हर अच्छी किताब पढऩे के कुछ फायदे हैं। यदि बारीकी से शब्दों को पकड़ेंगे तो हम पाएंगे किताब में चार संदेश जरूर होते हैं। कैस..

जयप्रकाश नारायण (11 अक्तूबर, 1902 - 8 अक्तूबर, 1979) (संक्षेप
में जेपी ) भारतीय स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। उन्हें 1970 में
इंदिरा गांधी के विरुद्ध विपक्ष का नेतृत्व करने के लिए जाना जाता है।
वे समाज-सेवक थे, जिन्हें लोकनायक के नाम से भी जाना जाता है। 1998
में उन्हें भारत रत्न से सम्मनित किया गया।
शिक्षा : पटना मे अपने विधार्थी जीवन में जयप्रकाश
नारायण ने स्वतंत्रता संग्राम मे हिस्सा लिया। जयप्रकाश नारायण बिहार
विधापीठ में शामिल हो गए, जिसे युवा प्रतिभाशाली युवाओं को प्रेरित
करने के लिए डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ.
अनुग्रह नारायण सिन्हा, जो गांधी जी के एक निकट सहयोगी रहे और बाद मे
बिहार के पहले उप मुख्यमंत्री सह वित्त मंत्री रह चुके है द्वारा
स्थापित किया गया था। वे 1922 मे वे उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गए,
जहाँ उन्होंने 1922-1929 के बीच कैलिफोर्निया विश्वविधालय-बरकली,
विसकांसन विश्वविधालय में समाज-शास्त्र का अध्यन किया। पढ़ाई के महंगे
खर्चे को वहन करने के लिए उन्होंने खेतों, कंपनियों, रेस्टोरेन्टों मे
काम किया। वे मार्क्स के समाजवाद से प्रभावित हुए। उन्होने एम.ए. की
डिग्री हासिल की। उनकी माताजी की तबियत ठीक न होने की वजह से वे भारत
वापस आ गए और पी.एच.डी पूरी न कर सके।
जीवन : उनका विवाह बिहार के मशहूर गांधीवादी बृज
किशोर प्रसाद की पुत्री प्रभावती के साथ अक्तूबर १९२० मे हुआ।
प्रभावती विवाह के उपरांत कस्तुरबा गांधी के साथ गांधी आश्रम मे
रहीं।वे डॉ. राजेन्द्र प्रसाद और सुप्रसिद्ध गांधीवादी डॉ. अनुग्रह
नारायण सिन्हा द्वारा स्थापित बिहार विद्यापीठ में शामिल हो गए। १९२९
में जब वे अमेरिका से लौटे, भारतीय स्वतंत्रता संग्राम तेज़ी पर था।
उनका संपर्क गाधी जी के साथ काम कर रहे जवाहर लाल नेहरु से हुआ। वे
भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बने। 1932 मे गांधी, नेहरु और
अन्य महत्वपूर्ण कांग्रेसी नेताओ के जेल जाने के बाद, उन्होने भारत मे
अलग-अलग हिस्सों मे संग्राम का नेतृत्व किया। अन्ततः उन्हें भी मद्रास
में सितंबर 1932 मे गिरफ्तार कर लिया गया और नासिक के जेल में भेज
दिया गया। यहाँ उनकी मुलाकात एम. आर. मासानी, अच्युत पटवर्धन, एन. सी.
गोरे, अशोक मेहता, एम. एच. दांतवाला, चार्ल्स मास्कारेन्हास और सी.
के. नारायणस्वामी जैसे उत्साही कांग्रेसी नेताओं से हुई। जेल मे इनके
द्वारा की गई चर्चाओं ने कांग्रेस सोसलिस्ट पार्टी (सी.एस.पी) को जन्म
दिया। सी.एस.पी समाजवाद में विश्वास रखती थी। जब कांग्रेस ने 1934 मे
चुनाव मे हिस्सा लेने का फैसला किया तो जेपी और सी.एस.पी ने इसका
विरोध किया।
1939 मे उन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान, अंग्रेज सरकार के
खिलाफ लोक आंदोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने सरकार को किराया और
राजस्व रोकने के अभियान चलाए। टाटा स्टील कंपनी में हड़ताल करा के यह
प्रयास किया कि अंग्रेज़ों को इस्पात न पहुंचे। उन्हें गिरफ्तार कर
लिया गया और 9 महिने की कैद की सज़ा सुनाई गई। जेल से छूटने के बाद
उन्होने गांधी और सुभाष चंद्र बोस के बीच सुलह का प्रयास किया। उन्हे
बंदी बना कर मुंबई की आर्थर जेल और दिल्ली की कैंप जेल मे रखा गया।
1942 भारत छोडो आंदोलन के दौरान वे आर्थर जेल से फरार हो गए।
'मुझे अपने लिए चिंता नहीं है,
किंतु देश के लिए मुझे चिंता है।’
बिहार विभूति डा. अनुग्रह नारायण सिन्हा
उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हथियारों के उपयोग को सही समझा।
उन्होंने नेपाल जा कर आज़ाद दस्ते का गठन किया और उसे प्रशिक्षण दिया।
उन्हें एक बार फिर पंजाब में चलती ट्रेन में सितंबर 1943 मे गिरफ्तार
कर लिया गया। 16 महिने बाद जनवरी 1945 में उन्हें आगरा जेल मे
स्थांतरित कर दिया गया। इसके उपरांत गांधी जी ने यह साफ कर दिया था कि
डा. लोहिया और जेपी की रिहाई के बिना अंग्रेज सरकार से कोई समझौता
नामुमकिन है। दोनो को अप्रेल 1946 को आजाद कर दिया गया।
1948 मे उन्होंने कांग्रेस के समाजवादी दल का नेतृत्व किया, और बाद
में गांधीवादी दल के साथ मिल कर समाजवादी सोशलिस्ट पार्टी की स्थापना
की। 19 अप्रेल, 1954 में गया, बिहार मे उन्होंने विनोबा भावे के
सर्वोदय आंदोलन के लिए जीवन समर्पित करने की घोषणा की। 1957 में
उन्होंने लोकनिति के पक्ष मे राजनिति छोड़ने का निर्णय लिया।
1960 के दशक के अंतिम भाग में वे राजनिति में पुनः सक्रिय रहे। 1974
में किसानों के बिहार आंदोलन में उन्होंने तत्कालीन राज्य सरकार से
इस्तीफे की मांग की।
वे इंदिरा गांधी की प्रशासनिक नीतियों के विरुद्ध थे। गिरते स्वास्थ्य
के बावजूद उन्होंने बिहार में सरकारी भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन
किया। उनके नेतृत्व में पीपुल्स फ्रंट ने गुजरात राज्य का चुनाव जीता।
1975 में इंदिरा गांधी ने आपात्काल की घोषणा की जिसके अंतर्गत जेपी
सहित ६०० से भी अधिक विरोधी नेताओं को बंदी बनाया गया और प्रेस पर
सेंसरशिप लगा दी गई। जेल मे जेपी की तबीयत और भी खराब हुई। ७ महिने
बाद उनको मुक्त कर दिया गया। 1977 जेपी के प्रयासों से एकजुट विरोध
पक्ष ने इंदिरा गांधी को चुनाव में हरा दिया।
जयप्रकाश नारायण का निधन उनके निवास स्थान पटना में 8 अक्टूबर 1979 को
हृदय की बीमारी और मधुमेह के कारण हुआ। उनके सम्मान में तत्कालीन
प्रधानमंत्री चरण सिंह ने ७ दिन के राष्ट्रीय शोक का ऐलान किया, उनके
सम्मान में कई हजार लोग उनकी शोक यात्रा में शामिल हुए।
सम्पूर्ण क्रान्ति का आह्वान : पांच जून के पहले
छात्रें-युवकों की कुछ तात्कालिक मांगें थीं, जिन्हें कोई भी सरकार
जिद न करती तो आसानी से मान सकती थी। लेकिन पांच जून को जे. पी. ने
घोषणा की:-
"भ्रष्टाचार मिटाना, बेरोजगारी दूर करना,
शिक्षा में क्रान्ति लाना, आदि ऐसी चीजें हैं जो आज की व्यवस्था से
पूरी नहीं हो सकतीं; क्योंकि वे इस व्यवस्था की ही उपज हैं। वे तभी
पूरी हो सकती हैं जब सम्पूर्ण व्यवस्था बदल दी जाए। और, सम्पूर्ण
व्यवस्था के परिवर्तन के लिए क्रान्ति, ’सम्पूर्ण क्रान्ति’ आवश्यक
है।"
सम्पूर्ण क्रान्ति के आह्वान उन्होने श्रीमती इंदिरा गांधी की सत्ता
को उखाड़ फेकने के लिये किया था।
लोकनायक नें कहा कि सम्पूर्ण क्रांति में सात क्रांतियाँ शामिल है -
राजनैतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, बौद्धिक, शैक्षणिक व
आध्यात्मिक क्रांति। इन सातों क्रांतियों को मिलाकर सम्पूर्ण क्रान्ति
होती है।
सम्पूर्ण क्रांति की तपिश इतनी भयानक थी कि केन्द्र में कांग्रेस को
सत्ता से हाथ धोना पड़ गया था। जय प्रकाश नारायण जिनकी हुंकार पर
नौजवानों का जत्था सड़कों पर निकल पड़ता था। बिहार से उठी सम्पूर्ण
क्रांति की चिंगारी देश के कोने-कोने में आग बनकर भड़क उठी थी। जेपी
के नाम से मशहूर जयप्रकाश नारायण घर-घर में क्रांति का पर्याय बन चुके
थे। लालू प्रसाद, नीतीश कुमार, रामविलास पासवान या फिर सुशील मोदी, आज
के सारे नेता उसी छात्र युवा संघर्ष वाहिनी का हिस्सा थे।
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