नैसर्गिक आपदाएँ प्रस्थापित समाज जीवन को तहस-नहस कर देती है| लेकिन मनुष्य कुछ ही समय में समाज व्यवस्था पुन: कायम कर लेता है..
हम भूल गए शक्ति पूजा, मां दुर्गा की पूजा को शक्ति-पूजन भी कहा जाता है
मां दुर्गा की पूजा को शक्ति-पूजन भी कहा जाता है। राक्षसराज रावण पर विजय पाने के लिए स्वयं भगवान राम ने भी शक्ति-पूजा की थी। प्रतिवर्ष शरद ऋतु में करोड़ों हिंदू दुर्गा-पूजा मनाते है। किंतु क्या वस्तुत: वह शक्ति-पूजा होती है या अब हम उसे सर्वथा भूल गए हैं? हर हिंदू को घर और स्कूल, सभी जगह अच्छा बच्चा बनने की सीख दी जाती है। प्राय: इसका अर्थ होता है कि केवल पढ़ाई-लिखाई पर ध्यान दो। यदि झगड़ा हो रहा हो, तो आंखें फेर लो। किसी दुर्बल बच्चे को कोई उद्दंड सता रहा हो, तो बीच में न पड़ो। तुम्हें भी कोई अपमानित करे, तो चुप रहो। तुम अच्छे बच्चे हो, जिसे पढ़-लिख कर डॉक्टर, इंजीनियर बनना है।
इस प्रकार, किताबी शिक्षा और सामाजिक कायरता का पाठ अधिकांश हिंदुओं को बचपन से ही सिखाया जाता है। वे दुर्गा-पूजा करके भी नहीं करते, क्योंकि उन्हें कभी नहीं बताया जाता कि दैवीय अवतारों को भी अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा लेनी पड़ती थी क्योंकि दुष्टों से रक्षा के लिए शक्ति-संधान अनिवार्य कर्तव्य है। अपने ही देश में अपमानित, उत्पीडि़त, विस्थापित, एकाकी हिंदू को समझ नहीं आता कि कहां गड़बड़ी हुई? उसने तो किसी का बुरा नहीं चाहा। उसने तो गांधीजी की सीख मानकर दुष्टों, पापियों के प्रति भी प्रेम दिखाया।
कुछ विशेष प्रकार के दगाबाजों, हत्यारों को भी भाई समझा, जैसाकि गांधीजी करते थे। तब क्या हुआ कि उसे न दुनिया के मंच पर न्याय मिलता है, न अपने देश में? मन में प्रश्न उठता है, किंतु अच्छे बच्चे की तरह वह इस प्रश्न को भी खुल कर सामने नहीं रखता। यशपाल की एक कहानी है-लज्जा। उसमें पांच-छह वर्ष की एक अबोध गरीब बालिका है। उसके शरीर पर एकमात्र वस्त्र उसकी फ्रॉक है। किसी प्रसंग में लज्जा बचाने के लिए वह वही फ्रॉक उठाकर अपनी आंखें ढक लेती है। कहना चाहिए कि दुनिया के सामने भारत अपनी लज्जा उसी बालिका समान ढंकता है, जब वह खूंखार आतंकवादियों को पकड़ के भी सजा नहीं दे पाता।
जब वह चीन और पाकिस्तान के हाथों निरंतर अपमानित होता है और उन्हीं के नेताओं के सामने भारतीय कर्णधार हंसते हुए फोटो खिंचाते हैं। स्वयं देश के अंदर जनता वही क्रम दोहराती है, जब कश्मीरी अलगाववादी ठसक से हिंदुओं को मार भगाते हैं और उलटे नई दिल्ली पर शिकायत पर शिकायत ठोंकते हैं। फिर भारत से ही अरबों रुपये सालाना फीस वसूल कर दुनिया को बताते हैं कि वे भारत से अलग और ऊंची चीज हैं। अच्छा बच्चा समझता है कि उसने चुप रहकर या मीठी बातें दोहराकर या किसी क्षेत्र विशेष में पदक हासिल कर दुनिया के सामने अपनी लज्जा बचा ली है। उसे लगता है किसी ने नहीं देखा कि वह अपने ही परिवार, अपने ही स्वधर्मी देशवासी को दुष्टों, गुड़ों के हाथों अपमानित, उत्पीडि़त होने से नहीं बचा पाता, अपनी मातृभूमि का अतिक्रमण नहीं रोक पाता।
उसकी सारी कार्यकुशलता और अच्छा बच्चापन इस दु:सह वेदना का उपाय नहीं जानता। भीमराव अंबेडकर की ऐतिहासिक पुस्तक पाकिस्तान या भारत का विभाजन (1940) में अच्छे और बिगड़ैल बच्चे, दोनों की संपूर्ण मन:स्थिति और परस्पर नीति अच्छी तरह प्रकाशित है। मगर अच्छे बच्चे ऐसी पुस्तकों से भी बचते हैं। वे केवल गांधी की मनोहर पोथी हिंद स्वराज पढ़ते हैं, जिसमें लिखा है कि आत्मबल तोपबल से भी बड़ी चीज है। इसलिए वे हर कट्टे और तमंचे के सामने कोई मंत्र रटते या मनौती मनाते हुए आत्मबल दिखाने लगते हैं। फिर कोई सुफल न पाकर कलियुग को कोसते हैं। यह प्रकिया सौ साल से अहर्निश चल रही है।
शक्ति-पूजा भुलाई जा चुकी है। यही सारी समस्याओं की जड़ है। श्रीअरविंद ने अपनी रचना भवानी मंदिर (1905) में लिखा है, हमने शक्ति को छोड़ दिया है और इसलिए शक्ति ने भी हमें छोड़ दिया है। हर सभ्यता में आत्मरक्षा के लिए अस्त्र-शस्त्र रखना प्रत्येक व्यक्ति का जन्मसिद्ध अधिकार रहा है। इसे यहां अंग्रेजों ने अपना राज बचाने के लिए प्रतिबंधित किया और कांग्रेस के शब्दों में हमें नपुंसक बनाया! अब यह हमारी नियति बन गई है। हम सामूहिक रूप में आत्मसम्मान विहीन हो गए हैं। आज नहीं तो कल हमें यह शिक्षा लेनी पड़ेगी कि अच्छे बच्चे को बलवान और चरित्रवान भी होना चाहिए। कि आत्मरक्षा के लिए परमुखापेक्षी होना गलत है। कि अपमानित होकर जीना मरने से बदतर है। दुष्टता को सहना या आंखें चुराना दुष्टता को प्रोत्साहन है।
रामायण और महाभारत ही नहीं, यूरोपीय चिंतन में भी यही शिक्षा है। कश्मीर के विस्थापित कवि कुंदनलाल चौधरी ने प्रश्न किया था-हमारे देवताओं ने हमें निराश किया या हमने अपने देवताओं को? इसका उत्तर है कि हमने देवताओं को निराश किया। उन्होंने तो विद्या की देवी को भी शस्त्र-सज्जित रखा था और हमने शक्ति की देवी को भी मिट्टी की मूरत में बदल कर रख दिया। चीख-चीख कर रतजगा करना पूजा नहीं। इसी तरह केवल रावण का पुतला दहन करने से बुराइयां मिटने वाली नहीं हैं। पूजा है किसी संकल्प के लिए शक्ति-आराधन करना। सम्मान से जीने के लिए मृत्यु का वरण करने के लिए भी तत्पर होना। दुष्टता की आंखों में आंखें डालकर जीने की रीति बनाना। यही शक्ति-पूजा है जिसे हम भुला बैठे हैं। (लेखक वरिष्ठ स्तंभकार हैं)
Share Your View via Facebook
top trend
-
समुद्री तुफान पीडित बच्चों का घर : जसोदा सदन
-
हम भूल गए अमर सेनानी वासुदेव बलवंत फड़के को : राष्ट्र वंदना
वासुदेव बलवंत फडके (4 नवम्बर, 1845 – 17 फरवरी, 1883) भारत के स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारी थे जिन्हें आदि क्रा..
-
अन्ना की जान से खेल रहीं किरण बेदी, बाल ठाकरे का आरोप, विजय माल्या ने भी साधा निशाना
रामलीला मैदान में 12 दिन से अनशन पर बैठे अन्ना हजारे का साथ दे रहे समर्थकों का उत्साह बढ़ाने के लिए शनिवार को आम..
-
निवेश की आड़ में देश से बाहर जा रहा कालाधन, तकरीबन 26 हजार करोड़ रुपये
नई दिल्ली वैश्विक मंदी के बावजूद निवेश की आड़ में कालाधन देश से बाहर भेजने की खबरों से इस मुद्दे पर पहले से ही घिरी केंद्र..
-
'टाइम 100' पोल में ओबामा से आगे चल रहे हैं नरेंद्र मोदी
नई दिल्ली . विश्व प्रसिद्ध अमेरिकी मैगजीन ' टाइम ' के ऑनलाइन पोल में बीजेपी नेता और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्..
what next
-
-
सुनहरे भारत का निर्माण करेंगे आने वाले लोक सभा चुनाव
-
वोट बैंक की राजनीति का जेहादी अवतार...
-
आध्यात्म से राजनीती तक... लेकिन भा.ज.पा ही क्यूँ?
-
अयोध्या की 84 कोसी परिक्रमा ...
-
सिद्धांत, शिष्टाचार और अवसरवादी-राजनीति
-
नक्सली हिंसा का प्रतिकार विकास से हो...
-
न्याय पाने की भाषायी आज़ादी
-
पाकिस्तानी हिन्दुओं पर मानवाधिकार मौन...
-
वैकल्पिक राजनिति की दिशा क्या हो?
-
जस्टिस आफताब आलम, तीस्ता जावेद सीतलवाड, 'सेमुअल' राजशेखर रेड्डी और NGOs के आपसी आर्थिक हित-सम्बन्ध
-
-
-
उफ़ ये बुद्धिजीवी !
-
कोई आ रहा है, वो दशकों से गोबर के ऊपर बिछाये कालीन को उठा रहा है...
-
मुज़फ्फरनगर और 'धर्मनिरपेक्षता' का ताज...
-
भारत निर्माण या भारत निर्वाण?
-
२५ मई का स्याह दिन... खून, बर्बरता और मौत का जश्न...
-
वन्देमातरम का तिरस्कार... यह हमारे स्वाभिमान पर करारा तमाचा है
-
चिट-फण्ड घोटाले पर मीडिया का पक्षपातपूर्ण रवैया
-
समय है कि भारत मिमियाने की नेहरूवादी नीति छोड चाणक्य का अनुसरण करे : चीनी घुसपैठ
-
विदेश नीति को वफादारी का औज़ार न बनाइये...
-
सेकुलरिस्म किसका? नरेन्द्र मोदी का या मनमोहन-मुलायम का?
-
Comments (Leave a Reply)