27 फरवरी 2002. 'आधुनिक' भारत के इतिहास का एक और काला दिन. इसी दिन इस 'स्वतंत्र' और "धर्मनिरपेक्ष&qu..

भारतीय क्रिकेट के लिविंग लीजैंड कपिल देव को किसी परिचय की
आवश्यकता नहीं हैं। भारतीय क्रिकेट में उनके योगदान की चर्चा करना
सूरज को दीया दिखाने जैसा है। भारत में विश्वकप के विषय में चर्चा
शुरू होते ही इस महान ऑलराउंडर का नाम सबसे पहले लिया जाता रहा है। ०६
जनवरी १९५९ को चंढीगढ़ में जन्में कपिल रामलाल निखंज देव को क्रिकेट
प्रेमी कपिल देव के नाम से ही जानते हैं।
कपिल देव भारत के महान गेंदबाज रहे हैं। कपिल दाहिने हाथ के मध्यम
तेज गति के गेंदबाज के रूप में उभरे और उन्होंने अपनी आउटस्विंग
गेंदबाजी और शानदार एक्शन के कारण भारतीय टीम में अपने करियर के
ज्यादातर समय में स्ट्राइक गेंदबाज की भूमिका निभाई। कपिल ने अपना
पहला टेस्ट पाकिस्तान के खिलाफ फैसलाबाद में १८ अक्टूबर १९७८ को
खेला। इस मैच में कपिल ने अपने टेस्ट करियर का पहला विकेट सादिक
मोहम्मद के रूप में लिया, जिन्हें कपिल ने अपनी ट्रेडमार्क आउट
स्विंग गेंद पर आउट किया था।
कहा जाता है कि अगर वे इमरान खांन, सर रिचर्ड हेडली और इयान बाथम के
समय में नहीं खेले होते तो शायद आज विश्व के सबसे श्रेष्ठ ऑलरांउर
के रूप में जाने जाते। उन्होंने अपने ऑलराउंडर होने का सबूत उस वक्त
दिया जब, उन्होंने नेशनल स्टेडियम कराची में पाकिस्तान के खिलाफ
तीसरे टेस्ट मैच में सिर्फ ३३ गेंदों में ०२ छक्कों की मदद से भारत
का सबसे तेज अर्द्धशतक जमाया। कपिल देव ने २० वर्ष की उम्र में ही एक
सहस्त्र (हज़ार) बनाने तथा १०० विकेट लेने का नया कीर्तिमान स्थापित
किया। यह कीर्तिमान केवल एक वर्ष एवं १०९ दिन में बना।
अपनी आत्मकथा 'बाई गॉड्स डिक्री' में उन्होंने भारतीय क्रिकेट और अपने
जीवन के बारे में स्पष्ट लिखा है कि मैंने एक लकड़ी व्यापारी के यहाँ
जन्म लिया। १३ वर्ष की उम्र के पहले मैंने क्रिकेट नहीं खेली। यह उस
समय हुआ जब सैक्टर १६ की टीम में एक खिलाड़ी की कमी हो गई और मुझे
शामिल कर लिया गया। यह केवल एक अवसर था। उनका विचार है कि जीतने के
लिए खेलो। आक्रमण करो, रन बनाओं और विकेट लो। कभी प्रयत्न करना बंद मत
करो।
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