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नागरिकों को हिंदू और मुस्लिम बना देगा यह सांप्रदायिक हिंसा बिल
प्रस्तावित सांप्रदायिक हिंसा बिल विवादों के घेरे में आ गया है। एनडीए ही नहीं , यूपीए का एक घटक दल तृणमूल कांग्रेस भी इस बिल के विरोध में खड़ा हो गया है। शनिवार को राष्ट्रीय एकता परिषद ( एनआईसी ) की बैठक में एनडीए ने इस बिल को बेहद ' खतरनाक ' करार दिया। कांग्रेस की सहयोगी तृणूमल कांग्रेस ने इसका विरोध करते हुए कहा कि देश की एकता के लिए यह बिल खतरनाक है।
एनआईसी की बैठक में सांप्रदायिक हिंसा बिल एजेंडे में था। बैठक में एनडीए और मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , कर्नाटक , हिमाचल प्रदेश , उत्तराखंड , बिहार और पंजाब के मुख्यमंत्रियों ने बिल के ड्राफ्ट के मौजूदा स्वरूप पर कड़ी आपत्ति जताई।
बैठक के बाद बीजेपी लीडर सुषमा स्वराज ने कहा कि बिल का मौजूदा ड्राफ्ट बेहद खतरनाक है। उन्होंने कहा कि यह देश के नागरिकों को नागरिक न मानकर अल्पसंख्यक और बहुसंख्यक में बांटता है। उन्होंने कहा कि यह बिल राज्यों के सारे अधिकार अपने हाथ में ले रहा है। इससे केंद्र और राज्य सरकारों के संबंध खराब होंगे।
...क्लिक करें... : दंगों में हिन्दू औरत का बलात्कार अपराध नहीं माना जाएगा ? - सुरेश चिपलूनकर,
तृणमूल कांग्रेस के दिनेश त्रिवेदी ने कहा कि उनकी पार्टी बिल के मौजूदा स्वरूप का विरोध करती है। मायावती ने भी अपने संदेश में कहा कि इस बिल को लाने का यह सही वक्त नहीं है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा , ' विधेयक में राज्य सरकार की मशीनरी में अविश्वास की भावना जताई गई है। साथ ही संगठित सांप्रदायिक हिंसा के अपराध को परिभाषित करने में स्पष्टता की कमी है। ' उन्होंने कहा , ' मैं केंद्र सरकार से अनुरोध करता हूं कि राज्य सरकार में विश्वास के साथ ही उसे मजबूत बनाएं। इससे देश मजबूत होगा। कुछ निहित हितों के लिए यदि राज्य सरकारों को कमजोर किया गया , तो देश कमजोर होगा जिससे संकीर्ण ताकतों को बल मिलेगा। '
उन्होंने विधेयक की कुछ धाराओं का उल्लेख करते हुए कहा , ' विधेयक की धारा नौ इस अनुमान पर बनाई गई है कि राज्य सरकारी संस्थानें जानबूझकर धार्मिक कट्टरता और हिंसा को भड़का रही हैं। लोकतांत्रिक प्रणाली में ऐसे संदेह के लिए कोई जगह नहीं होनी चाहिए। ये चीजें सरकारी कर्मचारियों को अपना काम करने से रोक सकती हैं।
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