पिछले कुछ वर्षों में भारत की सीमाओं पर लगातार बढ़ते तनाव से उत्पन्न सुरक्षा चुनौतियां उस खतरे का स्पष्ट संकेत हैं, जिसका..
अयोध्या अपने शाब्दिक अर्थ के अनुसार यह अपराजित है.. यह नगर अपने
२२०० वर्षों के इतिहास मे अनेकों युद्धों व संघर्षो का प्रत्यक्ष
दर्शी रहा है, अयोध्या को राजा मनु द्वारा निर्मित किया गया और यह
श्री राम जी का जन्मस्थल है। इसका उल्लेख प्राचीन संस्कृत ग्रंथों
जिसमे रामायण व महाभारत सम्मिलित हैं, में आता है। वाल्मिकि रामायण के
एक श्लोक मे इसका वर्णन निम्न प्रकार है।
कोसलो नाम मुदितः स्फीतो जनपदो महान्। निविष्ट सरयूतीरे
प्रभूत-धन-धान्यवान् ॥१-५-५॥
अयोध्या नाम नगरी तत्रऽऽसीत् लोकविश्रुता। मनुना मानवेन्द्रेण या पुरी
निर्मिता स्वयम् ॥१-५-६॥
— श्रीमद्वाल्मीकीरामायणे बालकाण्डे पञ्चमोऽध्यायः
श्री ग्रिफैत्स जो 19 शताब्दी के आख़िर मे बनारस कॉलेज के मुख्य
अध्यापक रहे... उन्होने रामायण मे अयोध्या के वर्णन को बड़ी सुंदरता
से इस प्रकार अनुवादित किया, उनके शब्दों के अनुसार - " उस नगरी के
विशाल एवं सुनियोजित रास्ते और उसके दोनो ओर से निकली पानी की नहरें
जिस से राजपथ पर लगे पेड़ तरो ताज़ा रहें और अपने फूलो की महक को
फैलाते रहें। एक कतार से लगे हुए और सतल भूमि पर बने बड़े बड़े राजमहल
हैं, अनेक मंदिर एवं बड़ी बड़ी कमानें, हवा मे लहराता विशाल राज ध्वज,
लहलहाते आम के बगीचे, फलों और फूलों से लदे पेड़, मुंडेर पर कतार से
लगे फहराते ध्वजों के इर्द गिर्द और हर द्वार पर धनुष लिए तैनात रक्षक
हैं। "
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In English : Ayodhya - the ‘Unconquerable’ : Ayodhya - a journey
through time
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कौशल राज्य के नरेश राजा दशरथ राजा मनु के ५६ वंशज माने जाते हैं,
उनकी ३ पत्नियां थी, कौशल्या, सुमीत्रा व कैकेयी, ऐसा माना जाता है
श्री राम का जन्म कौशल्या मंदिर मे हुआ था, अतः उसे ही राम जन्म स्थल
कहा जाता है. ब्रह्मांड पुराण में अयोध्या को हिंदुओं ६ पवित्र
नगरियों से भी अधिक पवित्र माना गया है। जिसका उल्लेख इस पुराण मे इस
प्रकार किया गया है -
अयोध्य मथुरा माया, काशी कांचि अवंतिका, एताः पुण्यतमाः
प्रोक्ताः पुरीणाम उत्तमोत्तमाः
महर्षि व्यास ने श्री राम कथा का वर्णन उनके द्वारा रचित महाभारत के
वनोपाख्यान खंड मे किया है, अयोध्या सदियों से अयोध्या वासियों द्वारा
बारंबार निर्मित की गयी है, यह अयोध्या वासियोम की जिजीविषा ही है कि
वह इस नगर को अनेकानेक बार पुनर्रचित कर चुके हैं। अलक्षेंद्र
(सिकंदर) के लगभग २०० वर्ष बाद, मौर्य शासन काल के दौरान जब बौद्ध
धर्म अपनी चरम सीमा पर था, एक ग्रीक राजा मेनंदार अयोध्या पर
आक्रमण करनी की नीयत से आया, उसने बुद्ध धर्म द्वारा प्रभावित होने का
ढोंग कर बौद्ध भिक्षु होने का कपट किया और अयोध्या पर धोखे से आक्रमण
किया एवं इस आक्रमण मे जन्मस्थल मंदिर ध्वस्त हुआ, किंतु सिर्फ़ 3
महीने मे शुंग वंशिय राजा द्युमतमतसेन द्वारा मेनंदार पराजित किया गया
और अयोध्या को स्वतंत्र कराया गया।
जन्म स्थान मंदिर की पुनर्रचना राजा विक्रमादित्य ने की, इतिहास मे 6
विक्रमादित्यो का उल्लेख आता है, इस बात पर इतिहासविद एक मत नही है कि
किस विक्रमादित्य ने मंदिर का निर्माण किया। कुछ के अनुसार वो
विक्रमादित्य जिसने शको को सन ५६ ई.पू. मे पराजित किया और जिसके नाम
से शक संवत चलता है, तो कुछ कहते हैं स्कंदगुप्त जो स्वयं को
विक्रमादित्य कहलाता था, उसने 5 वी शताब्दी के अंत मे मंदिर निर्माण
किया। पी. करनेगी की किताब " ए हिस्टॉरिकल स्कैच ऑफ
फ़ैज़ाबाद " मे कही बात साधारणतया सर्वमान्य है। उसमे वो
कहते हैं, विक्रमादित्य के पुरातन शहर ढूँढने का मुख्य सूत्र यह है कि
जहाँ सरयू बहती है और भगवान शंकर का रूप नागेश्वर नाथ मंदिर जहाँ है।
ये भी माना जाता है की विक्रमादित्या ने करीब ३६० मंदिर
अयोध्या मे बनवाए और इसके बाद हिंदुओं द्वारा श्री राम की पूजा निरंतर
चलती रही.. इसकी पुष्टि नासिक स्थित सातवाहन राजा द्वारा
बनाई पुरातन गुफा के शिला लेख मे मिलती है, बहुचर्चित संस्कृत नाटककार
भास ने भगवान राम को अर्चना अवतार मे जोड़ा है।
नमो भगवते त्रैलोक्यकारणाय नारायणाय
ब्रह्मा ते ह्रदयं जगतत्र्यपते रुद्रश्च कोपस्तव
नेत्र चंद्रविकाकरौ सुरपते जिव्हा च ते भारती
सब्रह्मेन्द्रमरुद्रणं त्रिभुवनं सृष्टं त्वयैव प्रभो
सीतेयं जलसम्भवालयरता विश्णुर्भवान ग्रह्यताम
श्री राम को विष्णु अवतार मे पूजा जाने की परंपरा है, जिसका प्रमाण
पुरानी दस्तकारी एवं शिला लेखों मे मिलते हैं। चौथी शताब्दी के रामटेक
मंदिर की दस्तकारी, सन ४२३ ए.डी. का कंधार का शिलालेख, सन ५३३ ए.डी.
का बादामी का चालुक्य शिलालेख, आठवीं शताब्दी (ए.डी) का मामल्लापुरम
का शिलालेख, ११वीं शताब्दी में जोधपुर के नज़दीक बना अंबा माता मंदिर,
११४५ ए.डी. का रेवा जिले के मुकुंदपुर में बना राम मंदिर, ११६८ ए.डी.
का हँसी शिलालेख, रायपुर जिले के राजीम मे बना राजीव लोचन मंदिर इनमे
से कुछ हैं।
१२ शताब्दी में अयोध्या मे पांच मंदिर थे, गौप्रहार घाट का गुप्तारी,
स्वर्गद्वार घाट का चंद्राहरी, चक्रतीर्थ घाट का विष्णुहरी,
स्वर्गद्वार घाट का धर्महरी, और जन्मभूमि स्थान पर विष्णु मंदिर, इसके
बाद जब महमूद ग़ज़नवी ने भारत पर आक्रमण किया तो उसने सोमनाथ को लूटा
और वापस चला गया. किंतु उसका भतीजा सालार मसूद अयोध्या की ओर बढ़ा, १४
जून १०३३ को मसूद अयोध्या से ४० किलोमीटर दूर बहराइच पहुँचा, यहाँ
सुहैल देव के नेतृत्व मे सेना एकत्र हुई और मसूद पर आक्रमण किया दिया,
जिसमे मसूद की सेना परास्त हुई, और मसूद मारा गया. मसूद के चरित्रकार
अब्दुल रहमान चिश्ती मिरात ए मसूदी मे कहते हैं,
" मौत का सामना है, फिराक़ सूरी नज़दीक है, हिंदुओं ने जमाव
किया है, इनका लश्कर बे-इंतेहाँ है. नेपाल से पहाड़ों के नीचे घाघरा तक
फौज मुखालिफ़ का पड़ाव है। मसूद की मौत के बाद अजमेर से मुज़फ्फर ख़ान
तुरंत आया, पर वो भी मारा गया... अरब ईरान के हर घर का चिराग बुझा है।
"
शेष आगे पढ़ें - राम से बाबर तक : अयोध्या एक
यात्रा
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