स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता में हुआ था। संगीत, साहित्य और दर्शन में स्वामी विवेकानंद को विशेष रुचि..
देश के सबसे बड़े अनशन सत्याग्रही - शहीद जतिन दास

जतिंद्र नाथ दास (27 अक्टूबर 1904 - 13 सितम्बर 1929), उन्हें जतिन
दास के नाम से भी जाना जाता है, एक महान भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और
क्रांतिकारी थे... लाहौर जेल में भूख हड़ताल के 63 दिनों के बाद जतिन
दास की मौत के सदमे ने पूरे भारत को हिला दिया... स्वतंत्रता से पहले
अनशन(उपवास) से शहीद होने वाले एकमात्र व्यक्ति जतिन दास हैं... जतिन
दास के देश प्रेम और अनशन की पीड़ा का कोई सानी नहीं है...
जतिंद्र नाथ दास का जन्म कोलकाता में हुआ था, वह बंगाल में एक
क्रांतिकारी संगठन अनुशीलन समिति में शामिल हो गए. जतिंद्र ने 1921
में गांधी के असहयोग आंदोलन में भाग लिया. नवम्बर 1925 में कोलकाता
में विद्यासागर कॉलेज में बी.ए. का अध्ययन कर रहे जतिन दास को
राजनीतिक गतिविधियों के लिए गिरफ्तार किया गया था और मिमेनसिंह
सेंट्रल जेल में कैद किया गया था. वो राजनीतिक कैदियों से दुर्व्यवहार
के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए, 20 दिनों के बाद जब जेल अधीक्षक ने
माफी मांगी तो जतिन ने अनशन त्याग किया...
उनसे भारत के अन्य भागों में क्रांतिकारियों
द्वारा संपर्क किया गया तो वह भगत सिंह और कामरेड के लिए बम बनाने में
भाग लेने पर सहमत हुए.14 जून 1929 को उन्हें क्रांतिकारी गतिविधियों
के लिए गिरफ्तार किया गया था और लाहौर षडयंत्र केस के तहत लाहौर जेल
में कैद किया गया था.
लाहौर जेल में, जतिन दास ने अन्य क्रांतिकारी सेनानियों के साथ भूख
हड़ताल शुरू कर दी, भारतीय कैदियों और विचाराधीन कैदियों के लिए
समानता की मांग की. भारतीय कैदियों के लिए वहां सब दुखदायी था- जेल
प्रशासन द्वारा उपलब्ध कराई गई वर्दियां कई कई दिनों तक नहीं धुलती
थी, रसोई क्षेत्र और भोजन चूहे और तिलचट्टों से भरा रहता था, कोई भी
पठनीय सामग्री जैसे अखबार या कोई कागज आदि नहीं प्रदान किया गया था,
जबकि एक ही जेल में अंग्रेजी कैदियों की हालत विपरीत थी...
जेल में जतिन दास की भूख हड़ताल अवैध नजरबंदियों के खिलाफ प्रतिरोध
में एक महत्वपूर्ण कदम था. यह यादगार भूख हड़ताल 13 जुलाई 1929 को
शुरू हुई और 63 दिनों तक चली. जेल अधिकारीयों ने जबरन जतिन दास और
अन्य स्वतंत्रता सेनानियों को खिलाने की कोशिश की, उन्हें मारा पीटा
गया और उन्हें पीने के पानी के सिवाय कुछ भी नहीं दिया गया, जतिन दास
ने पिछले 63 दिनों से कुछ नहीं खाया था तो वो 13 सितंबर को शहीद हुए
और उनकी भूख हड़ताल (अनशन) अटूट रही...
उनके शरीर को रेल द्वारा लाहौर से कोलकाता के लिए ले जाया गया...
हजारों लोगों उस सच्चे शहीद को अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने के लिए
रास्ते के स्टेशनो की तरफ दौड़ पड़े... उनके अंतिम संस्कार के समय
कोलकाता में दो मील लंबा जुलूस अंतिम संस्कार स्थल के पास था...
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