सुबह से भाग-भाग कर बाघिन पूरी तरह थक चुकी थी। वह मुझसे सिर्फ 10 फीट दूर मानो आत्म समर्पण की मुद्रा में थी। मुझे लगा कि भीड..
गुरु गोबिंद सिंह जी के पुन्य/शोक दिवस ०७ अक्टूबर १७०८ पर विशेष
शोर मचा है, होड़ लगी है, छाती पीट रहे हैं लोग,
हाय ! स्टीव मर गया, कैंसर का था उसको रोग,
लेकिन ये छाती पीटने वाले, भूल गए हैं अपना इतिहास,
आज ही के दिन कुर्बान हुआ, वो बंदा था कुछ खास,
बंदा था कुछ खास, वो सवा लाख से एक लड़ाता,
सवा लाख से एक लड़ाता, तब ही "गोविन्द" कहा जाता,
देश-धर्म की खातिर उसने बीवी-बच्चों तक की दे दी कुर्बानी,
फिर भी अधर्मी मुगलों के सम्मुख, उसने हार कभी ना मानी,
गुरु गोबिंद का पुन्य-दिवस गुमनामी में बह गया,
गैरों का शोक दिवस लेकिन, याद तुमको रह गया ,
ए इण्डिया वालों, तय कर लो अपनी प्राथमिकताएं,
मर गई है कृतज्ञता या अब भी बाकी हैं कुछ संवेदनाएं,
... तय कर लो के
दर्शन हमारा हो, उधार का नहीं,
भारत हमारा हो, बाज़ार का नहीं !
— साहिल "प्रवीण"
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बाघिन भाग-भाग कर थक चुकी थी, फिर भी मार दिया...
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