हवाई अड्डे का विकास या ऐतिहासिक धरोहरों का विनाश? पहले गांववासियों को उजाड़ा, अब मंदिरों पर कब्जा

Published: Thursday, Jul 12,2012, 22:39 IST
Source:
0
Share
historical monuments of india, destruction of hindu temple, delhi airport,

क्या महात्मा गांधी की समाधि को दिल्ली से गांधी नगर या जवाहरलाल नेहरू की समाधि को इलाहाबाद ले जाया जा सकता है? यदि नहीं तो यह अन्याय हमारे पूर्वजों और देवताओं के साथ ही क्यों?

दक्षिण दिल्ली में पालम हवाई अड्डे के निकट, सुप्रसिद्ध होटल रेडीसन के सामने स्थित है एक गांव नांगल देवता। इस गांव के लोगों ने देश की आजादी के आन्दोलन व विनोबा भावे के भूदान आन्दोलन में अग्रणी भूमिका निभाई। मुगल काल में भी उसके ऊपर अनेक आक्रमण हुए थे। इस गांव के दोनों छोर पर मन्दिरों व संतों की समाधियों की एक अविरल श्रृंखला है। मन्दिरों के साथ बगीचे व पेड़ों ने उसे एक आध्यात्मिक व रमणीक स्थल के रूप में प्रसिद्ध किया है। मन्दिर के गुम्बद, उसकी स्थापत्य कला और दीवारों का ढांचा मन्दिर की प्राचीनता का बखान करता है। किन्तु अब नांगल देवत नाम का वह ऐतिहासिक गांव अस्तित्व में नहीं है और प्राचीन ऐतिहासिक मंदिरों को कभी भी ध्वस्त किया जा सकता है। यह सब हो रहा है इंदिरा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के विस्तार के नाम पर, जिसके लिए जी.एम.आर. नामक कम्पनी को ठेका दिया गया है।

1964-65 में जब पालम हवाई अड्डे का विस्तार हुआ तब गांव की बेहद उपजाऊ लगभग 12,000 बीघे जमीन नांगल देवत के ग्रामवासियों से छीन ली गई। इसके बाद सन् 1972 में गांव की आबादी को वहां से कहीं अन्यत्र चले जाने का नोटिस थमा दिया गया, किन्तु एक बड़े जन आन्दोलन की सुगबुगाहट की भनक लगने पर सरकार को अपना फैसला टालना पड़ा। लेकिन सरकार कहां चुप बैठने वाली थी, उसने सन् 1986 में 'अवार्ड' सुनाया और सभी को गांव खाली करने का आदेश दे दिया गया। तब 360 गांवों की पंचायत बुलाई गई, लोगों ने संघर्ष किया। 1998 तक यह मामला निचली न्यायालय में चला।
इसके बाद ग्रामवासियों ने दिल्ली उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और दरियाब सिंह बनाम यूनियन आफ इण्डिया नामक मामला दर्ज कराकर न्यायालय से गांव को बचाने का निवेदन किया। यह सब चल ही रहा था कि एक दिन 2007 में भवन निर्माण कम्पनी जी.एम.आर. ने भारी संख्या में पुलिस बल लगाकर चारों ओर से बुलडोजर चला दिये और मन्दिर परिसर को छोड़ पूरे गांव को मलवे के ढेर में बदल दिया। लोगों को अपना सामान भी घरों से निकालने का समय नहीं दिया गया। गांव के बुजुर्ग श्री हंसराज सहरावत बताते हैं कि इस हादसे को सहन न कर पाने के कारण अब तक गांव के लगभग 300 लोगों ने अपनी जान दे दी है। ग्रामीणों को न वैकल्पिक जगह दी गई और न परिवार को सिर ढंकने के लिए टैंट की व्यवस्था की गई। जी.एम.आर. ने मात्र छह माह का किराया देकर अपना पल्ला झाड़ लिया और लोग दर-दर की ठोकरें खाते रहे।

इसके बाद जुलाई, 2007 में जी.एम.आर. ने 28 एकड़ में फैले भव्य मन्दिरों, संतों की समाधियों व शमशान भूमि को अपने कब्जे में ले लिया। धीरे-धीरे जी.एम.आर. ने मन्दिर को न सिर्फ चारों ओर से लोहे की टिन से सील कर दिया बल्कि वहां अपने आराध्य की पूजा-अर्चना करने आने वाले भक्तों को भी रोकना प्रारम्भ कर दिया। आज वहां न तो भक्तों के अन्दर जाने का सुगम रास्ता है और न ही वाहन खड़े करने के लिए व्यवस्था। सुरक्षा के भारी-भरकम ताम-झाम देखकर लोग काफी हैरान-परेशान हैं। इन मंदिरों के प्रति लोगों की अगाध श्रद्धा का अन्दाज इसी बात से लगाया जा सकता है कि चारों ओर से भगवान के घर को सीखचों में बन्द करने के बावजूद लोगों ने 'बाउण्ड्री' के नीचे जमीन में गड्ढे खोदकर वहां से मन्दिर में प्रवेश का रास्ता बना लिया है। हर वृहस्पतिवार व अमावस्या के दिन यहां भक्तों का मेला लगा रहता है। श्राद्ध पक्ष में कनागती अमावस्या के दिन तो यहां बड़ा भारी मेला अब भी लगता है, जिसमें महाराष्ट्र, गुजरात, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, हरियाणा, उत्तर प्रदेश व मध्य प्रदेश सहित अनेक राज्यों के लाखों लोग अपने-अपने पितरों का तर्पण यहां आकर करते हैं।

नांगल देवत के लोगों ने अपने गांव की उपजाऊ जमीन और उसके बाद अपने घरों को उजड़ना तो किसी तरह अपने दिल पर पत्थर रखकर स्वीकार कर लिया, किन्तु मन्दिरों के लिये ग्रामवासी तिलमिला जाते हैं। 'जब खेत छिन गये, घर छिन गए तो इतनी दूर से आकर अब मन्दिरों का ही क्या करोगे?' इस प्रश्न के उत्तर में ग्राम प्रधान चौधरी सहराज सहरावत कहते हैं, 'चाहे हमारी जान चली जाए किन्तु अपने आराध्य देवों को हम किसी भी कीमत पर वहां से हिलने नहीं देंगे।' समाधियों व मन्दिरों के अन्यत्र स्थानांतरण के सुझाव पर गांववासी पूछते हैं कि क्या महात्मा गांधी की समाधि को दिल्ली से गांधी नगर या जवाहरलाल नेहरू की समाधि को इलाहाबाद ले जाया जा सकता है? यदि नहीं तो यह अन्याय हमारे पूर्वजों और देवताओं के साथ ही क्यों?

वे आगे कहते हैं कि जब इसी हवाई अड्डे के टी-2 रनवे नं 10 व 28 पर बनी पीर बाबा रोशन खान व बाबा काले खान की मजार का रख-रखाव ही नहीं मुस्लिम श्रद्धालुओं को वहां दर्शन कराने के लिए जी.एम.आर. कंपनी अपने वाहन व अन्य सुविधाएं दे सकती है और मजारों के कारण रनवे को 'शिफ्ट' किया जा सकता है तो आखिर हमारे मन्दिरों के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार क्यों?
सूत्र बताते हैं कि जी.एम.आर. इन प्राचीन मन्दिरों को तोड़ने की योजना बना रही है। उसने इस हेतु पुलिस बल मांगा है, जो कभी भी मिल सकता है। देखना यह है कि लोगों की आस्था और उनका स्वाभिमान जीतता है या छद्म सेकुलर सरकार का झूठा अहंकार।

पाञ्चजन्य

Comments (Leave a Reply)

DigitalOcean Referral Badge