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भारत में ४५ तरह के टैक्स हैं, जिनमें सबसे बुरा आयकर है

काले धन पर संसद में चली बहस कितनी सतही थी? इस बहस से यह पता नहीं
चलता कि आखिर काला धन है क्या? हम किस धन को काला कहें और किसे सफेद?
क्या वह सब धन अपने आप काला हो जाता है, जिस पर कर नहीं दिया जाता?
आपकी कितने ही खून-पसीने की कमाई हो और अगर आपने टैक्स नहीं दिया तो
सरकार उसे काला धन घोषित कर देती है याने काले और सफेद का पैमाना
सिर्फ एक है कि उस धन पर सरकार को टैक्स दिया गया है या नहीं?
क्या कोई यह पूछनेवाला भी है कि इस टैक्स का इस्तेमाल कैसे होता है?
आखिर यह टैक्स उगाहा क्यों जाता है? इसीलिए कि यह सरकारी पैसा जनता के
भले के लिए इस्तेमाल किया जाए लेकिन वाकई क्या यह जनता की सेवा के लिए
इस्तेमाल होता है?
राजीव गांधी कहते थे कि रूपए में से सिर्फ 15 पैसे जनता तक पहुंचते
हैं और राहुल गांधी कहते हैं कि सिर्फ 10 पैसे पहुंचते हैं| याने
टैक्स के नाम पर दिया गया 90 प्रतिशत पैसा अपने आप काला हो जाता है|
अर्थात सरकार को टैक्स देना अपने पैसे को काला धन बनाना है| काला धन
तो वह है, जिसे हमारे नेता और नौकरशाह अपनी सुख-सुविधाओं पर खर्च करते
हैं और जो रिश्वत, तस्करी, ब्लेकमेल, दादागीरी, अवैध दलाली और
चोरी-डकैती से कमाया जाता है| यह निकृष्टतम काला धन है|
हमारे देश में 45 तरह के टैक्स हैं, जिनमें सबसे बुरा आयकर है| आय में
से 30 प्रतिशत की कटौती शुद्घ लूट-पाट है| सरकारी लूट-पाट! सरकार का
खर्च तो सिर्फ 3 प्रतिशत के टैक्स से भी चल सकता है| हर साल 7-8 लाख
करोड़ रू. का टैक्स उगाहा जाता है| अगर विदेशों में जमा काला धन वापस
आ जाए तो अगले 8-10 साल तक भारत में किसी को भी कोई टैक्स देने की
जरूरत नहीं है| 70 लाख करोड़ रू. भारत लौट आएं तो भारत का हर नागरिक
एक ही रात में लखपति बन जाए| भारत पांच साल में ही यूरोप से अधिक
उन्नत बन जाए|
भारत में सक्रिय तथाकथित काले-धन का कुछ न कुछ सदुपयोग अवश्य होता
रहता है लेकिन विदेशों में छिपाया गया काला धन विनाशकारी भूमिका
निभाता है| वह पैसा आतंकवाद, बड़ी रिश्वतखोरी, तस्करी, चुनावी
भ्रष्टाचार और नकली विदेशी निवेश के काम आता है| उसे वापस लाने में
सरकार आनाकानी क्यों कर रही है?
सरकार पर जन-आंदोलनों का इतना दबाव बढ़ गया है कि वह थोड़ी-बहुत
हिलती-डुलती जरूर दिखाई पड़ती है लेकिन उसने अभी तक विदेशों में चल
रहे काले खातों के नाम तक उजागर नहीं किए हैं| वह ज़रा अमेरिका और
स्वीडन की सरकारों से कुछ सीखे| कहीं ऐसा तो नहीं कि उस काली सूची में
हमारे कुछ बड़े नेताओं और नौकरशाहों के नाम सबसे ऊपर चमक रहे हों?
देश में लगभग साढ़े तीन करोड़ लोग टैक्स देते हैं| इनमें से तीन करोड़
लोगों को टैक्स के जाल से बाहर किया जाए और मोटी आयवाले सिर्फ 50-60
लाख लोगों से सिर्फ 10 प्रतिशत टैक्स लिया जाए तो सरकार की झोली भर
जाएगी| देश में आर्थिक ईमानदारी का माहौल बनेगा और विदेशों से काला धन
लौटा लें तो कहने ही क्या? टैक्स न देनेवालों पर तब यदि ज्यादा सख्ती
की जाएगी तो वह भी उचित मानी जाएगी| यह तर्क बहुत बोदा है कि हम बाहरी
काला धन इसलिए वापस नहीं लाएंगे कि हम अंदरूनी काले धन पर लगाम नहीं
लगा पा रहे हैं|
साभार वेद प्रताप वैदिक जी (वरिष्ठ पत्रकार) ...
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