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भारत-माता, चीनी आत्मा एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता : शंघाई मूवी
...... मैं हतप्रभ हूँ, आहत हूँ, बुरी तरह क्रोधित हूँ। कोई भी
देशभक्त इसे जानेगा तो आहत ही होगा। मेरी माँ... मेरी मातृभूमि
का ऐसा भयानक विद्रूपण! फिल्म शंघाई का एक गीत कुछ ऐसा है - "सोने की
चिड़िया, डेंगू-मलेरिया, गुड है गोबर है, भारत माता की जय।" यह फिल्म
दिबाकर बनर्जी की जो एक मनोरोगी से बढकर कुछ अधिक नहीं लगते। फिल्मी
बौद्धिकता का स्वघोषित ठेकेदार लगते हैं, इसके साथ दूसरा संगीतकार
विशाल ददलानी। पहले कहा- "कुछ भी हो जाए ये बोल नहीं बदलें जायेंगे।"
जब कुछ भारत माता से प्रेम करने वालों ने धमकी दी एवं उनके हाथों से
पिटने का डर लगा तो कहते हैं कि भारतीय संस्कृति मे गोबर तो पवित्र माना जाता है!
(यहाँ कुछ गड़बड़ है! लगता है भारतीय संस्कृति की याद आपको तनिक देर
से आई!!) लेकिन 'गुड-गोबर' किस अर्थ मे प्रयुक्त होता है वो तो हम सब
जानते हैं।
अब भी आप सोच रहे है कि ये बोल तो सिर्फ देश मे व्याप्त विषमताएँ
दर्शाने के लिए लिखे गए है? तो ज़रा एक बार इस गाने का विडियो देखिए
जिसमे अभिनेता इमरान हाशमी किस तरह "भारत माता की... माता
की..." कहते हुए अश्लील हाव-भाव भरा फूहड़ नाच करते हैं
यह एक मनोरोगी की मनोदशा ही होगी की माता का नाम लेकर वह किस प्रकार
के भाव अपने दर्शकों को परोस रहा है। ये हाव-भाव ठीक वैसे ही हैं जैसे
माता एवं बहन का नाम लेकर कहा गए अपशब्दों का प्रयोग करते समय होते
हैं। अब यह तथाकथित बुद्धिजीवी इस घटिया स्तर पर उतर आए हैं कि इनके
लिए भारत माँ अश्लील चुटकुले बनाने की विषयवस्तु हो गयी है। भारत माता
न की धर्म विशेष की है न ही किसी विचारधारा की जिसने इस पवित्र पावनी
भारतभूमि पर जन्म लिया है उन सबकी माता है, जब आप लोग चर्च में
जाकर किसी व्यक्ति को फादर (पिता) कह सकते हैं, क्यूंकि ऐसा प्रचलन
में है तो आप अपनी भारत माता का सम्मान क्यूँ नहीं कर सकते, जिसने
आपको जन्म दिया। गुरु चाणक्य के कहे शब्दों को याद करना यहाँ अनिवार्य
हो रहा है, "जीवन में एक व्यक्ति माँ के गर्भ के साथ साथ संस्कृति के गर्भ से भी जन्म लेता है... जिस संस्कृति के
गर्भ से मैंने जन्म लिया है वह है भारतीय, और जिस धरा के गर्भ से
मैंने जन्म लिया है वह है भारतवर्ष"
जिस पवित्र नारे का उद्घोष करते हुए वीर देशभक्त भारत माता के सम्मान
के लिए फांसी पर झूल गए; 527 युवा भारतीय सैनिक कारगिल युद्ध मे शहीद
हुए, उस पवित्र नारे का अपमान करते हुए इन देशद्रोहियों को तनिक भी
लज्जा नहीं आई? दिबाकर बनर्जी जैसे लोग आराम से बैठकर बेवजह की
बुद्धिवादिता का प्रदर्शन इसलिए कर पाते हैं क्योंकि अमर शहीद संदीप उन्नीकृष्णन जैसे महान देशभक्त एवं
लाखों भारतीय सैनिक इस नारे "भारत माता की जय" से प्रेरणा लेकर देश के
लिए अपने प्राण न्योछावर करते हैं।
यह दिबाकर एवं उसके वामपंथी साथी भूल गए हैं कि इन्हे 'अभिव्यक्ति की
स्वतन्त्रता' के नाम पर भारत मैं ही रहकर भारत माता के लिए अपशब्दों
का प्रयोग करने की जो छूट मिली है वो स्वतन्त्रता भी इसी नारे "भारत
माता की जय" की ही देन है। जिस चीन के के प्रेम मे अंधे होकर ये लोग
शंघाई के सपने देखते हैं, उस शंघाई मे रहकर यदि उन्होने चीन के खिलाफ
मुहं भी खोला होता तो वहां बिना सफाई सुने ही गोली मार दी जाती
है।
दुखद है कि मीडिया भी इस प्रकार के देशद्रोही एवं दुष्कृत्यों की कड़ी
आलोचना करने की बजाय इनका विरोध करने वाले भारत माता कि संतानों को ही
'संकीर्ण मानसिकता युक्त' तथा 'सांप्रदायिक' घोषित
कर देता है। बात-बात मे नारी के सम्मान की ठेकेदारी करने वाला मीडिया
क्यों "माता की... माता की..." गाते हुए अश्लील नाच करके देश की नारी
स्वरूप... मातृ स्वरूप का अपमान करने वाले हाशमी को आड़े हाथों नहीं
लेता? क्यों फिल्म उद्योग की ओर से एक भी आलोचक स्वर सुनाई नहीं पड़ता?
क्यों महिला संगठन भारत के मातृ स्वरूप के प्रति अश्लील हाव-भावों पर
उँगलियाँ नहीं उठाते? क्यों खुद को देशभक्त कहने वाले नेता हमारी भारत
माँ के अपमान पर इस पारकर शांत है? क्या सेन्सर बोर्ड मात्र शोभा की
वस्तु हो गया है?
समय आ गया है कि भारत सरकार 'भारत माता' का निरादर करने वाले लोगों को
देशद्रोही घोषित करे। भारत माता और उससे जुड़े राष्ट्रीय प्रतीकों का
अपमान करने वालों के लिए इस देश मे कोई जगह नहीं होनी चाहिए। मैं आप
सभी से दिबाकर जैसे देशद्रोहियों के विरोध का आह्वान करती हूँ।
क्या अब भी आप चुप रहेंगे?
- तनया गडकरी
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