टूजी मामले पर वित्त मंत्री प्रणब मुखर्जी की सफाई को अभी चंद घंटे ही बीते थे कि दोनों कांग्रेसी दिग्गज एक बार फिर आपस में भ..
यूपीए सरकार ने कृषि, श्रम सुधारों को उपेक्षित छोड़ा, रोजगार सृजन में भी असफल : विशेषज्ञ
यूपीए सरकार की 'सम्मिलित विकास' (इन्क्लूसिव ग्रोथ') की बड़ी बड़ी रणनीति की सफलता का बुलबुला कुछ वर्ष पहले आई अर्जुन सेनगुप्ता योग की रिपोर्ट जिसने इस तथ्य को उजागर किया की "दूसरा भारत" इन निर्धन हिताय योजनाओं से बहुत कम लाभान्वित हुआ, से फूट चुका है |
अर्थशास्त्रियों एवं राजनैतिक विशेषज्ञों के अनुसार राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के नवीनतम प्रतिवेदन (रिपोर्ट) के मुख्य बिन्दुओं पर ध्यान दें तो समग्र सुधार के स्थान पर ऊँचे लक्ष्यों के नाम पर बनायीं गयी दिशाहीन रोजगार सृजन योजनायों की व्यर्थता स्पष्ट रूप से प्रकट हो जाती है |
प्रख्यात अर्थशास्त्रज्ञ शंकर आचार्य के अनुसार "नवीनतम आंकड़े इस धारणा को सुदृढ़ करते हैं कि हमें वस्तुतः सुधार चाहिए, मात्र योजनायें नहीं" | शंकर ने आगे जोड़ा कि सरकार को कोई प्रत्यक्ष राजनैतिक चुनौती नहीं हो सकती परन्तु कुछ बड़ा अर्जित करने के अपने प्रयासों में वे अनुचित नीतियों को अपना रहे हैं |
मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार ने आर्थिक समावेश के भव्य विचार का प्रदर्शन अपने प्रथम कार्यकाल अर्थात २००४ से ही करना प्रारंभ कर दिया था, बाद में 'आम आदमी' को लुभाने के मंतव्य से उन्होंने अपनी निर्धन हिताय योजनाओं को दूसरे कार्यकाल में और विस्तारित किया |
अन्य राजनैतिक दलों ने भी इन योजनाओं पर प्रहार किये हैं | विशेषकर वामपंथियों ने यूपीए की इन निर्धन हिताय नीतियों को समष्टिगत संगठनों (कॉर्पोरेट) के लिए लाभ के अधिक अवसर बनाने वाला एवं सामान्य जनों पर अधिक भार बढ़ाने वाली "कपटपूर्ण नीति" कह कर संबोधित किया है |
भारत सरकार के संक्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वन मंत्रालय के अंतर्गत आने वाले राष्ट्रीय प्रतिदर्श सर्वेक्षण कार्यालय (NSSO) के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार २००४-०५ से २००९-१० तक यूपीए के कार्यकाल में प्रतिवर्ष केवल २ लाख नए रोजगार के अवसरों का सृजन हुआ | १९९०-०० से २००४-०५ तक भाजपा के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के कार्यकाल में ये संख्या प्रतिवर्ष एक करोड़ बीस लाख नए रोजगार की थी | यह नवीनतम सर्वेक्षण जुलाई २००९ से जून २०१० के मध्य में कराया गया था |
विकासशील समाज अध्ययन केंद्र (सेण्टर फॉर स्टडी ऑफ़ डेवेलपिंग सोसाइटी) की वरिष्ठ अध्येता (फेलो) मधु किश्वर कहती हैं, "मनरेगा एवं उसके जैसी अन्य योजनायें केवल निर्धनता उन्मूलन एवं रोजगार सृजन के समस्याओं पर बैंड-ऐड चिपकाने जैसा समाधान प्रदान करती हैं|" किश्वर, जो कि राष्ट्रीय उद्यम आयोग (असंगठित एवं अनौपचारिक क्षेत्र) की सदस्या भी हैं, वे आगे कहती हैं, "वास्तव में हमें ऐसा कुछ चाहिए जो असंगठित एवं अनौपचारिक क्षेत्रों जैसे कृषि एवं श्रम आदि में आर्थिक सुधार ला सके | निर्धन समाज उदारीकरण के लाभों के नीचे पहुचने की प्रतीक्षा नहीं कर सकता| अपितु उन्हें ऐसे सुधारों की आवश्यकता है जो उन्हें प्रत्यक्ष रूप से अधिक धनार्जन करने में सहयोग दे सकें| "
साभार - अभिषेक टंडन | स्त्रोत : इकोनोमिक टाइम्स
Share Your View via Facebook
top trend
-
गरबा डांस में भिड़े चिदम्बरम और प्रणब, डांडिया स्टिक से किया एक दूसरे पर हमला — फेकिंग न्यूज़
-
"बंद कर देनी चाहिए सीबीआई" - राजस्थान उच्च न्यायालय की टिप्पणी
राजस्थान उच्च न्यायालय ने भी अब वो कह दिया है जो देश की जनता कब से अनुभव करती आ रही है की सीबीआई जिस कार्य के लिए बनायीं..
-
पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या : माफिया, मीडिया और विपक्ष
मुरैना में होली के दिन हुई पुलिस अफसर नरेंद्र कुमार की हत्या ने सारे देश में सनसनी-सी फैला दी थी| माना यह जा रहा था कि व..
-
गलती थी नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा : केजरीवाल
लखनऊ पहुचें टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल ने मौके का इस्तेमाल मुस्लिम समाज से करीबी बढ़ाने में भी की। अरविन्..
-
तेलंगाना के लिए बसें, ऑटो रिक्शा सब बंद, 48 घंटों का रेल-रोको आंदोलन शुरु
आंध्र प्रदेश में अलग तेलंगाना राज्य के समर्थन में पिछले 12 दिनों से चल रही अनिश्चित काल की हड़ताल के तहत शनिवार से 48 घंटो..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)