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देवर्षि नारद जयंती पर सुब्रमण्यम स्वामी तथा इन्द्रेश कुमार ने पत्रकारों को सम्मानित किया

सोमवार 7 मई 2012 | नई दिल्ली स्थित काॅन्स्टीट्यूशन क्लब में
देवर्षि नारद जयंती के उपलक्ष्य पर इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र
द्वारा पत्रकार सम्मान दिवस का आयोजन किया गया। पत्रकारिता के क्षेत्र
में उल्लेखनीय कार्य करने के लिए पी.टी.वी के श्रीपाल शकतावत एवं
कादम्बनी हिन्दी मासिक के मुख्य कॉपी संपादक श्री संत समीर को
सम्मानित किया गया।
कार्यक्रम का आरम्भ दीप प्रज्जवलन से हुआ, तदोपरांत नारद जयंती
में आए विशेष अतिथियों श्री सुब्रमण्यम स्वामी जी तथा श्री इन्द्रेश
कुमार जी को श्री कुलभूषण आहूजा जी ने शाल और स्मृति चिन्ह देकर
सम्मानित किया।
कार्यक्रम में अपना उदबोधन देते हुए श्री इन्द्रेश कुमार जी ने
कहा कि ये कार्यक्रम और गोष्ठियां समाज को सक्रिय और जागृत करने का
कार्य करती हैं। जागृत चींटी हाथी का मुकाबला करती है, परन्तु व्यक्ति
कितना भी गुणवान, बलवान और ताकतवर क्यों न हो, अगर वह सक्रिय और जागृत
नहीं है तो उसकी दशा उस सिंह के समान है जिसके ऊपर चूहे खेलते हैं।
हनुमान जी कितने भी पत्थर डालते किन्तु यदि सक्रिय गिरहरी ने दरार
पाटने का कार्य न किया होता तो शायद ही राम सेतु का निर्माण हो पाता।
गिलहरी की सक्रियता से रावण का वध हुआ और दुष्टता से सज्जनता की रक्षा
हुई।
नारद जी ब्रह्माण्ड के प्रथम पत्रकार थे इसलिए पत्रकारिता से
संबधित सभी व्यक्तियों को उनका जन्मदिन पत्रकार दिवस के रूप में मनाना
चाहिए। हम मदर डे, फादर डे, वैलेन्टाईन जैसे आधारहीन दिवस मनाते हैं
जिनकी कोई उपयोगिता नहीं है। पत्रकारिता का अर्थ है संवाद, इसलिए आज
पत्रकारिता जगत को नारद जी से प्रेरणा लेने की जरूरत है कि वो विचारों
की स्पष्टत करें और राष्ट्रहित में संवाद भी। आज भारत के सामने कई
चुनौतियां हैं, हमारी सीमाएं असुरक्षित एवं अविकसित हैं जिसके कारण
हथियारों की तस्करी, भष्टाचार, नशीले पदार्थो की तस्करी हो रही है। ये
कार्य हमारे जीवन मूल्यों पर चोट पहुंचाते हैं। भारत को आज ऐसे नेता
और नीतियों की जरूरत है जो हमारी इज्जत, आजादी और रोटी की रक्षा कर
सके। बदकिस्मती से यहां देशद्रोही - आतंकवादी पाले जाते हैं और
निर्दोष भारतीयों की हत्या होती है।
जो नेता भगवा आतंकवाद या हिन्दू आतंकवाद जैसे शब्दों का प्रयोग
करते हैं उन्होंने अपनी संस्कृति और जीवन मूल्य बेच दिए हैं। क्योंकि
भगवा सूर्य का रंग है जो सार्वभौमिक है। यूं तो हमारा देश विश्व का
सबसे बड़ा लोकतन्त्र है। जिसमें लगभग 20 लाख जनप्रतिनिधि चुनकर आते
हैं। परन्तु विचित्र बात यह है कि विश्व के इस सबसे बड़े लोकतन्त्र की
संसद के अन्दर सारा कार्य विदेशी भाषा में होता है। श्री इन्द्रेश जी
ने कहा कि ये देश सिर्फ सरकार चलाने वालों की सम्पति नहीं है। जिन
लोगों को जनता ने देश की रक्षा और सेवा के लिए नियुक्त किया है वो देश
का सौदा करने पर उतारू हैं। इसलिए आज भारत के अन्दर एक वैचारिक,
राजनैतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और सामाजिक संभ्रम को दूर करने की
आवश्यकता है तभी हम विश्व गुरु, शक्तिशाली और समृद्ध
बनेंगे।
कार्यक्रम में मुख्य अतिथि डा. सुब्रमण्यम स्वामी ने अपने विचार
रखते हुए कहा कि नारद मुनी विचारक भी थे और प्रचारक भी थे। मैं समझता
हूँ कि पत्रकारों का भी यही काम है कि उन्हें विचार भी व्यक्त करने
चाहिए और जो समाज के कल्याण की बातें हैं उनका प्रचार भी करना चाहिए।
वर्तमान में प्रेस की हालत एक प्रकार से बहुत बुरी है, ‘रिपोर्टर
विदाउट बार्डर’ एक संगठन है जो विश्व में विभिन्न देशों की रैंकिंग और
उस रैंकिंग में यह देखा जाता है कि वहां प्रेस की स्वतन्त्रता कितनी
है, जर्नलिस्ट कितने सुरक्षित हैं। वह इसका एक इंडैक्स बनाते हैं इस
इंडैक्स में पिछले दस साल से हर वर्ष हमारी जो पोजिषन है वो गिरती जा
रही है। 189 देषों का वह अभी इंडैक्स बनाते हैं और इसकी गिनती में आज
हमारी परिस्थिति यह हो गई है कि आज हम 131 वें स्थान पर आ गए हैं।
चाइना से भी बुरी स्थिति है, जहां एकदम सैंसरषिप है, सूडान तथा साउथ
सूडान के बराबर हो गए हैं। आज मीठा जहर खिलाया जा रहा है। आज मीडिया
एडवर्डटाजिज्म का गुलाम हो गया है और बड़ी-बड़ी कम्पनियां एडवर्डटाइज
के माध्यम से मीडिया को नियंत्रित कर रही हैं। हमें न्यूज पेपर
इकोनोमिक्स की ओर ध्यान देना चाहिए, इसमें हमें कुछ मूलभूत परिवर्तन
लाना पड़ेगा ताकि ये हो जाए कि अगर आप पांच रुपये में एक अखबार बेचोगे
तो कॉस्ट ऑफ प्रोडक्षन चार रुपये या साढ़े चार रुपये से ज्यादा न
हो।
अखबारों की विज्ञापन पर निर्भरता हटाने के कदम उठाने पड़ेंगे,
तभी वह स्वतन्त्र व निष्पक्ष कार्य कर सकेंगे। अखबार के लिए आप
पत्रकारिता करते हैं वो एक महान कार्य है। देष के निर्माण का और महान
कार्य करने वाले राष्ट्र के लिए कार्य करने वालों की मंषा अच्छी होनी
चाहिए और मंषा में एक आत्म सम्मान होना चाहिए। मैं देखता हूँ कि एक
क्लिंटन आई है हर अखबार हो या टीवी चैनल हो, उसमें क्लिंटन ही क्लिंटन
है, क्या है यह? हमारा प्रधानमंत्री वाषिंगटन जाएगा तो एक अखबार में
उसका फोटो नहीं आएगा। यह मामला सिर्फ इस प्रधानमंत्री का नहीं है, सब
प्रधानमंत्रियों का था। मैं आपसे कहना चाहता हूँ कि हमारे देष में आज
भी वो हीन भावना है कि कोई विदेषी आ जाए, वो भी सफेद चमड़ी का आ जाए
और हम पर रोब जमा जाए तो उसके लिए इतनी पब्लिसिटी, उसकी एक-एक
दिनचर्या व गतिविधि समाचार चैनलों में व अखबारों में दिखाई जाती है।
यह एक मंषा से जुड़ा सवाल है। आज हमें अपनी भाषा में जो शब्द हैं
उन्हें धीरे-धीरे संस्कृत से लेना शुरु करना चाहिए। क्योंकि दक्षिण
भारत की भाषाओं में संस्कृत के शब्द अधिक हैं। तमिलनाडु में तमिल में
41 प्रतिषत शब्द जो हैं वो संस्कृत के हैं, कन्नड भाषा में 65
प्रतिशत, मलयालम भाषा में 90 प्रतिषत, बांग्ला भाषा में 85 प्रतिषत
है। हिन्दी में संस्कृत के षब्दों का अधिकाधिक प्रयोग करना चाहिए।
इससे हिन्दी का सम्पूर्ण भारत में विस्तार होगा।
नारद जयंती कार्यक्रम संचालन एवं अतिथि परिचय इन्द्रप्रस्थ
विश्व संवाद केन्द्र के सचिव श्री वागीश ईसर जी ने किया। कार्यक्रम
में दिल्ली प्रांत के प्रांतकार्यवाह श्रीमान विजय जी, हिन्दुस्थान
समाचार के आर्गनाइजिंग सैक्रेटरी श्री लक्ष्मीनारायण भाला जी, दिल्ली
प्रांत के प्रांत प्रचार प्रमुख श्री राजीव तुली जी एवं बड़ी संख्या
में बुद्धिजीवी उपस्थित थे। इन्द्रप्रस्थ विश्व संवाद केन्द्र के
अध्यक्ष श्री अशोक सचदेवा जी ने अपने उदबोधन में पत्रकारों को नारद जी
के कार्यो का अनुसरण करने का आह्वान किया एवं कार्यक्रम को सफल बनाने
के लिए सभी बन्धु एवं भगिनियों का आभार व्यक्त किया।
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