कोच्चि।। केरल में अगर किसी की पत्नी तीसरे बच्चे के लिए प्रेगनेंट होती है, तो वह आदमी जेल भी जा सकता है। इसके साथ-साथ उसे &..
आशा भोंसले ने दिल्लीवालों की लू उतार दी, क्या दिल्ली में सिर्फ अंग्रेजी बोली जाती है?
आशा भोंसले और तीजन बाई ने दिल्लीवालों की लू उतार दी| ये दोनों
देवियाँ 'लिम्का बुक ऑफ रेकार्ड' के कार्यक्रम में दिल्ली आई थीं|
संगीत संबंधी यह कार्यक्रम पूरी तरह अंग्रेजी में चल रहा था| यह कोई
अपवाद नहीं था| आजकल दिल्ली में कोई भी कार्यक्रम यदि किसी
पांच-सितारा होटल या इंडिया इंटरनेशनल सेंटर जैसी जगहों पर होता है तो
वहां हिंदी या किसी अन्य भारतीय भाषा के इस्तेमाल का प्रश्न ही नहीं
उठता| इस कार्यक्रम में भी सभी वक्तागण एक के बाद एक अंग्रेजी झाड़
रहे थे| मंच संचालक भी अंग्रेजी बोल रहा था|
जब तीजनबाई के बोलने की बारी आई तो उन्होंने कहा कि यहां का माहौल
देखकर मैं तो डर गई हूं| आप लोग क्या-क्या बोलते रहे, मेरे पल्ले कुछ
नहीं पड़ा| मैं तो अंग्रेजी बिल्कुल भी नहीं जानती| तीजनबाई को
सम्मानित करने के लिए बुलाया गया था लेकिन जो कुछ वहां हो रहा था, वह
उनका अपमान ही था लेकिन श्रोताओं में से कोई भी उठकर कुछ नहीं बोला|
तीजनबाई के बोलने के बावजूद कार्यक्रम बड़ी बेशर्मी से अंग्रेजी में
ही चलता रहा| इस पर आशा भोंसले झल्ला गईं| उन्होंने कहा कि मुझे पहली
बार पता चला कि दिल्ली में सिर्फ अंग्रेजी बोली जाती है| लोग अपनी
भाषाओं में बात करने में भी शर्म महसूस करते हैं| उन्होंने कहा मैं
अभी लंदन से ही लौटी हूं| वहां लोग अंग्रेजी में बोले तो बात समझ में
आती है लेकिन दिल्ली का यह माजरा देखकर मैं दंग हूं| उन्होंने
श्रोताओं से फिर पूछा कि आप हिंदी नहीं बोलते, यह ठीक है लेकिन आशा
है, मैं जो बोल रही हूं, उसे समझते तो होंगे? दिल्लीवालों पर इससे
बड़ी लानत क्या मारी जा सकती थी?
इसके बावजूद जब मंच-संचालक ने अंग्रेजी में ही आशाजी से आग्रह किया कि
वे कोई गीत सुनाएँ तो उन्होंने क्या करारा तमाचा जमाया? उन्होंने कहा
कि यह कार्यक्रम कोका कोला कंपनी ने आयोजित किया है| आपकी ही कंपनी की
कोक मैंने अभी-अभी पी है| मेरा गला खराब हो गया है| मैं गा नहीं
सकती|
क्या हमारे देश के नकलची और गुलाम बुद्घिजीवी आशा भोंसले और तीजनबाई
से कोई सबक लेंगे? ये वे लोग हैं, जो मौलिक है और प्रथम श्रेणी के हैं
जबकि सड़ी-गली अंग्रेजी झाड़नेवाले हमारे तथाकथित बुद्घिजीवियों को
पश्चिमी समाज नकलची और दोयम दर्जे का मानता है| वह उन्हें नोबेल और
बुकर आदि पुरस्कार इसलिए भी दे देता है कि वे अपने-अपने देशों में
अंग्रेजी के सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के मुखर चौकीदार की भूमिका
निभाते रहें| उनकी जड़ें अपनी जमीन में नीचे नहीं होतीं, ऊपर होती
हैं| वे चमगादड़ों की तरह सिर के बल उल्टे लटके होते हैं| आशा भोंसले
ने दिल्लीवालों के बहाने उन्हीं की खबर ली है|
डा. वैद प्रताप वैदिक (लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)
Share Your View via Facebook
top trend
-
तीसरा बच्चा हुआ तो जाना पड़ सकता है जेल, केरल विमिंस कोड बिल 2011
-
‘मुसलमान पटाओ’ का पैंतरा, कांग्रेस का नया दांव
कांग्रेस ने इस बार गजब का दांव मारा है| यह दांव वैसा ही है, जैसा कि 1971 में इंदिराजी ने मारा था| गरीबी हटाओ! गरीबी हटी या..
-
दाउद इब्राहिम ने नक्सलियों से हाथ मिलाया ?
रायपुर, मार्च 12: पाकिस्तान में रह रहे अपराधी दाउद इब्राहिम की नजर अब भारत के कीमती अयस्क संसाधनों पर है।
.. -
अन्ना का जनलोकपाल देश के लिए खतरनाक, 10 घंटे चली चर्चा
अन्ना के जनलोकपाल बिल को देश की जनता ने भले ही हाथों हाथ लिया पर विधि-संविधान विशेषज्ञों को बिल में तमाम खामियां नजर आ रही..
-
कमाई डीटीसी की, लाभ निजी कंपनियों को ― दिल्ली परिवहन निगम को करोड़ों का चूना
नई दिल्ली जब योजना किसी और को मुनाफा देने के लिए बने तो घाटा होना लाजमी है? ऐसे ही सौदों की वजह से डीटीसी (दिल्ली परिवहन न..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)