यात पॉपुलर फ्रंट का एक विद्यार्थी स्कन्ध
है। पॉपुलर फ्रंट प्रतिबंधित आतंकवादी संगठन सिमि (एसआईएमआई) का
पुनर्जन्म है। विशाल वेणुगोपाल अ॰भा॰वि॰प॰ के नगर समिति सदस्य तथा संघ
के शारीरिक शिक्षण प्रमुख थे। वे अपने साथियों के साथ क्रिश्चियन
कॉलेज में कॉलेज इकाई द्वारा नए विद्यार्थियों के स्वागत कार्यक्रम के
आयोजन के निरीक्षक थे। केम्पस फ्रंट के तीन या चार कार्यकर्ता भी वहाँ
उपस्थित थे। रात के 11 बजे तक सब कुछ ठीक-ठाक चला। अचानक मुस्लिम
गुंडों का एक दल बाहर से कॉलेज द्वार की ओर आया तथा अ॰भा॰वि॰प॰ एवं
सरस्वती देवी को गालियां देने लगा। विशाल और अन्य कार्यकर्ताओं ने
उन्हें कार्यक्रम में गड़बड़ी फैलाने से रोकने का प्रयास किया। वे उन
घुसपैठ करने वालों के मंसूबों को नहीं जानते थे। अचानक उन गुंडों ने
छुरों, आधुनिक चाकुओं तथा अन्य घातक हथियारों से परिषद के
कार्यकर्ताओं पर हमला बोल दिया। विशाल, विष्णु और श्रीजीत काफी घायल
हुए। गंभीर रूप से घायल विशाल ने 17 तारीख की भोर में दम तोड़ दिया। दो
अन्य कार्यकर्ता अब भी गहन चिकित्सा कक्ष में हैं। यह कोई अकेली घटना
नहीं है। हाल ही में ऐसी अनेक घटनाएँ हुई हैं। पॉपुलर फ्रंट काफी लंबे
समय से राज्य में आतंक फैलाने की योजना बना रहा है और यह खतरनाक घटना
उनकी सुनियोजित रणनीति का एक हिस्सा है।
In English : Vishal will live forever in our hearts !
अपनी नियोजित रीति अनुसार सघन प्रशिक्षण द्वारा पॉपुलर फ्रंट ने अपने
अभीष्ट पीड़ित की हत्या की। दूसरे दिन केरल राज्य सरकार ने उच्च
न्यायालय को सूचित किया कि पॉपुलर फ्रंट के सिमि के साथ संबंध हैं और
यह राज्य में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ तथा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट
पार्टी के 27 कार्यकर्ताओं की हत्याओं का जिम्मेदार है। दिनांक 4
जुलाई 2010 को पॉपुलर फ्रंट और इसके राजनैतिक स्कन्ध सोशल डेमोक्रेटिक
पार्टी ऑफ इंडिया (एसडीपीआई) के कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर टी जे जोसेफ
का दायाँ हाथ तालिबानां हमले में काट दिया। इसका कारण? जोसफ को वह
प्रश्नपत्र बनाने के लिए आरोपी ठहराया गया जिसमें पैगंबर मोहम्मद की
निंदा की गई थी। एनआईए इस मामले को देख रही है। पीएफ़आई न्यायालय ने
उसे दोषी पाया है और अंगछेदन की सजा पारित की है।
विशाल को लक्ष्य बनाया गया : विशाल, संघ का एक
वचनबद्ध युवा कार्यकर्ता था। उसने अपने गाँव में संघ कार्य को मजबूत
किया और आस-पास के गांवों मे नई शाखाएँ भी शुरू कीं। वे अपने अनवरत
संपर्क और अभियान से इस्लामी कट्टरवादियों के षडयंत्रों के बारे में
हिंदुओं को सावधान करते रहते थे। वे अपने क्षेत्र में एवं आसपास भी
अनेक प्रेम जिहाद प्रयासों पर निगरानी रखने वालों में से थे। जिहादी
कई प्रकार से ग्रामीण जीवन की शांति को भंग करने का प्रयास कर रहे थे।
हिन्दू युवाओं को अनेक प्रकार से प्रलोभित करना, उन्हें समाज विरोधी
गतिविधिओं जैसे नशे एवं अवैध व्यापार में लगाए रखना, उनमें से एक थे।
विशाल अन्य गांववालों की मदद से हस्तक्षेप किया करते थे और ऐसे
प्रयासों को सफलतापूर्वक मात देते थे। उन्होंने परिसर में आतंकवादियों
से सम्बद्ध बढ़ते सांप्रदायिक खतरे के विरुद्ध साहसी अभियान चलाया। इस
युवा कार्यकर्ता को लक्ष्य बनाने के लिए आतंकवादियों के पास ये
पर्याप्त कारण थे। किसी जिहादी न्यायालय ने आँख की इस किरकिरी को
हमेशा के लिए समाप्त करने का आदेश दिया और उन नृशंस हत्यारों ने उस
डिक्री को लागू किया।
समर्पित व्यक्तित्व : संघ की विचारधारा के महान
लक्ष्य के प्रति विशाल का समर्पण एवं निष्ठा सच्चे अर्थों में
अनुकरणीय थी। उन्होंने संघ और संघ के माध्यम से राष्ट्र के लिए जीवन
जीया, कार्य किया एवं अध्ययन किया। वे यथाशीघ्र प्रचारक बनना चाहते
थे। ऐसा लगता है वे हमेशा जल्दी में रहते थे। यही कारण है कि
प्रतिभावान विद्यार्थी होते हुए भी +2 की पढ़ाई छोड़ना चाहते थे। तथापि
संघ अधिकारियों ने उन्हें ऐसा नहीं करने दिया। उन्होंने स्वाभाविक रूप
से तत्काल अपनी पढ़ाई कम से कम स्नातकोत्तर स्तर तक जारी रखने के लिए
कहा।उन्होंने ऐसा करने का प्रण लिया परंतु उस समय यह एक कठिन कार्य था
क्योंकि परीक्षा के लिए केवल 45 दिन शेष थे। विशाल अगले वर्ष की
प्रतीक्षा नहीं कर सकता था। इसलिए उन्होंने 45 दिन तक दिन-रात अध्ययन
करके सभी लंबित अध्यायों को पूरा किया और शानदार सफलता अर्जित की। फिर
उन्होंने बी॰एस सी॰ इलेक्ट्रॉनिक्स के लिए कोन्नी कॉलेज में प्रवेश
लिया।
मूल की खोज में : उनका जीवन इतिहास विचित्र था। उनका
जन्म साउदी अरब में हुआ और शुरुआती पढ़ाई लंदन में की। परंतु वहाँ की
भौतिकवादी जीवन शैली उनके कोमल हृदय को रास नहीं आई। वे अपना खाली समय
आधुनिक कल्पनाओं के बजाय अपने भारतीय मूल,संस्कृति, हमारी पवित्र भाषा
संस्कृत और पावन धर्मग्रंथों को इंटरनेट पर ढूँढने में बिताते थे।
युवा विशाल ने हमारी संस्कृति एवं विरासत के कल्याण के लिए अपना जीवन
समर्पित करने की शपथ ली थी। उन्होंने अपने अंतहीन लक्ष्य से पाया कि
रा॰स्व॰सं॰ ही एकमात्र ऐसा संगठन है जिसके माध्यम से वे अपने सपने
पूरे कर सकते हैं। इसलिए उन्होंने अपने अभिभावकों से भारत जाकर रहने
की अनुमति का निवेदन किया ताकि वे अनुकूल परिवेश में पढ़ सकें और संघ
के माध्यम से राष्ट्र के लिए कार्य कर सकें। उनके अभिभावकों ने इस
विचित्र इच्छा के लिए उन्हें रोका परंतु सब व्यर्थ गया। वे अड़े हुए
थे, अंततः प्यारे अभिभावकों को उनकी इच्छा के आगे झुकना पड़ा। इस
प्रकार वे भारत आ गए और राष्ट्र के लिए अपना दूसरा जीवन प्रारम्भ
किया। अभिभावक बहुत अधिक समय तक उनका बिछोह सहन नहीं कर सके, उन्हें
ब्रिटेन वापस लाने के अनेक प्रयास किए। उन्होंने हाथ जोड़कर बड़े
आदरपूर्वक भारत में ही रहने देने की अनुमति की उनसे याचना की। उनके
पिता वेणुगोपाल स्मरण करते हैं कि "मेरा बेटा अपनी माँ से कहा करता था
कि हमारी वृद्धावस्था में वह हम दोनों की सेवा नहीं कर सकेगा। इससे
उसकी माँ को बहुत कष्ट होता था। जब वे कहतीं कि वह ऐसा क्यों कह रहा
है, तो उसका उत्तर हमारे लिए बिलकुल अविश्वासनीय होता था"। शोकसंतृप्त
पिता ने बताया। विशाल ने कहा कि यदि भगत सिंह, चंद्रशेखर आज़ाद और
स्वामी विवेकानंद जैसे महान देशभक्तों ने अपने परिवारों के बारे में
सोचा होता या उनके साथ रह रहे होते, तो क्या हम स्वतन्त्रता प्राप्त
कर पाते ?उनके वचन और कर्म उस आयु के लड़के की सीमा से कहीं परे थे। एक
बार उसे पता चला कि उसका एक मित्र धनाभाव के कारण उच्चतर शिक्षा के
लिए प्रवेश नहीं ले पा रहा था। विशाल को अपनी नई मोटरबाइक बेचने के
लिए दूसरी बार सोचना भी नहीं पड़ा और वह पैसा उस मित्र को दे दिया।
विशाल, निर्धन पृष्ठभूमि के 4 विद्यार्थियों को उनकी पढ़ाई जारी रखने
के लिए सहायता करते थे।
त्याग हमारी राष्ट्रीय मान्यता है : 15 जुलाई को
उन्होंने पास की शाखा में गुरुपूजा उत्सव में भाग लिया। जिहादी
आतंकियों द्वारा उन पर किए गए घातक हमले से 24 घंटे पूर्व ही वे
विद्यार्थियों को प्रेरणादायक बौद्धिक दे रहे थे। वे बता रहे थे कि
त्याग हमारे राष्ट्र का अति स्वाभाविक गुण है। हिन्दू केवल उन्हीं
लोगों को याद रखते हैं, जिन्होंने अपना सर्वस्व ही राष्ट्र को अर्पित
कर दिया हो। उस शाखा के जिन स्वयंसेवकों ने वह सुगठित बौद्धिक सुना वे
अब भी उस बौद्धिक के प्रत्येक शब्द को याद कर रहे हैं।
उनकी अंत्येष्टि पर हजारों लोग इकट्ठे हुए। उनके माता–पिता ब्रिटेन से
यहाँ आए। अनियंत्रित दुख एवं अदम्य विरोध के भाव सर्वत्र व्याप्त थे।
अन्त्येष्टि के पश्चात, अभिभावकों ने उनके बड़े बेटे द्वारा मद्धम स्वर
में गाया गाना सुना, उनके बड़े भाई, विपिन चिता के पास खड़े थे। उनके
दोनों अभिभावकों ने उन्हें डांटते हुए कहा, "इस स्थिति में यहाँ
खड़े-खड़े गाने की क्या सूझी। क्या यह तुम्हारा भाई नहीं है जो चिता पर
राख में विलीन हो रहा है? "बिलखते हुए विपिन ने सिसक कर जवाब दिया:
"पिताजी यह कोई दूसरा गाना नहीं। ये पंक्तियाँ मेरे प्यारे विशाल ने
मुझे सिखाई थीं- जीवितम अम्बे निन पूज्यक्काय, मरणम देवी निन
महिमायकाय-(ओ माँ यह जीवन आपकी सेवा के लिए है, और मृत्यु, ओ देवी
आपकी महानता तक)।
यह उनका पसंदीदा गणगीतम था, इसलिए मैंने यह गाया। अब से मैं इस गाने
के भाव के अनुसार जीऊँगा।" दो दिन बाद प्रांतीय संघ कार्यकर्ता घर
पधारे। विशल के बारे में बताते हुए उनके पिता ने यह स्वीकारते हुए
कहा: "हम संघ के समर्थक नहीं हैं। वस्तुतः मैं वामपंथी था। परंतु अब
मेरे पुत्र ने अपने जीवन और समर्पण से मेरा जीवन समग्र रूप से बदल
दिया है। उसके अनुसार जो कुछ भी उसका था, वह राष्ट्र का था और हम भी
हमारे प्यारे विशाल द्वारा दिखाए मार्ग पर चलकर संघ के लिए कार्य
करेंगे।
इससे एक उदात्त सत्य उद्घाटित होता है। कोई भी राष्ट्र विरोधी ताकत
संघ द्वारा प्रदीप्त सच्ची भावना को दबा नहीं सकती। इस्लामी आतंकी इस
प्रकार के जघन्य अपराधों द्वारा परिवारों में भय की मनोवृति उत्पन्न
करने का प्रयास कर रहे हैं। परंतु वे विशाल के परिवार के सदस्यों,
सहकार्यकर्ताओं और शांतिप्रिय समाज के मजबूत इरादों के समक्ष विफल हुए
हैं।
विशाल गए नहीं हैं। वे संघ में अपने भाइयों के रूप में हमारे बीच
जीवित हैं। इस राष्ट्र तथा हिन्दू समाज की निस्वार्थ सेवा का संदेश और
अधिक मजबूत हुआ है। जिस उद्देश्य को लेकर वे आगे बढ़े उसके प्रति हमारे
निस्वार्थ त्याग द्वारा ही उनकी स्मृति को सम्मान मिलेगा। हम देखेंगे
कि एक विशाल के बदले जिहादियों को हज़ार का सामना करना पड़ेगा।
- जे नन्द कुमार (यह लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं)
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