ब्रिटेन के प्रमुख साप्ताहिक पत्र ‘इकॉनामिस्ट’ ने कहा है कि राहुल गांधी की पीएम के तौर पर ताजपोशी और जल्दी हो स..
आज कांग्रेस स्वामी रामदेव और अन्ना हज़ारे दोनों से एक साथ लोहा
लेती नज़र आ रही है। लेकिन क्या वाक़ई कांग्रेस का इरादा इन दोनों को
एक साथ दुश्मन बनाने का था? असलियत में इरादा कुछ और ही था। कांग्रेस
तो अन्ना से परेशान थी। अन्ना को निपटाने के लिए रामदेव को ‘ड्रोन’
जैसी अचूक मिसाइल के तौर पर तैयार किया गया था लेकिन यह मिसाइल
बैकफ़ायर कर गई। कांग्रेस की रणनीति फेल हो गई। राजनीति के अनुभवी
खिलाड़ियों का निशाना क्यों चूका, इसे लेकर मेरे पास कुछ अंदर की
जानकारी है।
पहले इस गेम-प्लान की पृष्ठभूमि को जानिए। अप्रैल में जंतर-मंतर पर
धरना देने का आइडिया स्वामी रामदेव का था। उन्होंने ही अन्ना को इस
मुहिम में शामिल किया था। लेकिन अन्ना का एक सहयोगी यह आइडिया ले
उड़ा। अन्ना का धरना ऐसी तारीखों पर रख दिया गया जब स्वामी रामदेव
हरिद्वार में मोरारी बापू की कथा करवा रहे थे। वो चाहकर भी दिल्ली
नहीं आ सकते थे।
नाराज़ रामदेव ने ख़ुद को इस धरने से अलग कर लिया। लेकिन अन्ना के इस
धरने ने कमाल की रफ़्तार पकड़ ली। ट्विटर और ब्लॉग की दुनिया ने अन्ना
को हीरो बना दिया। मजबूरी में रामदेव को भी जंतर-मंतर आना पड़ा।
उन्होंने वहां ज़ोरदार भाषण तो दिया पर मन में ये टीस रह गई कि अन्ना
ने उनके आंदोलन को हाईजैक कर लिया था। जब सरकार अन्ना के सामने झुकी
तो अन्ना का व्यक्तित्व और बड़ा दिखाई देने लगा।
रामदेव कैसे भुला सकते हैं कि भष्ट्राचार के ख़िलाफ़ अलख जगाने के लिए
उन्होंने देशभर में 600 से ज्यादा ज़िलों का दौरा किया था। उस अभियान
में रामदेव एक लाख किलोमीटर चले थे। रामदेव ये भी जानते थे कि उनके
पास बड़ा जनाधार है। देशभर में फैला कार्यकर्ताओं का विशाल नेटवर्क
है। अन्ना हज़ारे इस मायने में ठन-ठन गोपाल हैं। तो फिर रामदेव को ये
कैसे बर्दाश्त होता कि अन्ना उनके आंदोलन पर कब्ज़ा कर लें।
रामदेव ने दिल्ली में अपनी ताक़त दिखाने का फ़ैसला किया। जंतर-मंतर पर
अगर अन्ना के साथ एक हज़ार लोग थे तो रामलीला मैदान में एक लाख लोगों
को इकट्ठा करना रामदेव के लिए बाएं हाथ का खेल था। अन्ना ने अगर
लोकपाल जैसे सूखे मुद्दे पर सरकार को झुकाया था तो रामदेव का इरादा
काले धन जैसे लोकप्रिय सवाल पर सरकार से लोहा मनवाने का था।
अन्ना से परेशान कांग्रेस को स्वामी रामदेव में रामबाण नज़र आया।
कांग्रेस के नेताओं को लगा कि सीधे-साधे रामदेव को चतुर अन्ना के जवाब
के रुप में पेश किया जा सकता है। रामेदव भी इस रास्ते चलने को तैयार
थे। उनके कांग्रेस के कई दिग्गजों से मधुर संबंध थे। उन्होंने
प्रधानमंत्री को लोकपाल बिल से बाहर रखने की खुलेआम मांग कर दी। सरकार
ने इनकम टैक्स के बड़े अफ़सरों को रामदेव से काले धन पर चर्चा करने के
लिए भेजा। रामदेव को लगा सरकार अगर कालेधन को वापस लाने के लिए क़ानून
बना देती है तो यह उनकी जीत होगी। कांग्रेस को भी लगता था कि अगर
रामदेव हीरो बन जाएं तो एक तरफ़ अन्ना की सफ़ाई होगी, दूसरी तरफ़ अगले
लोकसभा चुनाव में रामदेव कांग्रेस के साथ मिलकर बीजेपी की धुलाई
करेंगे।
यही वजह थी की सरकार के चार-चार मंत्री, प्रधानमंत्री के सबसे
विश्वसनीय अफ़सरों के साथ रामदेव से मिलने एयरपोर्ट पहुंचे। कांग्रेस
को लगता था इससे जनता में संदेश जाएगा कि कालेधन और भष्ट्राचार के
ख़िलाफ़ लड़ाई के प्रति सरकार कितनी गंभीर है। साथ ही उन्हें लगता था
सरकार का अपनी मांगो के प्रति ऐसा इरादा देखकर रामदेव रामलीला मैदान
में सत्याग्रह वापस लेने का एलान कर देंगे और इस आंदोलन की तरफ ललचाई
आंखों से देख रही बीजेपी की हवा निकल जाएगी। कांग्रेस को दोनों हाथों
में लड्डू दिखाई दे रहे थे। रामदेव गदगद थे। लेकिन वो रामलीला मैदान
में शक्ति-प्रदर्शन से पीछे नहीं हटना चाहते थे। वो जनता की आंखों में
‘सरकारी संत’ नहीं बनना चाहते थे। हालांकि वो कांग्रेस से प्रभावित थे
लेकिन वे यह भी दिखाना चाहते थे कि अपनी मांगों को उन्होंने लड़कर
मनवाया।
कांग्रेस और सरकार को डर था कि रामदेव एक बार धरने पर बैठ गए तो
उन्हें उठाना मुश्किल हो जाएगा। वो तो बस सत्याग्रह वापस लेने का एलान
जल्द से जल्द चाहते थे। रामदेव और कांग्रेस के बीच लुका-छिपी का ये
खेल अगले दिन भी जारी रहा। सरकार लिखित में रामदेव की अस्सी परसेंट
मांग मानने को तैयार थी। छह महीने में क़ानून बनाने को तैयार थी।
लेकिन वो चाहती थी कि रामदेव यह लिखकर दें कि तीन दिन में रामलीला
मैदान खाली कर दिया जाएगा।
रामदेव इसके लिए तैयार नहीं थे। कपिल सिब्बल ने चतुराई से आचार्य
बालकृष्ण से ये लिखवा लिया। रामदेव को बताया गया कि यह पत्र सिर्फ
प्रधानमंत्री को भरोसा दिलाने के लिए है कि लिखित आश्वासन के बाद
सत्याग्रह वापस ले लिया जाएगा।
राजनीति के खेल में नए रामदेव कांग्रेस के दिग्गजों पर पूरा भरोसा कर
चुके थे। इन नेताओं को यह जतलाने के लिए कि वो सरकार के लिए किसी तरह
की मुसीबत खड़ी नहीं करेंगे, रामदेव ने दिन में बार-बार एलान किया कि
उनका आंदोलन किसी पार्टी या सरकार के ख़िलाफ़ नहीं है। रामदेव ने अपने
मंच से मनमोहन सिंह या सोनिया गांधी के ख़िलाफ़ एक शब्द नहीं कहा।
रामदेव ने आरएसएस के धुरंधरों को रामलीला मैदान से दूर रखा। बीजेपी के
नेताओं को वहां पांव नहीं रखने दिया।
लेकिन रामदेव का यह सब करना सरकार के लिए काफ़ी नहीं था। एयरपोर्ट पर
रामदेव की आगवानी के कारण पहले ही ये संदेश गया था कि सरकार ‘साधु
समाज’ के सामने नतमस्तक हो रही है। एक बार ‘सिविल सोसायटी’ के दूध से
जली सरकार, इस बार रामदेव की छाछ को फूंक-फूंक कर पी रही थी। कांग्रेस
के नेता चाहते थे बस किसी तरह चार जून को अनशन ख़त्म हो जाए। रामदेव
एलान करें कि सरकार भष्ट्राचार के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए गंभीर है।
उधर रामदेव अपने सामने उमड़े जन-सैलाब को देखकर अभिभूत थे। वे जल्द
अनशन ख़त्म करने के मूड में नहीं थे। इसी मुकाम पर रामदेव और कांग्रेस
के नेताओं के बीच बना भरोसे का पुल डगमगाने लगा। जब चार तारीख की शाम
को रामदेव ने सत्याग्रह ख़त्म करने का एलान नहीं किया तो कांग्रेस को
शक होने लगा कि ‘कहीं रामदेव उनके साथ खेल तो नहीं कर रहे’। उनकी तरफ़
से अनशन खत्म करने के लिए दवाब और बढ़ा। सरकार ने लिखित रुप में लगभग
सारी मांगे मान लेने का आश्वासन दिया। रामदेव ने अब एक-दो नई मांगे
सामने रख दी। कांग्रेस के नेताओं ने ये मान लिया कि रामदेव के इस बदले
मिज़ाज के पीछे आरएसएस का हाथ था। उनके सब्र का बांध टूट गया। कपिल
सिब्बल ने अपनी प्रेस कांफ्रेंस में रामदेव की चिट्ठी दिखा दी। बाबा
को बेनक़ाब करने के इरादे से उन्होंने बता दिया कि रामदेव के साथ
‘डील’ हो गई थी और बाबा अपने वादे से मुकर गये हैं।
चिट्ठी की आड़ में ‘डील’ के इस एलान ने रामदेव को आहत कर दिया।
उन्होंने अपने और ज़्यादा समर्थकों को रामलीला मैदान पहुंचने का
आह्वान कर दिया। रामदेव से बात कर रहे नेता अब नाराज़ भी थे और नर्वस
भी। उन्हें लगा रामलीला मैदान में और भीड़ जुटाकर रामदेव उन्हें मजबूर
करने का खेल खेल रहे हैं- इसी आशंका की वजह से रात में हज़ारों
निर्दोष, भूखे और शांति से सोते हुए लोगों पर पुलिस ने बर्बरता से
लाठी-डंडे बरसाए। आंसू गैस के गोले छोड़े और उन्हें भागने पर मजबूर कर
दिया। इस दमन से बाबा को सहानुभूति मिली और सरकार को भरपूर बदनामी।
इसके बाद आरोप-प्रत्यारोप का जो दौर चला वो सबको मालूम है।
आज रामदेव और कांग्रेस नेतृत्व के बीच अविश्वास की खाई और भी गहरी हो
चुकी है। कहां तो कांग्रेस यह चाहती थी कि रामदेव को अन्ना की काट
बनाया जाए। वहीं आज अन्ना और रामदेव साथ खड़े हुए दिख रहे हैं।
कांग्रेस के हाथ अपनी ही मिसाइल से जल गए हैं। अब उसे इन जले हुए
हाथों से अन्ना और रामदेव दोनों से निपटना है। इसके लिए अब कांग्रेस
को नए हथियार और नई रणनीति की तलाश होगी।
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