समाचार पत्रों में छपी ख़बरों और मीडिया चेनलों पर छाया रखा कि वर्तमान सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्रियों राजीव गांधी और इंदिरा ग..

अन्ना से औपचारिक रूप से अलग होने के बाद अरविन्द केजरीवाल ने अपने
टोपी पहनाने वाले काम का विधिवत शुभारंभ कर दिया है। शीला की कहानी
आधे में छोड़कर शुक्रवार को अरविन्द केजरीवाल ने अपनी आम आदमी वाली
टोपी एक ऐसे सिर पर रख दी जो सीधे सीधे देश की सबसे ताकतवर राजनीतिज्ञ
सोनिया गांधी का दामाद है। अरविन्द ने राबर्ट के कुछ ऐसे आर्थिक
कनेक्शन को उजागर किया है जो उनको भ्रष्ट साबित करते हैं। राबर्ट के
डीएलएफ कनेक्शन को सामने लाकर क्या अरविन्द केजरीवाल ने कोई ऐसा
दुस्साहस किया है जिसे सिर्फ कोई अरविन्द केजरीवाल ही कर सकता है या
फिर अंदर की कहानी कुछ और है?
जो संकेत हैं वे शक पैदा करते हैं। अन्ना हजारे पिछले करीब एक दशक
अघोषित तौर पर नेताओ के इशारे पर नेताओं के खिलाफ अनशन का प्रहसन करते
रहे हैं। संभवत: राजनीतिक जमात ने भूमंडलीकरण से बहुत कुछ सीखा है और
अपने विरोधी खुद ही खड़े करो की तर्ज पर महाराष्ट्र में यह फार्मूला
सफल भी रहा है। दिल्ली में जब अरविन्द केजरीवाल ने नवंबर 2010 में
भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम शुरू किया था तो उनका एकमात्र मकसद था कि
कामनवेल्थ खेल में हुए घोटालों के लिए सुरेश कलमाड़ी को गिरफ्तार किया
जाए। अगर कलमाड़ी के खिलाफ अरविन्द न खड़े हुए होते तो कलमाड़ी से
पहले शीला दीक्षित तिहाड़ में नजर आती। इसके बाद अरविन्द के ऊपर शीला
का सिपहसालार होने के इतने आरोप लगे कि अब जाकर अरविन्द ने बिजली के
मुद्दे पर शीला सरकार के खिलाफ ही धरना प्रदर्शन कर दिया। फिर भी शीला
की छाप इतनी आसानी से उनके ऊपर से मिटनेवाली नहीं है।
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लेकिन इस बीच राबर्ट वाड्रा के खिलाफ अचानक अरविन्द का यह खुलासा
चौंकानेवाला है। राबर्ट बाड्रा के भ्रष्टाचार पर भाजपा भी बयानबाजी कर
चुकी है। अब अरविन्द कह रहे हैं कि आज की तारीख में राबर्ट वाड्रा की
परिसंपत्तियां करीब तीन सौ करोड़ की हैं। इसमें वे सिर्फ उन
संपत्तियों का जिक्र कर रहे हैं जिसमें डीएलएफ शामिल है। अरविन्द का
जो प्रमाणपत्र सामने आया है उसके मुताबिक राबर्ट वाड्रा ने डीएलएफ से
बिना व्याज का कर्ज लिया और उसी पैसे से डीएलएफ की ही संपत्तियां
खरीदीं। व्यावसायिक घराने भ्रष्टाचार के ऐसे ही अनोखे संस्कार विकसित
करने में माहिर होते हैं इसलिए अरविन्द के आरोप गलत होंगे इस पर संदेह
करने की जरूरत नहीं है। सवाल अरविन्द के आरोप की सच्चाई से नहीं जुड़ा
है। सवाल जुड़ा है अरविन्द के खुलासे से? राबर्ट वाड्रा के भ्रष्टाचार
को सामने लानेवाले अरविन्द को प्रियंका की परिसंपत्तियों का ब्योरा
क्यों नहीं मिल पाया जो आज की तारीख में गांधी परिवार की समस्त
मिल्कियत की घोषित मैनेजर हैं?
अरविन्द के खुलासों पर संदेह यहीं से शुरू होता है। दिल्ली के
राजनीतिक गलियारों में लंबे समय से चर्चा है कि प्रियंका और राबर्ट
अनौपचारिक तौर पर अलग हो चुके हैं। हालांकि अभी दोनों में कानूनी रूप
से तलाक नहीं हुआ है लेकिन दोनों में दूरी इतनी हो चली है कि दोनों
अलग रहते हैं। अगर आपको याद हो तो याद करिए कि उत्तर प्रदेश विधानसभा
चुनाव के दौरान राबर्ट वाड्रा अचानक ही अमेठी पहुंच गये थे, अपनी तरफ
से प्रचार करने। हालांकि इस वक्त भी नेहरू गांधी खानदान ने उनको बहुत
भाव नहीं दिया और अमेठी जाने का निर्णय उनका अपना बता दिया। इसके बाद
प्रियंका गांधी जब बिना राबर्ट के रायबरेली में अपने बच्चों के साथ
नजर आईं तो भी चर्चा हुई कि राबर्ट क्यों नहीं आया? इन घटनाओं ने उन
अफवाहों को बल दिया कि दोनों अगल हो चुके हैं।
इस बात की पूरी संभावना है कि गांधी परिवार अब
राबर्ट को निपटाना चाहता है इसलिए अरविन्द के जरिए खुद कांग्रेस का ही
एक वफादार खेमा राबर्ट को भ्रष्ट साबित करने के अभियान पर निकल पड़ा
है. राबर्ट के भ्रष्ट साबित हो जाने पर सोनिया परिवार की राबर्ट से
मुक्ति पाने की मन मांगी मुराद पूरी हो जाएगी.
लेकिन दिल्ली के राजनीतिक गलियारों में चर्चा दूसरी और तीसरी भी है।
दूसरी और तीसरी चर्चा यह है कि नेहरू गांधी खानदान राबर्ट से छुटकारा
पाना चाहता है। इसका कारण कुछ और नहीं बल्कि राबर्ट की हरकते हैं।
राबर्ट सामान्य मध्यवर्गीय परिवार से आते हैं और नेहरू गांधी खानदान
का दामाद बनने के बाद अपने कई सगे संबधियों को संदिग्ध हालात में खो
चुके हैं। जब राबर्ट अमेठी गये थे तब राबर्ट ने कहा था कि उनके ऊपर
कोई खतरा नहीं है। और जब वक्त आयेगा तो वे जनता के बीच जाएंगे। वे कौन
से खतरे की बात कर रहे थे यह तो नहीं कहा था लेकिन उनके बयान से गांधी
परिवार सकते में जरूर आ गया था। इसका मतलब है कि कम से कम नेहरू गांधी
परिवार में राबर्ट को लेकर सबकुछ ठीक नहीं है।
तो क्या अब नेहरू गांधी खानदान के लिए सिरदर्द बन चुके राबर्ट को
निपटाने का ठेका अरविन्द केजरीवाल को सौंप दिया गया है? अरविन्द का
इतिहास संदिग्ध है। वे अपने राजनीतिक संबंधों का गुणा गणित लगाकर
आंदोलन करते हैं। बिल्कुल अन्ना हजारे की तरह। इसलिए इसमें कोई संदेह
फिलहाल तो नहीं हो सकता कि अरविन्द के जरिए अब गांधी परिवार राबर्ट
बढेरा को निपटाने की तरफ आगे बढ़ चुका है। वह भी बहुत समझबूझ के साथ।
मसलन, राबर्ट की संपत्तियों का खुलासा करते हुए उनके डीएलएफ कनेक्शन
की पड़ताल तो की गई है लेकिन जीएमआर का जिक्र तक नहीं किया गया है
जिससे कारोबारी रिश्ता सैकड़ों की बजाय हजारों करोड़ का भी हो सकता
है। हालांकि कांग्रेस के प्रवक्ता ने बहुत राजनीतिक टिप्पणी की है कि
अरविन्द के आरोप निराधार जैसे कुछ हैं। लेकिन फिलहाल तो देश के किसी
अरविन्द केजरीवाल में इतना साहस तो बिल्कुल नहीं है कि वह सत्ता
संचालक सोनिया गांधी के दामाद पर भ्रष्टाचार का इस तरह सार्वजनिक आरोप
लगा दे और वह मीडिया के लिए मुख्य खबर भी बन जाए। इसमें जरूर आका का
इशारा शामिल होगा, शायद यही कारण है कि राबर्ट की तरफ से अपनी सफाई
में कोई बयान फिलहाल नहीं आया है।
# वाय दिस कोलावरी केजरीवाल बाबू?
# दो भिन्न समूह... आई.ए.सी और टीम केजरीवाल
# उर्दू अख़बारों ने छापा, केजरीवाल का टोपी पहन जाना
व्यर्थ
# अरविन्द केजरीवाल को अन्ना आन्दोलनकारी असीम त्रिवेदी का
पत्र
साभार विस्फोट न्यूज़ नेटवर्क
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