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खुदरा क्षेत्र में एफडीआई से बढ़ेगी बेरोजगारी - केएन गोविंदाचार्य

केंद्र सरकार के सचिवों की समिति ने खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश यानी एफडीआई की अनुमति देने को हरी झंडी दे दी है एवं
अंतिम फैसला कैबिनेट भी ले चुका है।
सचिवों की समिति ने इस क्षेत्र में 51 फीसदी तक प्रत्यक्ष विदेशी
निवेश को मंजूरी देने का प्रस्ताव किया है। हालांकि, इस निवेश के लिए
कुछ शर्त रखने का भी प्रावधान किया गया है। इस समिति ने यह प्रस्ताव
किया है कि कम से कम निवेश दस करोड़ डालर का होना चाहिए। पर इससे
खुदरा क्षेत्र पर एफडीआई से पैदा होने वाले संकट कम नहीं होंगे।
सरकार यह दावा कर रही है कि खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश आने से
रोजगार सृजन होगा। पर जिसे थोड़ी सी भी दूसरे देशों में खुदरा क्षेत्र
में बड़े कारपोरेट घरानों के आने के असर के बारे में पता होगा वह यह
बता सकता है कि यह दावा खोखला है। हकीकत तो यह है कि खुदरा क्षेत्र
में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के आने से रोजगार सृजन तो कम होगा लेकिन
बेरोजगारी और ज्यादा बढ़ेगी।
यह क्या महज संयोग है कि जिस समय अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन
भारत के दौरे पर आती हैं, उसी वक्त सचिवों की समिति में खुदरा क्षेत्र
में एफडीआई के प्रस्ताव को मंजूरी दिला दी जाती है। खुदरा क्षेत्र में
काम करने वाली दुनिया की सबसे बड़ी कंपनी है वाल मार्ट। इस कंपनी से
हिलेरी के रिश्ते किसी से छिपे हुए नहीं हैं।
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In English : FDI in retail will lead to
unemployment - K.N. Govindacharya
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हिलेरी क्लिंटन अपने पति बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति बनने से पूर्व
वालमार्ट की निदेशक मंडल में वर्षों रही हैं और खुदरा क्षेत्र की
दुनिया की इस सबसे बड़ी कंपनी से उनके रिश्ते बेहद पुराने हैं।
वालमार्ट इन्हीं रिश्तों का इस्तेमाल करके भारत सरकार से खुदरा
क्षेत्र में विदेशी निवेश को हरी झंडी दिलवाना चाहती है।
हिलेरी उस वक्त वालमार्ट के निदेशक मंडल में थीं जब उनके पति बिल
क्लिंटन अलकांसस के गवर्नर थे। दुनिया के कई देशों के खुदरा कारोबार
को पंगु बना देने वाली कंपनी वालमार्ट की सराहना करते हुए हिलेरी
क्लिंटन ने 2004 में नेशनल रिटेल फेडरेशन को संबोधित करते हुए कहा था
कि वालमार्ट के निदेशक मंडल में रहना उनके लिए बेहद अच्छा अनुभव था और
इस दौरान उन्होंने काफी कुछ सीखा।
हिलेरी का निदेशक मंडल में रहना उनके लिए कई तरह के आर्थिक फायदे भी
लेकर आया। उनके पति बिल क्लिंटन ने जो सालाना वित्तीय दस्तावेज वहां
अमेरिकी सरकार को मुहैया कराए हैं उसके मुताबिक निदेशक मंडल में रहने
के लिए हिलेरी को हर साल 18,000 डालर मिलते थे। इसके अलावा उन्हें हर
बैठक के लिए 1,500 डालर कंपनी देती थी। अमेरिकी मीडिया में प्रकाशित
कुछ खबरों के मुताबिक 1993 तक हिलेरी के पास तकरीबन एक लाख डालर मूल्य
के शेयर भी आ गए थे।
ये तथ्य इस बात को साबित करने के लिए पर्याप्त हैं कि अमेरिका की एक
प्रभावशाली मंत्री के दुनिया के सबसे बड़ी खुदरा कंपनी से बड़े गहरे
संबंध रहे हैं। इन्हीं संबंधों का इस्तेमाल भारत के खुदरा क्षेत्र में
वालमार्ट की घुसपैठ को वैधानिक बनाने के लिए किया जा रहा है ताकि
अमेरिकी हितों का पोषण होता रहा भले ही भारत के करोड़ो लोगों के सामने
रोजी-रोटी का संकट पैदा हो जाए।
अमेरिका के इशारे पर काम करने वाली इस सरकार ने अगर खुदरा क्षेत्र में
विदेशी निवेश को मंजूरी दी तो देश में बेरोजगारी की समस्या और बढ़ेगी
क्योंकि बड़ी कंपनियों के खुदरा क्षेत्र में आने से छोटी दुकानें बंद
हो जाएंगी। छोटी दुकानों के बंद होने के बाद ये बड़ी कंपनियां मनमानी
करेंगी और इससे देश के आर्थिक ढांचे पर नकारात्मक असर पड़ेगा। भारत
में खुदरा क्षेत्र का सालाना कारोबार तकरीबन 400 अरब डालर का है और यह
क्षेत्र तकरीबन 13 फीसदी की दर से विकास कर रहा है और यही वजह है कि
वालमार्ट जैसी बड़ी कंपनियां इस क्षेत्र पर नजर गड़ाए बैठी हैं।
गौरतलब है कि अकेले वालमार्ट का सालाना कारोबार तकरीबन 400 अरब डालर
का है और तकरीबन 21 लाख लोगों को रोजगार मिला हुआ है। इससे पता चलता
है कि भारत सरकार का यह दावा बिल्कुल खोखला है कि खुदरा क्षेत्र में
एफडीआई के आने से बड़े पैमाने पर रोजगार सृजन होगा। भारत में तकरीबन
चार करोड़ लोग खुदरा क्षेत्र पर आश्रित हैं। खुदरा क्षेत्र में विदेशी
पूंजी के आने से इन चार करोड़ लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा
होने का खतरा है।
खुदरा क्षेत्र में विदेशी निवेश को मंजूरी देने से यहां के सूक्ष्म,
लघु एवं मझोले उद्यमों का भी बहुत नुकसान होगा। इस क्षेत्र की विकास
दर अभी अच्छी है लेकिन एक बार खुदरा क्षेत्र में विदेशी कारपोरेट
घरानों के आ जाने के बाद इनके लिए अपना अस्तित्व बचाए रखना मुश्किल हो
जाएगा। पहले से ये देसी बड़ी कारपोरेट घरानों की तरफ से दी जा रही
चुनौतियों से निपटने में परेशान हैं।
जब देश में खुदरा क्षेत्र में बड़े कारपोरेट घरानों को आने यानी
संगठित रिटेल को मंजूरी दी गई थी उस वक्त भी कई लंबे-चैड़े वादे सरकार
ने किए थे। कहा गया था कि इसका फायदा किसानों और ग्राहकों को मिलेगा।
पर हकीकत सबने देख लिया।
संगठित रिटेल को भारत के लोगों ने एक तरह से खारिज कर दिया। कुछ
कंपनियों को तो अपना कारोबार तक समेटना पड़ा। इसके बावजूद केंद्र
सरकार अमेरिकी हितों को साधने के लिए खुदरा क्षेत्र में प्रत्यक्ष
विदेशी निवेश को हरी झंडी देना चाहती है। ऐसा करके दुनिया के सबसे
बड़े लोकतंत्र की लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार लोक भावना का
अनादर कर रही है और एक बड़ी आबादी के लिए नई तरह की मुश्किलें पैदा कर
रही है। इसका हर स्तर पर विरोध किया जाना चाहिए।
साभार केएन गोविंदाचार्य
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