३२ अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई ऊदा देवी

Published: Wednesday, Nov 16,2011, 22:33 IST
Source:
0
Share
ब्रिटिश सैनिकों, सिकंदर बाग़, वाजिद अली शाह, ऊदा देवी, IBTL

ऊदा देवी एक दलित (पासी जाति से संबद्ध) महिला थीं जिन्होने १८५७ के प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान भारतीय सिपाहियों की ओर से युद्ध में भाग लिया था। ये अवध के छठे नवाबवाजिद अली शाह के महिला दस्ते की सदस्या थीं। इस विद्रोह के समय हुई लखनऊ की घेराबंदी के समय लगभग २००० भारतीय सिपाहियों के शरणस्थल सिकन्दर बाग़ पर ब्रिटिश फौजों द्वारा चढ़ाई की गयी थी और १६ नवंबर१८५७ को बाग़ में शरण लिये इन २००० भारतीय सिपाहियों का ब्रिटिश फौजों द्वारा संहार कर दिया गया था।

इस लड़ाई के दौरान ऊदा देवी ने पुरुषों के वस्त्र धारण कर स्वयं को एक पुरुष के रूप में तैयार किया था। लड़ाई के समय वो अपने साथ एक बंदूक और कुछ गोला बारूद लेकर एक ऊँचे पेड़ पर चढ़ गयी थीं। उन्होने हमलावर ब्रिटिश सैनिकों को सिकंदर बाग़ में तब तक प्रवेश नहीं करने दिया था जब तक कि उनका गोला बारूद खत्म नहीं हो गया।

ऊदा देवी, १६ नवंबर १८५७ को ३२ अंग्रेज़ सैनिकों को मौत के घाट उतारकर वीरगति को प्राप्त हुई थीं। ब्रिटिश सैनिकों ने उन्हें जब वो पेड़ से उतर रही थीं तब गोली मार दी थी। उसके बाद जब ब्रिटिश लोगों ने जब बाग़ में प्रवेश किया, तो उन्होने ऊदा देवी का पूरा शरीर गोलियों से छलनी कर दिया। इस लड़ाई का स्मरण कराती ऊदा देवी की एक मूर्ति सिकन्दर बाग़ परिसर में कुछ ही वर्ष पूर्व स्थापित की गयी है।

वाजिद अली शाह दौरे वली अहदी में परीख़ाना की स्थापना के कारण लगातार विवाद का कारण बने रहे। फरवरी, १८४७ में नवाब बनने के बाद अपनी संगीत प्रियता और भोग-विलास आदि के कारण बार-बार ब्रिटिश रेजीडेंट द्वारा चेताये जाते रहे। उन्होंने बड़ी मात्रा में अपनी सेना में सैनिकों की भर्ती की जिसमें लखनऊ के सभी वर्गों के गरीब लोगों को नौकरी पाने का अच्छा अवसर मिला। ऊदादेवी के पति भी काफी साहसी व पराक्रमी थे, इनकी सेना में भर्ती हुए। वाजिद अली शाह ने इमारतों, बाग़ों, संगीत, नृत्य व अन्य कला माध्यमों की तरह अपनी सेना को भी बहुरंगी विविधता तथा आकर्षक वैभव दिया।

उन्होंने अपनी पलटनों को तिरछा रिसाला, गुलाबी, दाऊदी, अब्बासी, जाफरी जैसे फूलों के नाम दिये और फूलों के रंग के अनुरूप ही उस पल्टन की वर्दी का रंग निर्धारित किया। परी से महल बनी उनकी मुंहलगी बेगम सिकन्दर महल को ख़ातून दस्ते का रिसालदार बनाया गया। स्पष्ट है वाजिद अली शाह ने अपनी कुछ बेगमों को सैनिक योग्यता भी दिलायी थी। उन्होंने बली अहदी के समय में अपने तथा परियों की रक्षा के उद्देश्य से तीस फुर्तीली स्त्रियों का एक सुरक्षा दस्ता भी बनाया था। जिसे अपेक्षानुरूप सैनिक प्रशिक्षण भी दिया गया। संभव है ऊदा देवी पहले इसी दस्ते की सदस्य रही हों क्योंकि बादशाह बनने के बाद नवाब ने इस दस्ते को भंग करके बाकायदा स्त्री पलटन खड़ी की थी। इस पलटन की वर्दी काली रखी गयी थी।

यह तथ्यों पर आधारित सामग्री है, अगर तथ्यों में कोई गलती है तो इसे सही करने में आप सहयोग कर सकते हैं ! आई.बी.टी.एल आपका स्वागत करता है ...

Comments (Leave a Reply)

DigitalOcean Referral Badge