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क्या बाबा रामदेव इतना भी नहीं जानते, कि बांग्लादेशियों पर पहला हक कांग्रेस का ही है…?
बाबा रामदेव के योग कैम्प में अपने विकलांग पुत्र का इलाज करवा रहे
बांग्लादेश के नागरिक श्री ब्योमकेश भट्टाचार्य की "अवैध"(?) उपस्थिति
को लेकर पुलिस ने बाबा को नोटिस जारी किया है। ब्योमकेश भट्टाचार्य
अपनी पुत्री को लेकर बांग्लादेश वापस चले गये, जबकि उनकी पत्नी संचिता
और मानसिक विकलांग पुत्र विश्वकांति अब तक बांग्लादेश वापस नहीं लौटे
हैं। बाबा रामदेव से इस मामले में कई गलतियाँ हुई हैं -
1) पहली गलती तो यह कि, जब भारत में रहने वाले तमाम बांग्लादेशियों का
ठेका कांग्रेस और वामपंथियों ने उठा रखा है तो फ़िर बाबा रामदेव ने
अपने योग कैम्प में एक बांग्लादेशी मरीज को क्यों भर्ती किया?
2) दूसरी गलती - चलो यदि कर भी लिया, तो बांग्लादेश से आये हुए एक
"हिन्दू" (और वह भी ब्राह्मण) परिवार को कैम्प में क्यों रखा? क्या
बाबा रामदेव को इतना भी नहीं पता, कि बांग्लादेश हो या पाकिस्तान,
वहाँ से "वैध या अवैध रूप से" आकर भारत की "छाती पर मूंग दलने का
अधिकार" सिर्फ़ मुसलमानों को है?
3) बाबा रामदेव को समझना चाहिए कि भारत में इलाज के लिये आने का
अधिकार भी सिर्फ़ "गंगा-जमुनी" वालों को ही है, चाहे दिल के छेद का
ऑपरेशन करवाना हो या किसी और छेद का। यदि बाबा रामदेव ने बांग्लादेश
के किसी मुस्लिम परिवार को हरिद्वार में रखा होता तो एक तो उन्हें
पद्म पुरस्कार लेने में भी बहुत आसानी होती, और न ही नोटिस और न ही
कोई पूछताछ का झंझट…। क्योंकि वैसे ही भारत में दो करोड़ से अधिक
बांग्लादेशी भिखमंगे, कांग्रेस-वामपंथियों की कृपा पर पल ही रहे
हैं…
तात्पर्य यह कि बाबा रामदेव ने "बांग्लादेशी हिन्दू" को योग कैम्प में
रखकर बड़ी भारी गलती की है, उन्हें पहले कांग्रेस से पूछना चाहिए था।
जिस प्रकार "विश्व बैंक के एक नौकर" ने एक बार कहा था कि "भारत के
संसाधनों पर पहला हक मुस्लिमों का है…" उसी प्रकार रामदेव बाबा को समझ
लेना चाहिए कि "बांग्लादेश से आने वाले हर "वोट" पर कांग्रेस और
वामपंथ का पहला हक है…"। जब भारत की सरकार पाकिस्तान से लुट-पिटकर आने
वाले हिन्दुओं को ही भारत की नागरिकता नहीं दे रही, उन्हें सीमा पर
अटका रखा है…। तो फ़िर बाबा रामदेव की हिम्मत कैसे हुई कि वे
बांग्लादेश से आये एक हिन्दू परिवार का इलाज करें?
― सुरेश चिपलूनकर
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