कहते है जितनी विविधताएँ हमारे देश में हैं, उतनी विश्व के किसी भी देश में नहीं है। बोली, भाषा, खानपान, वेशभूषा से लेकर गी..
अन्ना का जनलोकपाल देश के लिए खतरनाक, 10 घंटे चली चर्चा

अन्ना के जनलोकपाल बिल को देश की जनता ने भले ही हाथों हाथ लिया पर विधि-संविधान विशेषज्ञों को बिल में तमाम खामियां नजर आ रही हैं। लोकपाल पर विचार के लिए गठित संसद की स्थायी समिति की बैठक में शनिवार को अपने विचार रखने आए ज्यादातर विशेषज्ञों ने न्यायपालिका, सांसदों व प्रधानमंत्री पद को प्रस्तावित लोकपाल के दायरे से बाहर रखने की जोरदार वकालत की। साथ ही कहा, अन्ना का मसौदा संविधानेत्तर है।
इस पर अमल हुआ तो वह किसी संवैधानिक निकाय से ऊपर हो जाएगा। ऐसा होना देश के लिए खतरनाक होगा। कार्मिक, जनशिकायत और विधि तथा न्याय मामलों की स्थाई समिति के समक्ष लोकसत्ता पार्टी के जयप्रकाश नारायण, सेंटर फॉर पोलिसी रिसर्च के प्रताप भानू मेहता, बार काउंसिल ऑफ इंडिया के अध्यक्ष अशोक पारिजा, प्रख्यात वकील हरीश साल्वे और जस्टिस पार्टी के प्रमुख उदित राज ने अपने विचार रखे।
नारायण ने दावा किया कि हज़ारे के जनलोकपाल पर अमल हुआ तो वह किसी संवैधानिक निकाय से भी ऊपर हो जाएगा, जो देश के लिए खतरनाक होगा। उन्होंने न्यायपालिका और उसमें भ्रष्टाचार के आरोपों के मामलों से निपटने के लिए राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन का पक्ष लिया। नारायण ने कहा, मीडिया को लोकपाल के दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए, लेकिन उसके कामकाज पर नजर रखने के लिए पृथक और प्रभावी कानून बनाया जाए क्योंकि पेड न्यूज और गलत खबरों के मामलों से निपटना जरूरी है।
हरीश साल्वे ने समिति को बताया कि जनलोकपाल की स्थापना असंवैधानिक होगी क्योंकि इससे एक ऐसा एकांगी प्राधिकार बन जाएगा जो संविधान के तहत प्रदत्त स्वतंत्रता नष्ट कर देगा। उन्होंने कहा, सरकार से और निजी तौर पर आर्थिक मदद पाने वाले सभी गैर-सरकारी संगठनों को लोकपाल के दायरे में रखा जाए। साथ ही कहा, हजारे के सुझावों के आधार पर अगर जनलोकपाल का गठन किया जाता है तो इससे उच्चतम न्यायालय से भी ऊपर एक संस्थान बन जाएगा जो संविधान के उपहास की तरह होगा।
साल्वे ने भ्रष्टाचार निरोधक जैसे मौजूदा कानूनों की मजबूती और सीबीआई व केंद्रीय सतर्कता आयोग जैसे संस्थानों के सशक्तीकरण का पक्ष लिया। साल्वे ने सीबीआई के लिए स्वतंत्र अभियोजन इकाई की वकालत की ताकि एजेंसी सरकार से मंजूरी मिलने का इंतजार किए बिना ही अभियोजन चला सके। उन्होंने कहा, सीबाआई द्वारा की जाने वाली जांच में सरकार की दखलंदाजी नहीं होनी चाहिए। मेहता व पारिजा ने अनच्च्छेद 105 की शुचिता बनाए रखने का पक्ष लिया, जो कि संसद सदस्यों को ससद के भीतर उनके आचरण से जुड़े कुछ विशेषाधिकार देता है।
मेहता ने प्रधानमंत्री पद और गैर- सरकारी संगठनों को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने का पक्ष लिया। उन्होंने कहा, प्रधानमंत्री देश के मुख्य कार्यकारी अधिकारी की तरह होते हंै। उन्हें लोकपाल के दायरे में रखने से संसद कमजोर होगी। समिति के समक्ष राज्य बार काउंसिल के प्रतिनिधियों के साथ पेश हुए मेहता ने कहा, नागरिक घोषणा पत्र (सिटीजन चार्टर) शुरू करना भ्रष्टाचार से निपटने का एक प्रभावी और व्यवहार्य तरीका होगा। उन्होंने सीबीआई को स्वतंत्र संवैधानिक निकाय बनाने का भी पक्ष लिया जो सरकार के बजाय संसद के प्रति जवाबदेह हो। वहीं, समिति के अध्यक्ष अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, दो दिन तक 10 घंटे चली चर्चा सार्थक रही। उन्होंने उम्मीद जताई कि संसद को रिपोर्ट समय पर सौंपने के लिए समिति के सदस्य इस गतिशीलता को बनाए रखेंगे।
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