याददाश्त पर हावी हादसे — प्रीतीश नंदी

Published: Saturday, Oct 01,2011, 18:30 IST
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कयानी बेकरी, प्रीतीश नंदी, आजमगढ़, विजया बैंक, बोफोर्स,

पिछले सप्ताहांत मैंने इशिता से पुणो की एक जगह के बारे में जानना चाहा। उसने मुझे बताया कि वह जगह कयानी बेकरी के करीब है। मैंने पूछा : और कयानी बेकरी कहां है? उसने फौरन जवाब दिया : अरे वहीं, जहां बम धमाका हुआ था! मैंने विनम्रतापूर्वक उसकी गलती को सुधारते हुए कहा कि बम धमाका कयानी बेकरी पर नहीं, जर्मन बेकरी पर हुआ था। लेकिन जिस एक चीज ने मेरा ध्यान खींचा, वह यह थी कि हमारे द्वारा चीजों को याद रखने के तरीके किस तरह बदलते जा रहे हैं।

इस घटना से भी एक हफ्ता पहले मेरे एक दोस्त, जो दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती फिटनेस चेन के मालिक हैं, ने मुझे फोन करके बताया कि वे मुंबई आ रहे हैं। साथ ही उन्होंने यह भी पूछ लिया कि क्या ताज में ठहरना सुरक्षित होगा? मैंने उत्सुकतावश पूछा : आप ऐसा क्यों कह रहे हैं? उन्होंने कहा : कहीं ऐसा तो नहीं कि समुद्री रास्ते से आतंकवादी फिर ताज में घुस आएं।

लेकिन इसके बाद उन्होंने अपनी बात में यह भी जोड़ दिया कि वास्तव में यह विचार उनकी पत्नी के दिमाग में आया था, जो एडवेंचर टूरिज्म की शौकीन हैं और वे कराची भी जाना चाहती थीं, लेकिन मेरे मित्र यह तय नहीं कर पा रहे थे कि कराची जाना उनके लिए सुरक्षित रहेगा या नहीं। मैंने उन्हें कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है और वे मुंबई में ताज में भी ठहर सकते हैं। अगर उनकी पत्नी उन छलनी दीवारों को देखना चाहती हैं, जहां कसाब और उसके गिरोह ने एके ४७ दागी थीं तो मैं उन्हें लंच कराने लियोपोल्ड्स भी ले जा सकता हूं।

एक अन्य घटना हाल ही की है। एक ड्राइवर नौकरी की तलाश में मेरे पास आया। उसने मुझे बताया कि वह फतेहपुर का रहने वाला है। मेरे मुंह से तत्काल निकला : वहीं, जहां जुलाई में कालका मेल पटरी से उतर गई थी? मैं भूल गया कि फतेहपुर उन चुनिंदा जगहों में से है, जहां आज भी वैदिक काल और गुप्त वंश के भग्नावशेष पाए जा सकते हैं। ह्वेनसांग ने भी फतेहपुर की यात्रा की थी और उसके बारे में लिखा था। लेकिन मैंने यह सारा इतिहास भुला दिया। मुझे फतेहपुर के बारे में केवल इतना ही याद था कि वहां हुए दर्दनाक ट्रेन हादसे में कई लोगों की जान चली गई थी।

हम विजया बैंक को इसलिए याद रखते हैं, क्योंकि हर्षद मेहता घोटाला उजागर होने पर बैंक के चेयरमैन ने छत से कूदकर जान दे दी थी। लेकिन हम उसे इसलिए याद नहीं रखते कि वह भारत में क्रेडिट कार्ड लॉन्च करने वाली प्रारंभिक बैंकों में से थी। हम बिहार को एक ऐसे प्रदेश के रूप में याद रखते हैं, जहां हर 15 मिनट में एक महिला के साथ ज्यादती की जाती है और हर 45 मिनट में एक डकैती होती है, लेकिन हम उसे एक ऐसे प्रदेश के रूप में नहीं याद रखते, जहां से अधिकांश आईएएस अधिकारी निकलते हैं और यदि एनडीए सत्ता में आती है तो शायद अगला प्रधानमंत्री भी बिहार से ही होगा।

हम आजमगढ़ को आतंक की पनाहगाह के रूप में याद रखते हैं, कैफी आजमी के जन्म स्थल के रूप में नहीं। हम पूर्वोत्तर के प्रदेशों को संकटग्रस्त मानते हैं, जहां सभी एक-दूसरे से लड़ रहे हैं और जहां हमेशा सेना तैनात रहती है, लेकिन हम यह भूल जाते हैं कि यह इलाका दुनिया की सबसे खूबसूरत जगहों में से एक है।

बात केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। हम सोमालिया और इथियोपिया को भुखमरी और विद्रोहों के लिए जानते हैं, लेकिन भारतीय व्यापारियों से उनके सदियों पुराने संबंधों के लिए नहीं। हम लगभग यह भूल चुके हैं कि पाकिस्तान कभी हमारा ही एक हिस्सा हुआ करता था और हमारी एक साझा संस्कृति और साझा इतिहास था।

जब हम पाकिस्तानी क्रिकेट के बारे में बात करते हैं तो मोहम्मद आमेर और मोहम्मद आसिफ जैसे दागदार गेंदबाजों को याद करते हैं, लेकिन इमरान खान और वसीम अकरम जैसे विलक्षण खिलाड़ियों को भूल जाते हैं। हमारे लिए पाकिस्तान का पर्याय कसाब है, फैज नहीं। ठीक उसी तरह, जैसे हमारे लिए जापान का पर्याय फुकुशिमा है, हारुकि मुराकामी नहीं।

ऐसा नहीं है कि मैं नरेंद्र मोदी का प्रशंसक हूं, लेकिन मुझे लगता है कि आज उनके गृहराज्य में उनके जितने समर्थक अनुयायी हैं, उतने देश के किसी अन्य मुख्यमंत्री के नहीं होंगे। उनके एक दशक के कार्यकाल को देखते हुए यह एक अद्भुत उपलब्धि है, क्योंकि इतनी अवधि में मतदाता आमतौर पर सरकार बदल देने के मूड में आ जाते हैं।

इस एक दशक में मोदी ने गुजरात का नवनिर्माण किया और औद्योगिक विकास के क्षेत्र में उसे देश का नंबर वन राज्य बना दिया। लेकिन इसके बावजूद हम उन्हें केवल २क्क्२ के दंगों के लिए याद रखते हैं। जब उन्होंने हाल में सद्भावना उपवास का आयोजन किया तो कइयों ने उनकी खिल्ली उड़ाई। मुझे लगता है कि हमने यह तय कर लिया है कि हम नरेंद्र मोदी को सांप्रदायिक दंगों के लिए याद रखेंगे, उनकी उपलब्धियों के लिए नहीं।

हम राजीव गांधी को बोफोर्स और सिख विरोधी दंगों के लिए याद रखते हैं। ठीक वैसे ही जैसे हम इंदिरा गांधी को आपातकाल के लिए याद रखते हैं। हम वीपी सिंह को मंडल विरोधी आंदोलनों और देवगौड़ा को बैठकों में झपकी लेने के लिए याद रखते हैं। हम लालू प्रसाद को चारा घोटाले के लिए याद रखना चाहते हैं, आडवाणी का रथ रोकने के लिए नहीं। हम पश्चिम बंगाल की सीपीएम सरकार को नंदीग्राम और सिंगुर के लिए याद रखते हैं, लेकिन ज्योति बसु और बुद्धदेब भट्टाचार्य जैसे निष्ठावान मुख्यमंत्रियों के लिए नहीं।

अगर हमारा यही रवैया रहा तो हम आने वाले दिनों में मुंबई जैसे अद्भुत शहर को केवल उसकी सड़कों के गड्ढों के लिए याद रखेंगे और महाराष्ट्र को इस तथ्य के लिए कि वहां रोज 77 बच्चे भूख से मर जाते हैं। और हम यूपीए -2 को 2जी घोटाले और प्याज की कीमतों के लिए याद रखेंगे, उन आर्थिक सुधारों के लिए नहीं, जिनका वादा मनमोहन सिंह ने देश की जनता से किया था।

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