पानी में तैरने वाले ही डूबते हैं। किनारे पर खड़े रहने वाले कभी नहीं डूबते। लेकिन किनारे पर खड़े रहने वाले लोग कभी तैरना ..
गाँधी-नेहरु परिवार के सदस्यों का गुणगान और अन्य राष्ट्रनायकों की अपेक्षा

जनता के पैसे से परिवार का प्रचार तमाम दलगत, भौगोलिक और सांस्कृतिक निष्ठा से परे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों और राष्ट्रनायकों को लोग दिल से स्मरण करते हैं। इनमें से कुछ नायक, जैसे नेताजी सुभाष चंद्र बोस और सरदार पटेल जनमानस में इतने रचे-बसे हैं कि सूचना मंत्रालय द्वारा उनकी जयंती पर विज्ञापन निकाल कर लोगों को स्मरण कराने की कोई जरूरत नहीं है। बहरहाल, हर साल जनता के धन में से अरबों रुपये जयंती और पुण्यतिथि पर खर्च कर दिए जाते हैं। इस मुद्दे की पड़ताल का यह उपयुक्त अवसर है।
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कांग्रेस पार्टी ने मौलाना आजाद, जो भारत छोड़ो आंदोलन के
दौरान सात साल तक इसके अध्यक्ष रहे, को उनकी जयंती पर कैसे स्मरण
किया? उनका कोई जिक्र तक नहीं किया गया।
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अक्टूबर-नवंबर में बहुत से राष्ट्रीय नेताओं की जयंती अथवा
पुण्यतिथि आती हैं। उदाहरण के लिए 31 अक्टूबर को सरदार वल्लभाई पटेल
की जयंती और इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि थी। 11, 14 व 19 नवंबर को
क्रमश: मौलाना आजाद, जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी की जयंती थीं।
कांग्रेस ने इंदिरा गांधी के स्मरण के लिए हजारों रास्ते बना रखे हैं।
साथ ही यह सरदार पटेल के योगदान को कमतर दिखाने के लिए भी कोई कसर
नहीं छोड़ती। सरदार पटेल ने देश की स्वतंत्रता के समय मौजूद 554
रियासतों को भारत गणतंत्र में मिलाने का दुष्कर व महती कार्य संपन्न
किया था। अंग्रेजों ने घोषणा की थी कि उनकी विदाई के बाद ये राज्य
स्वतंत्र हो जाएंगे। इससे नए स्वतंत्र उपनिवेश बनने का खतरा पैदा हो
गया था, लेकिन 26 जनवरी, 1950 को भारत का नया संविधान लागू होने तक ये
तमाम राज्य भारतीय गणतांत्रिक ढांचे में एकीकृत हो चुके थे। सरदार
पटेल ने बहला-फुसलाकर और डांट-डपट कर इन राज्यों को रास्ते पर लाने का
चमत्कार कर दिखाया था। 31 अक्टूबर को आठ मंत्रालयों ने इंदिरा गांधी
की पुण्यतिथि पर समाचार पत्रों में आधे-आधे पेज के विज्ञापन छपवाए,
जबकि सरदार पटेल के हिस्से में सूचना प्रसारण मंत्रालय द्वारा जारी
आधे पेज का विज्ञापन ही आया। किसी भी अन्य मंत्रालय ने भारत के
लौहपुरुष को याद करने की जहमत नहीं उठाई।
दूसरी तरफ, एक निजी भवन निर्माता कई समाचार पत्रों में पहले पृष्ठ पर
सरदार पटेल का आधे पेज का रंगीन विज्ञापन प्रायोजित कर सरकार से आगे
निकल गया। विज्ञापन में लिखा था-1.2 अरब लौह इच्छाशक्ति वाले भारतीय
देश के लौहपुरुष को सलाम करते हैं। सरदार पटेल और इंदिरा गांधी, दोनों
ही कांग्रेस के सदस्य थे। दोनों ही कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। फिर
भी अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी ने इंदिरा गांधी का आधे पेज का
विज्ञापन प्रकाशित कराया, जबकि सरदार पटेल की अवहेलना कर दी। 31
अक्टूबर को इंदिरा गांधी के स्तुतिगान में केंद्र सरकार ने करोड़ों
रुपये खर्च कर दिए। 19 नवंबर को उनकी जयंती पर इसने और भी शाहखर्ची
दिखाई। इस बार 11 केंद्रीय मंत्रालयों और तीन राज्य सरकारों-दिल्ली,
राजस्थान व आंध्र प्रदेश ने इंदिरा गांधी की तारीफ में आधे पेज के
रंगीन विज्ञापन प्रकाशित कराए। भारत के लौहपुरुष की उपलब्धियों से
अप्रभावित इस्पात मंत्रालय ने तो इंदिरा गांधी को भारत की आयरन लेडी
घोषित कर दिया। अब हम 14 नवंबर को चाचा नेहरू के जन्मदिन पर आते हैं।
सात केंद्रीय मंत्रालय और दो राज्य सरकारों ने नेहरू के स्तुतिगान में
आधे-आधे पेज का विज्ञापन प्रकाशित किया।
इस्पात मंत्रालय ने तो सरदार पटेल की असाधारण उपलब्धि आधुनिक भारत के
वास्तुशिल्पी को नेहरू की तारीफ में नत्थी कर दिया। अब जरा देखें
मौलाना अबुल कलाम आजाद की जयंती 11 नवंबर पर क्या परिदृश्य रहा।
मौलाना भारत के पहले शिक्षा मंत्री थे। उनकी जयंती को राष्ट्रीय
शिक्षा दिवस के तौर पर मनाया जाता है। अनेक राष्ट्रीय संस्थान जैसे
आइआइटी और यूजीसी की परिकल्पना उन्हीं की थी। उन्होंने आइआइटी खड़गपुर
का 1951 में और यूजीसी का 1953 में उद्घाटन किया। कला को प्रोत्साहन
देने में भी मौलाना आजाद का इतना ही महत्वपूर्ण योगदान रहा। उन्होंने
अनेक राष्ट्रीय अकादमियां और संस्थान स्थापित किए। इनमें इंडियन
काउंसिल ऑफ कल्चरल रिलेशंस, संगीत नाटक अकादमी, साहित्य अकादमी और
ललित कला अकादमी शामिल है, किंतु मनमोहन सिंह सरकार ने इस महान
स्वतंत्रता सेनानी और शिक्षा के क्षेत्र में स्वप्नदृष्टा को कैसे याद
किया? सूचना एवं प्रसारण विभाग ने आधे पेज का श्वेत-श्याम विज्ञापन
प्रकाशित कराया, किंतु यहां भी खुशामद करने वाले लोग इतिहास का
पुनर्लेखन करने में लगे रहे।
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दूसरी तरफ, एक निजी भवन निर्माता कई समाचार पत्रों में पहले
पृष्ठ पर सरदार पटेल का आधे पेज का रंगीन विज्ञापन प्रायोजित कर सरकार
से आगे निकल गया। सरदार पटेल और इंदिरा गांधी, दोनों ही कांग्रेस के
सदस्य थे। दोनों ही कांग्रेस के अध्यक्ष रहे हैं। फिर भी अखिल भारतीय
कांग्रेस कमेटी ने इंदिरा गांधी का आधे पेज का विज्ञापन प्रकाशित
कराया, जबकि सरदार पटेल की अवहेलना कर दी।
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जिस प्रकार इस्पात मंत्रालय के पटकथा लेखकों ने सरदार पटेल को देश
के लौहपुरुष का दर्जा देने से इंकार कर दिया, उसी प्रकार मानव संसाधन
मंत्रालय के पटकथा लेखकों ने शिक्षा के क्षेत्र में मौलाना के योगदान
को कम करने की कोशिश की। 11 नवंबर को मौलाना को स्मरण करने के बजाए
मंत्रालय ने 14 नवंबर को प्रकाशित विज्ञापन में नेहरू को उद्धृत
किया-शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण कोई भी विषय नहीं है..। कांग्रेस
पार्टी ने मौलाना आजाद, जो भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान सात साल तक
इसके अध्यक्ष रहे, को उनकी जयंती पर कैसे स्मरण किया? उनका कोई जिक्र
तक नहीं किया गया। इस कहानी से यही शिक्षा मिलती है कि आप भारत के
महानतम स्वतंत्रता सेनानी, स्वप्नदृष्टा या राष्ट्रनायक हो सकते हैं
और दुनिया भर में लोग आपको स्मरण कर सकते हैं, किंतु अगर आप
नेहरू-गांधी परिवार से संबंध नहीं रखते तो कांग्रेस और उसके नेतृत्व
वाली सरकार आपको याद नहीं करेगी। हम एक परिवार और एक पार्टी के नायकों
के राजनीतिक प्रचार के लिए जनता के पैसे की बर्बादी कब तक करते
रहेंगे? (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
साभार दैनिक जागरण समाचार पत्र
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