"मेरा विश्वास युवा शक्ति पर है। इन्ही में से मेरे कार्यकर्ता निकलेंगे, जो अपने पराक्रम से विश्व को बदल देंगे।"..
वर्ष भर पैदल चल कर भारत नापेगी भूमि-सुधार आन्दोलन की जनसत्याग्रह यात्रा २

जनसत्याग्रह यात्रा 2 अक्टूबर, 2011 को देश के दक्षिणी छोर
कन्याकुमारी से शुरू हुई यह यात्रा 25 सितंबर, 2012 को ग्वालियर
पहुंची एवं उन एक लाख लोगों के साथ मिली, जो 2 अक्टूबर, 2012 को
ग्वालियर के मेला ग्राउंड से दिल्ली की ओर पदयात्रा करेंगे।
भारत में आज भी आदिवासियों और गरीबों को भूमि का अधिकार और प्राकृतिक
संसाधनों पर नियंत्रण नहीं के बराबर है। देश की आजादी के 64 वर्षों
बाद भी भारत में भूमि सुधार एक अधूरा कार्य है। देश में भूमि हदबंदी
कानून, आदिवासी स्वशासन कानून जैसे कई गरीबोन्मुखी कानून वर्षों से
लागू हैं, परन्तु आज तक उनका सही क्रियान्वयन नहीं किया जा सका। दूसरी
तरफ गरीबों के अधिकारों का हनन करने वाले कानून जैसे भूमि अधिग्रहण
अधिनियम, विशेष आर्थिक क्षेत्र अधिनियम, खान और खनिज अधिनियम आदि भी
बनाये गये और बड़ी तीव्रता के साथ इन कानूनों का क्रियान्वयन भी किया
जा रहा है। ऐसी परिस्थिति में यह आवश्यक है कि न्याय और समानता के
लिये कुछ मुद्दों पर तुरन्त कुछ कदम उठाये जायें। औद्योगीकरण के नाम
पर बड़े पैमाने पर भूमि अधिग्रहित की जा रही है और गरीब अपनी भूमि से
विस्थापित हो रहे हैं। यह उचित है कि औद्योगीकरण देश के विकास के लिये
आवश्यक है, परन्तु यह विकास लोगों के जीवन, संस्कृति और लोगों के
जीविकोपार्जन के संसाधनों के अधिकार के मूल्यों पर नहीं होना चाहिये।
सरकार को चाहिये कि उपलब्ध भूमि को विभिन्न उद्देश्यों, जिसमें
भूमिहीनों को भूमि वितरण भी शामिल हो, के लिये सीमांकित करे। गरीबों
के हित में भूमि सुधार के क्रियान्वयन के लिये सरकार को केन्द्रीय
स्तर पर भूमि सुधार परिषद और प्रदेश स्तर पर भूमि नीति बोर्ड बनाना
चहिये।
समाज के आखिरी आदमी की लड़ाई वाली एकता परिषद के बैनर तले अक्टूबर,
2007 को देश के विभिन्न भागों से वंचित वर्ग के 25 हजार लोग अपने
उपरोक्त अधिकारों के लिये ग्वालियर में इकट्ठे हुये और अहिंसात्मक
प्रदर्शन के माध्यम से भूमि सुधार की बात की। इस जनान्दोलन को समर्थन
देने के लिये लगभग 250 साथी विदेश से भी आये और इस आन्दोलन में शामिल
हुए। इसके अलावा लगभग 100 सांसदों और विधायकों के साथ-साथ बड़ी संख्या
में स्वैच्छिक संस्थाओं और संगठनों ने भी इस आन्दोलन को अपना समर्थन
दिया। इस आन्दोलन की मांग थी- सभी राजनैतिक पार्टियों के घोषणा पत्र
में भूमि सुधार के मुद्दे शामिल किये जाएं। लोगों को भू अधिकार प्रदान
करने के लिए एक सुचारु भू-वितरण प्रणाली विकसित की जाए। जमीन जोतने
वालों और गरीबों को भूमि और उसके अधिकार दिये जाएं, ताकि कोई उनसे
जमीन न खाली करा सके। तथाकथित विकास की योजनाओं जैसे- राष्ट्रीय
उद्यान, अभयारण्य, बड़े बांध, खनिज उद्योग, सेज, पावर प्लांट आदि के
नाम पर आदिवासियों को विस्थापित करने का काम कम से कम हो और इसे
मानवीय तरीके से किया जाए। जिन लोगों को पहले ही विस्थापित किया जा
चुका है, उन्हें निष्पक्ष और तत्काल मुआवजा दिया जाए और उन्हें ठीक से
पुनर्स्थापित किया जाए। सभी गरीब लोगों के बीच जीविकोपार्जन और
प्राकृतिक संसाधनों का समान वितरण सुनिश्चित किया जाए।
इस जनादेश को देखते हुए 29 अक्टूबर, 2007 को भारत की सरकार ने
राष्ट्रीय भूमि सुधार समिति और राष्ट्रीय भूमि सुधार परिषद का गठन
किया, जिसके सदस्य के रूप में सरकार और गैरसरकारी वर्ग के लोग शामिल
हैं। लेकिन आज तक सरकार की ओर से इस समिति या परिषद के माध्यम से भूमि
सुधार के क्षेत्र में कोई ठोस कार्य नहीं किया गया। जबकि 2007 से 2010
के बीच केन्द्र सरकार ने आदिवासियों के विकास पर 4200 करोड़ रुपये
खर्च किये, मगर अफसोस कि इससे आदिवासियों को तन ढंकने के लिए लंगोट तक
हासिल नहीं हुई। यानी भ्रष्टाचार की जड़ों से निकली साखों ने
आदिवासियों का हक छीन लिया।
एकता परिषद ने 6 से 8 मार्च, 2011 को नई दिल्ली में सरकार का ध्यान इस
ओर आकर्षित करने के लिये प्रदर्शन भी किया। इस प्रदर्शन के माध्यम से
उसने सरकार से कहा कि गरीबी, हिंसा और पलायन रोकने के लिये 2007 में
जो वायदे किये थे, उसे क्रियान्वित करे। सन 2008 से ही एकता परिषद ने
लगातार सरकार के साथ मिल कर भूमि और जीविकोपार्जन नीति बनाने तथा बने
हुए गरीबोन्मुखी कानूनों और नीतियों को लागू करने में संगठन की ओर से
मदद करने के लिये संवाद बनाये रखा है, लेकिन सरकार का रुख सकारात्मक
नहीं है, जो संगठन के लिये चिन्ता का विषय है। ऐसी स्थिति में संगठन
के सामने एक ही विकल्प था कि वह एक विशाल अहिंसात्मक जनान्दोलन करे और
इसी क्रम में जनसत्याग्रह 2012 की घोषणा की गई है। जिसमें एक लाख लोग
ग्वालियर से दिल्ली पदयात्रा करेंगे। इस जनसत्याग्रह को विराट रूप
देने से पहले 2009-2010 में देश के विभिन्न हिस्सों में बीस से अधिक
मेलों का आयोजन कर इसकी नींव रखी गई थी। ये मेले खासतौर से आदिवासियों
के विभिन्न मुद्दों को पहचानने और उन्हें सामने लाने के लिए आयोजित
किये गये थे।
यह जनसत्याग्रह यात्रा 2 अक्टूबर, 2011 को देश के दक्षिणी छोर
कन्याकुमारी से शुरू हुई । सामाजिक कार्यकर्ताओं का एक समूह देश के
339 जिलों (लगभग 65000 किलोमीटर) की यात्रा करेगा। इस यात्रा के
माध्यम से अलग-अलग जगहों पर दलितों, आदिवासियों, भूमिहीन मजदूरों,
छोटे किसानों तथा महिलाओं के मुद्दों पर हो रहे अहिंसात्मक संघर्षों
से संवाद स्थापित किया जायेगा और उन्हें इस विशाल जनान्दोलन से जोड़ने
का प्रयास किया जायेगा। इस दौरान युवा शिविर भी लगाये जायेंगे। यह
यात्रा 25 सितंबर, 2012 को ग्वालियर पहुंच कर उन एक लाख लोगों के साथ
मिल जायेगी, जो 2 अक्टूबर, 2012 को ग्वालियर के मेला ग्राउंड से
दिल्ली की ओर पदयात्रा करेंगे।
- पी.वी. राजगोपाल, भारतीय पक्ष | 21 दिसंबर 2011
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