सोनिया गाँधी की वैधानिकता पर अधिकृत रूप से सवाल उठाने वाले देश के पहले मुख्यमंत्री - सुरेश चिपलूनकर

Published: Thursday, Nov 10,2011, 12:44 IST
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सोनिया गाँधी, उत्तराखण्ड, ॠषिकेश, श्री खण्डूरी, कांग्रेस, प्रधानमंत्री, भरतसिंह सोलंकी, केएम मुनियप्पा, IBTL

उत्तराखण्ड में ॠषिकेश से कर्णप्रयाग की रेल लाइन के निर्माण का भूमिपूजन विशाल पैमाने पर किया जाना था। उत्तराखण्ड में आगामी चुनाव को देखते हुए इस रेल परियोजना की नींव का पत्थर रखने के लिए सोनिया गाँधी को आमंत्रित किया गया था (ये कोई नई बात नहीं है, कई राज्यों में एक संवैधानिक प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री का अपमान करते हुए सोनिया गाँधी से उदघाटन करवाने की चरणपूजन परम्परा रही है।)। अपनी "रहस्यमयी बीमारी" के बाद सोनिया गाँधी की यह पहली विशाल आमसभा भी होती।

परन्तु ऐन मौके पर उत्तराखण्ड राज्य के मुख्यमंत्री श्री खण्डूरी ने कांग्रेस के रंग में भंग कर दिया। हाल ही में अण्णा की मंशा के अनुरूप जनलोकपाल बिल पास करवा चुके और टीम अण्णा की तारीफ़ें पा चुके भुवनचन्द्र खण्डूरी ने "प्रोटोकॉल" का सवाल उठाते हुए राष्ट्रपति भवन एवं प्रधानमंत्री कार्यालय से लिखित में पूछा, कि "आखिर सोनिया गाँधी किस हैसियत से इस केन्द्रीय रेल परियोजना की आधारशिला रख रही हैं?, न तो वे प्रधानमंत्री हैं, न ही रेल मंत्री हैं और UPA अध्यक्ष का पद कोई संवैधानिक पद तो है नहीं? यह तो साफ़-साफ़ संवैधानिक परम्पराओं का उल्लंघन एवं प्रधानमंत्री और रेल मंत्री का अपमान है"।

इसके बाद सोनिया गाँधी का यह कार्यक्रम रद्द कर दिया गया और इस आधारशिला कार्यक्रम में एक सांसद ने सोनिया गाँधी का एक संदेश पढ़कर सुनाया, वैसे यदि यह कार्यक्रम अपने मूलरूप में सम्पन्न होता भी तो दिनेश त्रिवेदी (रेलमंत्री), भरतसिंह सोलंकी और केएम मुनियप्पा (दोनों रेल राज्यमंत्री) सोनिया गाँधी के पीछे-पीछे खड़े होकर सिर्फ़ हें-हें-हें-हें-हें करते हुए हाथ भर हिलाते, लेकिन अब रेलमंत्री दिनेश त्रिवेदी को उनका "उचित संवैधानिक सम्मान" मिला।

ज़ाहिर है कि कांग्रेस खण्डूरी के इस वार से भौंचक्की रह गई है, क्योंकि अभी तक किसी मुख्यमंत्री की ऐसे "असुविधाजनक सवाल" उठाने की "हिम्मत"(?) नहीं हुई थी। मजे की बात देखिये कि राज्य की इस महत्वपूर्ण योजना के इस संवैधानिक कार्यक्रम में राज्य के मुख्यमंत्री को ही निमंत्रण नहीं दिया गया था, मानो यह रेल परियोजना "गाँधी परिवार" का कोई पारिवारिक कार्यक्रम हो। अब शर्म छिपाने के लिए कांग्रेस द्वारा "उल्टा चोर कोतवाल को डाँटे" की तर्ज पर प्रदेश कांग्रेस ने खण्डूरी की कड़ी आलोचना की है। कांग्रेस ने कहा है कि सोनिया गाँधी बीमारी की वजह से उनका यहाँ आना रद्द किया गया है, इसका खण्डूरी के सवालों से कोई लेना-देना नहीं है।

इस पूरे मामले में खण्डूरी एक हीरो और विजेता बनकर उभरे हैं, क्योंकि आए दिन गाँधी परिवार के नाम से शुरु होने वाली योजनाओं और "सिर्फ़ एक सांसद" की संवैधानिक हैसियत रखने वाली सोनिया गाँधी जब-तब हर राज्य में जाकर केन्द्र की विभिन्न परियोजनाओं को झण्डी दिखाती रही हैं, मंच हथियाती रही हैं…। माना कि भले ही उन्होंने एक प्रधानमंत्री "नियुक्त"(?) किया हुआ है, एक राष्ट्रपति भी "नियुक्त"(?) कर रखा है, लेकिन संविधान तो संविधान है, कम से कम उन्हें उनका उचित अधिकार तो लेने दीजिये।

महत्वपूर्ण बात यह भी है कि पहली बार किसी मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक रूप से इस "व्यवस्था"(?) पर सवाल उठाया है। कोई भी केन्द्रीय परियोजना जनता के पैसों से ही बनती और चलती है, तो इसकी आधारशिला और उदघाटन का अधिकार प्रधानमंत्री, सम्बन्धित विभाग के मंत्री अथवा राज्य के मुख्यमंत्री का होता है, जो कि संवैधानिक पद हैं, जबकि सोनिया गाँधी 545 में से "एक सांसद भर" हैं (न तो UPA और न ही NAC, दोनों ही संवैधानिक संस्था नहीं हैं), हाँ वे चाहें तो राजीव गाँधी फ़ाउण्डेशन के किसी कार्यक्रम की अध्यक्षता कर सकती हैं, क्योंकि वे उस संस्था की अध्यक्षा हैं। परन्तु एक आधिकारिक शासकीय कार्यक्रम में मुख्य आतिथ्य अथवा फ़ीता काटना या हरी झण्डी दिखाना उचित नहीं कहा जा सकता।

सोनिया गाँधी के पिछले दो वर्ष के विदेश दौरों और इलाज पर हुए खर्च का कोई ब्यौरा सरकार के पास नहीं है, अब देखना है कि खण्डूरी के इस वैधानिक और वाजिब सवाल पर "लोकतंत्र के कथित रखवाले" क्या जवाब देते हैं? परन्तु जिस बात को सुनने से कांग्रेसजनों का मुँह कसैला हो जाए, जिस बात को भाण्ड मीडिया कभी नहीं उठाएगा, वह बात कहने की इस "हिम्मत" दिखाई के लिए भुवनचन्द्र खण्डूरी निश्चित रूप से बधाई के पात्र हैं। लगता है कि अब भाजपाई भी डॉ सुब्रह्मण्यम स्वामी की हिम्मत और प्रयासों से प्रेरणा ले रहे हैं, जो कि अच्छा संकेत है।

- सुरेश चिपलूनकर ( लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं ) एवं यह उनके व्यक्तिगत विचार हैं
 

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