गोरखपुर राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने सांप्रदायिक हिंसा बिल लाने पर केंद्र सरकार के खिलाफ बड़ा आंदो..
नंगे सच को धर्मनिरपेक्षता के कपड़े पहनाने का प्रयास

मुजफ्फरनगर सांप्रदायिक हिंसा के सच को सामने लाने पर एक समूह विशेष द्वारा आजतक को जमकर निशाना बनाया जा रहा है। इस स्टिंग की हकीकत को छिपाने के लिए इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
खुद को सेक्यूलरिस्म की दौड़ का अंधा घोड़ा साबित करने की जुगत में लगे अखिलेश यादव ने इस स्टिंग को एक राजनैतिक दल विशेष को लाभ पहुंचाने तक वाला प्रयास कह डाला।
फिर क्या था, मीडिया में मठाधीश बने बैठे पूंजीवादी वामपंथियों ने अपने अपने स्तर पर इस स्टिंग और आजतक की मंशा पर सवाल उठाने शुरू कर दिए हैं। उन्हें समस्या सच दिखाने की नहीं बल्कि इसमें आजम खान को दोषी बनाए जाने को लेकर है।
आजम खान के नाम के इस्तेमाल को वे अल्पसंख्यकों पर हमले के तौर पर कर रहे हैं। फेसबुक, वेबसाइट के जरिए इस स्टिंग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
सेक्यूलर और अमन परस्त भारत का सपना देखने वाला ये मीडियाई संगठित गिरोह आजतक एसआईटी के प्रमुख दीपक शर्मा की पत्रकारिता पर सवाल उठा रहा है। उन्हें नरेंद्र मोदी का समर्थक बताने पर तुला है।
विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद के वैसाखी घोटाले को उजागर करने वाले दीपक शर्मा के पीछे कांग्रेसी हाथ धोकर तो पड़े ही थे, अब वह संगठित वाम पत्रकारों के गिरोह के निशाने पर हैं। इन्हीं आरोपों को लेकर दीपक शर्मा ने फेसबुक के जरिए अपना पक्ष रखा कि "गालियां तो किन्नर ज्यादा देते है।
गाली तो सबसे ज्यादा किन्नर देते हैं...
कुछ पत्रकार मित्र आपरेशन दंगा पार्ट 1-2 से बेहद खफा है। उनका मानना
है की ये आपरेशन प्रायोजित है। उन्हें शक नही पक्का यकीन है कि स्टिंग
के पीछे नरेन्द्र मोदी हैं। उन्हें यकीन है की इस आपरेशन के ज़रिये मै
और पुण्य प्रसून या मेरे चैनल के कुछ वरिष्ठ साथी अपनी मह्त्वकांषा
पूरी करना चाहते हैं। कुछ खास मित्रों ने विरोध और आवेश में लिखा और
कुछ मित्रों ने अपनी वेबसाइट पर छापा भी। पारदर्शिता इसी को कहते हैं।
समाज में पारदर्शिता होनी ज़रूरी है।
यह भी आरोप लगाया गया है कि स्टिंग आपरेशन में दम नही था। पूरे जिले
के राजपत्रित और मुख्य पुलिस अधिकारीयों के खुलासे कैमरे पर रिकार्ड
हुए पर कुछ दोस्तों को हलके नज़र आये। मित्रों स्टिंग आपरेशन हल्का था
भारी था इसे मैंने किसी तराजू में तौला नही पर स्टिंग में दम था या
नही इसका अहसास दंगा कराने वालों को होगा।
मित्रों आलोचनाओं का स्वागत है. आपके आरोप ही कमियों और खामियों का
एहसास दिलाते हैं. ये सौभाग्य है कि मेरे अपने मित्र ही आरोप लगा रहे
है कि स्टिंग फर्जी है. कोई पराया ऐसे आरोप लगाता तो तकलीफ होती। मेरे
सेकुलर मित्रों का कहना है की मोदी साहब को हम प्रधानमंत्री बनवाना
चाहते हैं। मित्रों इतना बड़ा कद और इतना एहतराम ना बक्शें. मेरी
हैसियत पंकज पचौरी जैसी नही है. मै उस उच्चतम श्रेणी का पत्रकार नही
हूँ।
मै अपने आलोचक मित्रों से सिर्फ इतना कहूँगा की गुजरात के गोधरा दंगो
में मैंने गुजरात सरकार के खिलाफ एक स्टिंग आपरेशन के आधार पर गवाही
दी. ये गवाही दंगो में मारे गए मुसलमानों के पक्ष में ही गयी हालांकि
मकसद तथ्यों को सामने रखना था ना कि किसी समुदाय के पक्ष विपक्ष में
बयान देने का। मित्रों कितने सेकुलर पत्रकार कितने बीजेपी भक्षक कितने
मोदी मारक पत्रकार हैं जिहोने गुजरात दंगों में मारे गए निर्दोषों के
खिलाफ अदालत में गवाही दी।
मित्रों जिगर और जज्बा चाहिए स्टिंग करने मै ....वेबसाइट पर किसी खबर
को हल्का कहना या गाली देना बहुत आसान है। बुरा मत मानियेगा हमारे
समाज में गाली सबसे ज्यादा किन्नर देते है।
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