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टेलीविजन पर टीवी शॉप कार्यक्रमों में आमतौर पर देखे जाने वाले तंत्र-मंत्र, ज्योतिष एवं जादू टोने, छद्म विज्ञापन और टीवी कार्यक्रमों में अभद्र विषयवस्तु पर सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय ने सख्त रूख अपनाते हुए 27 विज्ञापनों को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी करार दिया है साथ ही छद्म विज्ञापनों के संबंध में प्रक्रिया एवं दिशानिर्देशों को व्यवस्थित करने की बात कही है।
समाज के कई वर्गो की ओर से टेलीविजन पर भ्रम फैलाने और तथ्यात्मक रूप से गलत विज्ञापन तथा रियलिटी शो पर अभद्र विषय वस्तु पेश किए जाने की शिकायत प्राप्त हुई थी।
भारतीय विज्ञापन मानक परिषद [एएससीआई] की उपभोक्ता शिकायत परिषद के समक्ष जुलाई 2011 तक प्रसारित कार्यक्रमों और विज्ञापनों के संबंध में काफी शिकायतें प्राप्त हुई थी। इनमें से 27 शिकायतों को आचार संहिता के उल्लंघन का दोषी पाया गया जबकि 15 शिकायतों को अस्वीकार कर दिया गया।
समाज के विभिन्न वर्गो और संसद सदस्यों की ओर से कुछ टेलीविजन धारावाहिकों और रियलीटी शो में अभद्र विषयवस्तु पेश किए जाने की शिकायत की गई थी।
जद यू अध्यक्ष शरद यादव ने कहा कि टेलीविजन पर कई ऐसे कार्यक्रम
पेश किए जा रहे हैं जिन्हें परिवार के साथ बैठकर नहीं देखा जा सकता।
इन कार्यक्रमों में महिलाओं और भारतीय समाज एवं संस्कृति की गलत
तस्वीर पेश की जा रही है।
इन शिकायतों पर [एएससीआई] ने सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय को ऐसे
विज्ञापनों पर रोक लगाने का सुझाव दिया था। मंत्रालय ने एएससीआई को
पत्र लिखकर इस मामले में सुझाव देने को कहा था।
मंत्रालय के एक अधिकारी ने कहा कि टेलीविजन पर प्रसारित कार्यक्रम के नियमन के लिए फिल्म सेंसर बोर्ड की तरह कोई केंद्रीय सेंसर निकाय नहीं है। टेलीविजन कार्यक्रम कुछ निर्धारित दिशानिर्देशों और आचार संहिता के तहत प्रसारित होते हैं जिनका स्वरूप आत्म नियमन की तर्ज का होता है।
अधिकारी ने कहा कि मंत्रालय हालांकि कार्यक्रमों की निगरानी करता है। आचार संहिता के तहत शराब या किसी अन्य उत्पाद का छद्म विज्ञापन प्रसारित नहीं किया जा सकता है। इस विषय पर प्रक्रिया एवं दिशानिर्देशों को व्यवस्थित किया जा रहा है।
एएससीआई ने मंत्रालय को भेजे जवाब में कहा कि ऐसे विज्ञापन जिनके माध्यम से अवैज्ञानिक, तकनीकी एवं तथ्यात्मक रूप से गलत तथा भ्रम फैलाने वाली जानकारी प्रदान की जाती है..इसकी इजाजत नहीं दी जा सकती है।
परिषद ने इस विषय में विभिन्न टीवी चैनलों पर प्रसारित विज्ञापनों का जिक्र किया जिसमें रक्षा कवच, तंत्र मंत्र, रत्न आदि के माध्यम से दुर्घटना, आपदा आदि से रक्षा का दावा किया जाता है।
गौरतलब है कि हरियाणा एवं पंजाब हाईकोर्ट की टिप्पणी के आलोक में परिषद को पत्र लिखकर यह पूछा गया था कि क्या तंत्र-मंत्र, ज्योतिष आदि से जुड़े विज्ञापणों को औषधि एवं जादू टोना निवारक [आपत्तिजनक विज्ञापन] कानून 1954 के दायरे में लाया जा सकता है। परिषद ने कहा कि वह हाईकोर्ट के सुझाव का समर्थन करती है।
कुछ दिन पहले ही डियोड्रेंड, साबुन आदि के विज्ञापन पर प्राप्त शिकायतों के बाद परिषद ने टेलीविजन चैनलों पर इनका प्रसारण बंद करने को कहा था।
एएससीआई के अधिकारी ने बताया कि परिषद ने मार्च 2011 से जुलाई 2011 के बीच प्राप्त शिकायतों के आधार पर विज्ञापनकर्ताओं से या तो इनके प्रारूप में बदलाव करने अथवा इसे हटाने को कहा है।
— साभार सुदर्शन टी.वी.
दिल्ली हाईकोर्ट के अधिवक्ता अशोक के सिंह ने कहा कि टेलीविजन पर तथ्यात्मक रूप से गलत विज्ञापनाें के प्रसारण पर रोक लगाने के लिए कानून तो हैं, लेकिन इन पर अमल ठीक ढंग से नहीं होता है। इसके साथ ही कानून में दंड के प्रावधान सख्त नहीं हैं।
उन्होंने कहा कि औषधि एवं जादू टोना निवारक [आपत्तिजनक विज्ञापन] कानून 1954 में ऐसे विज्ञापनों के नियमन एवं दंड का प्रावधान है। कानून की परिभाषा के दायरे में जादू टोना, तंत्र-मंत्र, ज्योतिष आदि के माध्यम से गलत विज्ञापन को लाया गया है।
उन्होंने कहा कि कानून की धारा-4 और 5 में कहा गया है कि कोई भी व्यक्ति औषधि, तंत्र-मंत्र, जादू टोना आदि के माध्यम से दुर्घटना, शारीरिक बीमारी, पेशे में बढोत्तरी, बाधा दूर करने जैसे गलत दावे नहीं कर सकता है।
सिंह ने हालांकि कहा कि इसके लिए कानून में अधिकतम एक वर्ष के कारावास या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है। इसे बढ़ाए जाने की जरूरत है।
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