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गरीबी दूर करने में कांग्रेस शासित राज्य फिसड्डी - रिपोर्ट

नई दिल्ली योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलूवालिया भले ही
गरीबी कम होने का श्रेय यूपीए की नीतियों को देने की कोशिश कर रहे
हों, लेकिन हकीकत यह है कि पिछले पांच वर्षो में गैर-कांग्रेस राज्यों
ने तेजी से गरीबी में कमी की है।
योजना आयोग के आंकड़े बताते हैं कि 2004-05 से लेकर 09-10 के बीच सबसे
तेजी से गरीबी उन्मूलन करने वाले सात राज्यों में सिर्फ महाराष्ट्र
में ही पूरी तरह से कांग्रेस की सरकार रही है। गरीबी दूर करने में
सबसे आगे गैर-कांग्रेस शासित ओडिशा रहा है। गरीबी उन्मूलन में सबसे
फिसड्डी दिल्ली रही है। फिसड्डी रहने वाले छह राज्यों में तीन
कांग्रेस शासित (दिल्ली, हरियाणा व जम्मू व कश्मीर) हैं।
एनडीए शासित बिहार और छत्तीसगढ़ भी इसी श्रेणी में है। 1993-94 के बाद
से यूपी में गरीबी उन्मूलन की रफ्तार एक जैसी ही रही है। 93-94 से
लेकर 2004-05 तक इस राज्य में 0.68 फीसदी सालाना की बेहतर रफ्तार से
गरीबों की संख्या घटी है। 04-05 से 2009-10 के बीच यह रफ्तार 0.64
फीसदी की रही है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के करीबी माने जाने वाले
अहलूवालिया वैसे तो यह कहते हैं कि गरीबी आंकड़ों को पेश करने का मकसद
कोई राजनीतिक लाभ उठाना नहीं है, लेकिन इसके बाद वे यह भी स्वीकारते
हैं कि अब यह बात ज्यादा विश्वासपूर्वक कही जा सकती है कि यूपीए की
नीतियों की वजह से गरीबों की संख्या ज्यादा तेजी से कम की जा सकी है।
माना जा रहा है कि यूपीए इन आंकड़ों का आने वाले आम चुनाव में खूब
इस्तेमाल करेगा कि उसकी नीतियों की वजह से तेजी से गरीबों की संख्या
कम हुई है।
यह रिपोर्ट बताती है कि 2004-05 में देश में गरीबों की संख्या 40.72
करोड़ थी जो 09-10 में 35.46 करोड़ हो गई है। दूसरे शब्दों में इस
दौरान देश की 37.2 फीसदी आबादी गरीब थी जो कि घट कर 29.8 फीसदी हो गई
है। इस रिपोर्ट की विपक्ष की आलोचना के बारे में अहलूवालिया का कहना
है कि हमने गरीबी रेखा तय करने के तेंदुलकर समिति के फार्मूले को
सिर्फ आधार माना है। हम यह नहीं कह रहे कि यह सही है या गलत है। साथ
ही गरीबी रेखा तय करने का यह भी मतलब नहीं है कि इसके आधार पर ही
सब्सिडी दी जाएगी। खास तौर पर खाद्य सब्सिडी वितरण के लिए बिल्कुल
दूसरा आधार बनाया जाएगा। बताते चलें कि योजना आयोग ने तेंदुलकर समिति
के उस मानक को आधार बनाया है जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 22.5
रुपये और शहरी क्षेत्र के लिए 28 रुपये रोजाना की कमाई करने वालों को
गरीब हीं माना गया है।
- साभार दैनिक जागरण
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