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एक्सक्लूसिवः 2जी घोटाले में प्रधानमंत्री की भी भूमिका! अमेरिका में आपात बैठक

2जी स्पेक्ट्रम आवंटन मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने
मंत्रियों के समूह (जीओएम) के टर्म्स ऑफ रिफरेंस (टीओआर अथवा
कार्यवाही के बिंदु) को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी
सहमति से ही स्पेक्ट्रम की कीमतें तय करने का हक जीओएम से लेकर
टेलीकॉम मंत्री को दे दिया गया। इसी वजह से तत्कालीन
टेलीकॉम मंत्री ए राजा जनवरी 2007 में घोटाला कर पाए, जिससे देश को
1.76 लाख करोड़ का नुकसान हुआ। सामाजिक कार्यकर्ता विवेक गर्ग ने
सूचना का अधिकार (आरटीआई) के तहत गोपनीय दस्तावेज हासिल किए हैं,
जिनसे यह खुलासा हुआ।
2जी घोटाले में पहले पी चिदंबरम, फिर प्रणब मुखर्जी और अब खुद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की भूमिका को लेकर हो रहे खुलासे के बीच
प्रणब मुखर्जी अमेरिका में प्रधानमंत्री से आपात बैठक करने वाले हैं।
(विस्तृत खबर रिलेटेड आर्टिकल में)
मनमोहन से मिले मारन: जनवरी 2006 में प्रधानमंत्री ने दूरसंचार
कंपनियों के लिए रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली करवाने
के मामले में जीओएम के गठन को मंजूरी दी थी। जीओएम के सामने सिफारिशों
पर विचार करने के विषय विस्तृत थे। इसमें दुर्लभ 2जी स्पेक्ट्रम की
कीमतों के निर्धारण पर भी चर्चा होनी थी। एक फरवरी 2006 को तत्कालीन
दूरसंचार मंत्री दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री से मुलाकात की। इसके
बाद उन्होंने प्रधानमंत्री को पत्र लिखा।
मेरी इच्छा के हों टीओआर : 28 फरवरी 2006 को तत्कालीन दूरसंचार मंत्री
और द्रमुक नेता दयानिधि मारन ने प्रधानमंत्री को अर्धशासकीय पत्र (डीओ
नंबर एल-14047/01/06-एनटीजी) लिखा। मारन ने ‘गोपनीय’ पत्र में लिखा,
‘आपको याद ही होगा कि एक फरवरी 2006 की मुलाकात में हमने रक्षा
मंत्रालय द्वारा स्पेक्ट्रम खाली करने के मुद्दे पर गठित जीओएम पर
चर्चा की थी। आपने मुझे आश्वस्त किया था कि जीओएम के टीओआर हमारी
इच्छानुसार तैयार होंगे। यह जानकर आश्चर्य हुआ कि जीओएम के सामने जो
विषय रखे गए हैं, वे बहुत व्यापक हैं। ऐसे मामलों का परीक्षण किया जा
रहा है, जो मेरे अनुसार मंत्रालय स्तर पर किए जाने वाले कार्यो में
अतिक्रमण है। विचार के इन बिंदुओं में हमारी सिफारिशों के आधार पर
बदलाव किया जाए।’
मारन ने बनाए जीओएम की कार्यवाही के बिंदु: मारन ने पत्र के साथ जीओएम
के लिए कार्यवाही के बिंदुओं का नया प्रस्ताव भी भेजा। पहले जीओएम को
छह बिंदुओं पर चर्चा के लिए कहा गया था। इनमें स्पेक्ट्रम का मूल्य
निर्धारण शामिल था। मारन ने प्रस्तावित एजेंडे में से उसे हटा दिया।
सिर्फ चार विषयों को ही प्रस्तावित कार्यवाही के बिंदुओं में शामिल
किया। यह सभी रक्षा मंत्रालय से अतिरिक्त स्पेक्ट्रम खाली कराने से
जुड़े थे। प्रधानमंत्री ने जवाबी पत्र में मारन का पत्र मिलने की
पुष्टि की।
चार बड़ी वजहें जो उन्हें संदेह के घेरे में लाती हैं
१ - कार्यवाही के बिंदु कैसे बदले
कार्यवाही के बिंदुओं (टर्म्स ऑफ रिफरेंस) की जानकारी केवल तीन
किरदारों के पास थी। खुद टेलीकॉम मंत्री दयानिधि मारन, दूसरे प्रणब की
अध्यक्षता वाले मंत्रियों का समूह और तीसरे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह।
या तो दयानिधि मारन ने बिंदु बदले (लेकिन यह इनके अधिकार क्षेत्र से
बाहर था। यह उनके लिए असंभव था।) या मंत्रियों का समूह ने ऐसा
किया (अपनी ही कार्यवाही के बिंदु वे बदलकर हलके क्यों करेंगे।) फिर
मारन प्रधानमंत्री से मिले। इसके बाद ही कार्यवाही के बिंदु बदल
गए।
२ - नोटिफिकेशन पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई गई
चूंकि केबिनेट सचिवालय न तो संचार मंत्री को रिपोर्ट करता है और न
मंत्रियों के समूह को। वह सीधे प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता है।
प्रधानमंत्री की सहमति के बाद ही केबिनेट सचिवालय से नोटिफिकेशन जारी
हो सकता है।
३ - मंत्रियों का समूह चुप क्यों रहा
आठ प्रभावशाली मंत्रियों वाले इस समूह ने कार्यवाही के बिंदु बदले
जाने पर आपत्ति क्यों नहीं उठाई? तीन ही बातें हो सकती हैं
1. या तो बिंदु बदलने से उनका कुछ लेना देना नहीं था
2. या उन्हें जानकारी नहीं थी। ये दोनों बातें असंभव है।
3. या यह प्रधानमंत्री का आदेश था, जिसकी वे अवहेलना नहीं कर सकते
थे।
4 - वित्तमंत्री को क्यों किया नजरअंदाज
सरकारी कामकाज के नियम-1961 के मुताबिक ऐसे किसी भी फैसले को लेने से
पहले जिसमें पैसों का मामला हो, वित्तमंत्रालय से सलाह मशविरा जरूरी
है। लेकिन इस मामले में तत्कालीन वित्तमंत्री की पूरी तरह अनदेखी की
गई। यह तभी संभव था
जब प्रधानमंत्री ने खुद आदेश दिए हों। मारन के इस पत्र से स्पष्ट हुआ
कि मंत्री समूह के कार्यवाही के बिंदु बदलने में प्रधानमंत्री की
सहमति थी। राजा भी
यही कहते थे
राजा ने 25 जुलाई 2011 को सीबीआई की विशेष अदालत में दलील दी थी कि
मैंने जो भी किया उसके पीछे मनमोहन और चिदंबरम की मंजूरी थी।
जनलोकपाल होता तो ये सब जेल में होते
देश में आज जन लोकपाल कानून होता तो चिदंबरम और भ्रष्टाचार को बढ़ावा
देने वाले बाकी नेता भी जेल में होते। चिदंबरम ने मुझे जेल भेजा था।
देखिए, आज वे खुद जेल जाने की कगार पर हैं। -अन्ना
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