भगवद गीता से दादागीरी, गीता के बारे में पादरियों की आपत्ति क्या हो सकती है?

Published: Tuesday, Dec 20,2011, 09:28 IST
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19 दिसंबर 2011 : धर्म के मामले में व्लादिमीर पुतिन का रूस व्लादिमीर लेनिन के रूस से कम नहीं है| सोवियत-काल में ईसाइयों और यहूदियों के मुंह पर ताले जड़ दिए| सरकार इन धर्म-ध्वजियों की धुनाई भी करती थी और इन्हें रोने भी नहीं देती थी| कार्ल मार्क्स के इस कथन पर सोवियत सरकारें अमल करके दिखाती थीं कि धर्म जनता की अफीम है| चर्च, साइनेगॉग और मस्जिदें उस दौरान वीरान पड़ी रहती थीं| सिर्फ कार्ल मार्क्स के धर्म, साम्यवाद की तूती बोलती थी|

रूस में अब भी वही ढर्रा चल रहा है| पहले सरकारी दादागीरी चलती थी| अब ईसाई कट्टरपंथियों की दादागीरी चल पड़ी है| धर्म के मामले में वही कट्टरवाद दोबारा बीमारी की तरह फैलने लगा है| रूस के कट्टर आर्थोडॉक्स ईसाई मांग कर रहे हैं कि भगवदगीता पर प्रतिबंध लगाओ| साइबेरिया के शहर तोम्स्क की अदालत में गीता के खिलाफ मुकदमा चल रहा है| यह विवाद खड़ा हुआ है, ‘एस्कॉन’ के प्रभुपाद की गीता के रूसी अनुवाद के कारण| यदि मुकदमेबाजों का तर्क यह है कि एक ईसाई देश में हिन्दू धर्म ग्रंथ पर प्रतिबंध होना चाहिए तो उनसे कोई पूछे कि फिर बाइबिल का क्या होगा? वह कितने देशों में चल पाएगी? भारत में तो उस पर एकदम प्रतिबंध लग जाएगा| दुनिया में 200 देशों में से वह 50 देशों में नहीं पढ़ी जा सकेगी| इसके अलावा रूस में इस समय लगभग 15 हजार भारतीय रहते हैं| उनसे भी ज्यादा आग्रह के साथ गीता पढ़नेवाले ‘एस्कॉन’ के वे हजारों भक्त हैं जो ठेठ रूसी ही हैं| इन रूसियों के गीता-प्रेम ने ही उत्साही पादरियों के पेट का पानी हिला दिया है| इन पादरियों को यह पता नहीं कि गीता उस तरह का धर्मग्रंथ नहीं है, जैसे कि बाइबिल या कुरान है| वह भारत में लिखी गई है और भारत में हिन्दू ज्यादा रहते हैं| इसलिए लोग उसे हिन्दू धर्मग्रंथ कह देते हैं| गीता में तो हिन्दू शब्द एक बार भी नहीं आया है| गीता तो अनासक्त कर्मयोग सिखाने वाला एक वैज्ञानिक विश्वग्रंथ है| इसलिए महान यूरोपीय दार्शनिक शॉपनहावर कहा करते थे कि गीता मेरे जीवन का सबसे बड़ा सहारा है| गीता का किसी भी धर्मग्रंथ से कुछ लेना-देना नहीं है| वे पृथ्वी पर आए, उसके बहुत पहले ही वह आ गई थी|

गीता के बारे में पादरियों की आपत्ति क्या हो सकती है? सबसे बड़ी आपत्ति तो यही कि रूस के आम लोगों को किसी भी धर्म के बारे में कोई खास जानकारी नहीं है| ऐसे में अगर उन्हें गीता एकदम पसंद आ गई तो उन्हें बाइबिल की तरफ मोड़ना मुश्किल हो जाएगा| वे ‘हिन्दू’ बन जाएंगे| दूसरी आपत्ति यह हो सकती है कि गीता युद्घ करना सिखाती  है| हिंसा का उपदेश देती है| अर्जुन को कृष्ण कहते हैं, ”उठो, कौन्तेय! युद्घ करो! जीतोगे तो पृथ्वी पर राज करोगे और मारे जाओगे तो स्वर्ग मिलेगा|” यह हिंसा का उपदेश नहीं है, अनासक्ति का है| यह उपदेश हिंसा का होता तो क्या गांधी गीता को सिर पर उठाए-उठाए घूमते? कृष्ण ने अर्जुन को मोहमुक्त किया और उसे अपना कर्तव्य बोध करवाया| तीसरी आपत्ति पादरियों को यह हो सकती है कि गीता कहती है कि ”हे अर्जुन, सारे धर्मों को छोड़कर तू सिर्फ मेरी शरण में आ जा|” अरे, इससे ज्यादा खतरनाक बात क्या हो सकती है? पादरी लोगों की दुकान का क्या होगा? यदि सभी लोग कृष्ण या गीता की शरण में चले गए तो बेचारे पादरी क्या करेंगे? भोले पादरी लोग इस श्लोक का मतलब भी ठीक से समझ नहीं पाए? इसका अर्थ इतना ही है कि हर मनुष्य का आखिरी सहारा ईश्वर ही है| ईश्वर, अल्लाह, गॉड, जिहोवा, अहुरमज्द में फर्क क्या है? गीता के लिए ये सब एक ही हैं| पादरियों को गीता से डरने की कोई जरूरत नहीं है|

रूस के पादरियों का बर्ताव कम्युनिस्ट पार्टी के कॉमरेडो जैसा क्यों हो रहा है? वे जरा बि्रटिश प्रधानमंत्र्ी डेविड केमरन से कुछ सीखें| केमरन ने किंग जेम्स की बाइबिल के 400वें जन्मोत्सव पर कहा कि बि्रटेन ईसाई देश है और मैं खुद ईसाई हूं, लेकिन अनेक धार्मिक मामलों में मेरे दिमाग में शक बना रहता है| इन शकों को दूर करने का एक तरीका यह भी है कि सभी धर्मो और (अ) धर्मों के ग्रंथ भी पढ़े जाएं| जहां तक गीता का सवाल है, वह तो इन ग्रंथों से अलग है और ऊपर है| वह एक साहित्यिक और आध्यात्मिक रचना है| उसे तो सभी पढ़ सकते हैं| शायद इसीलिए मध्यप्रदेश में मुख्यमंत्र्ी शिवराज चौहान ने उसे पाठशालाओं में पढ़ाने की घोषणा की है| दिल्ली मेट्रो के जनक श्रीधरनजी का कहना था कि उनकी सफलता के मूल में गीता ही है| उन्होंने अपने सभी साथी कर्मचारियों को गीता भेंट की थी और उन्होंने यह भी कहा कि सेवानिवृत्त होने के बाद उनका सबसे बड़ा शौक यह होगा कि वे रोज घंटे-दो घंटे गीता पढ़ सकेंगे| रूसी पादरी श्रीधर की न सुनें तो न सही, अपने शॉपनहावर की तो सुनें|

साभार वेद प्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

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