मेरठ के इतिहास में मंगलवार का दिन प्रशासन की एक बड़ी कामयाबी के रूप में दर्ज हो गया। शहर के लिए वर्षो से नासूर बना हापुड..
पिछ्ले दिनो मुझे गुजरात जाने का अवसर मिला। शहर की चकाचौंध से कौसों दूर ग्रामीणों के मध्य कई दिनों तक उनके साथ रहने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। अभी तक मैंने गुजरात के बारे मे अच्छा – बुरा मात्र मीडिया की माध्यम से ही सुना था परंतु गुजरात की आम-जनता से सम्मुख होने का यह अनुभव मुझे पहली बार प्राप्त हुआ। एक तरफ जहा मीडिया मोदी के जादू के बारे मे अपना आंकलन प्रस्तुत करने की कोशिश करता है तो दूसरी तरफ वह 2002 मे गोधरा मे हुए दंगो से आगे सोच ही नहीं पा रहा। इसी बीच अमेरिका-ब्रिटेन द्वारा मोदी की तरीफ ने मुझे गुजरात देखने को और अधिक बेचैन कर दिया। एक तरफ जहाँ यह सेकुलर बुद्धिजीवी और मीडिया की आड़ में राजनेता अपनी राजनीति की रोटियां सेकने में व्यस्त है तो वही इससे कौंसो दूर गुजरात अपने विकास के दम पर भारत के अन्य राज्यों को दर्पण दिखाते हुए उन्हें गुजरात का अनुकरण करने के लिए मजबूर कर रहा है।
मोदी की जादू के बारे मे वहा के ग्रामीण-समाज से मुझे जानने का अवसर मिला। सडकें अपनी सौन्दर्यता से मेरा ध्यान अपनी ओर बार-बार खींच रही थी। पुवाडवा, चनडवाना, मांगरोल, धोरडो, खावडा, कुरण, धौलावीरा, लखपत, क़ानेर, उमरसर जैसे अनेक गांवो मे खस्ता हालत मे सड़कों को ढूंढने की मैने बहुत कोशिश की पर असफल रहा। लगभग हर गांव को सड़कों से जुडे हुए देखकर मुझे पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी की उस दूरदर्शिता की याद आ गयी जिसे उन्होंने जोर देकर भारत के हर गाँव को सडक से जोड़ने के लिये प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना की शुरुआत की थी।
IBTL Columns
समरस ग्राम पंचायत के बारे मे उनसे पहली बार जानने का मौका मिला। ग्राम पंचायत को और अधिक मजबूत करने के उद्देश्य से नरेन्द्र मोदी द्वारा समरस ग्राम पंचायत की शुरुआत की गयी। समरस ग्राम पंचायत का अर्थ समझाते हुए मुझे उन लोगों ने मुझे बताया कि हमारे यहाँ अन्य राज्यों की भांति सरपंच का चुनाव कोई सरकारी मशीनरी द्वारा न होकर अपितु गाँव के लोग ही मिलकर अपना सरपंच चुन लेते है और ऐसे सभी समरस ग्राम पंचायत को विकास हेतु सरकार अलग से वितीय सहायता देती है। परिणामत: सरपंच के चुनाव हेतु सरकारी खर्च बच जाता है और गाँव के लोगों के मन-मुताबिक उनका मुखिया भी मिल जाता है। कुरण गांव के लोगों ने सोढा प्राग्जि एवं सता जी का उदाहरण भी बताया कि उनके यहाँ मुस्लिम समुदाय की संख्या लगभग 50,000 है और हिन्दु समुदाय की संख्या लगभग 400 ही है परंतु सोढा प्राग्जि एवं सता जी जो कि हिन्दु समुदाय से ही थे उनके निर्णयों की कसमें आज भी लोग खाते है। छोटे-मोटे झगड़ों का निपटारा पंचायत द्वारा गांव मे ही कर दिया जाता है। उन सबकी यह बात सुनकर मुझे मुंशी प्रेमचन्द की कहानी पंच-परमेश्वर एवं गाँधी पंचायत राज की याद आ गयी। वास्तव में अपनी कई खूबियो के चलते गुजरात की पंचायत व्यवस्था देखने लायक है।
वैसे तो कुरण गाँव मे रहने वाले लोग अनुसूचित जाति से सम्बन्धित है परंतु उस गाँव के मन्दिर मे पुरोहित भी अनुसूचित जाति से ही है। इस गाँव का आदर्श उन कुंठित राजनेतओ के मुह पर तमाचा है जो समाज विभेद की राजनीति करते हुए छुआछूत को बढावा देते हुए अपने वोट बैंक की राजनीति करते है। गुजरात के हर गाँव मे एक पानी – संग्रहण की व्यवस्था है जिसका उपयोग सामूहिक रूप से सभी ग्रामीण अपने जानवरों को पानी पिलाने, कपडे धोने, एवं स्नान इत्यादि के लिये करते है। खेती की सिंचाई हेतु सरकार द्वारा कई छोटे-छोटे तालाब बनवाये गये है जिसमें बारिश का पानी संग्रहित किया जाता है। परिणामत: किसानों को सिचाई हेतु भरपूर पानी मिलता है।
इतना ही नही इस गाँव मे ही 8वीं तक का स्कूल है जिससे बच्चों को प्राथमिक पढाई हेतु गाँव से बाहर जाने की नौबत ही नही आती। इस स्कूल मे लड्के – लड्कियो का अनुपात भी बराबर ही है। गाँव के इस स्कूल की खासियत यह है कि यहाँ पर बच्चों को सीधे बायोसेफ प्रोग्राम जो कि जी सी ई आर टी, गांधीनगर द्वारा संचालित होता है से उनका पूरा पाठ्यक्रम पढाया जाता है। इस स्कूल के सभी बच्चों कम्पय़ूटर से न केवल अपने पाठ्यक्रम को पूरा करते है अपितु वे अपनी समस्याएं सीधे इंटरनेट के जरिये जीसीईआटी से भी पूछ सकते है। अध्यापिकाओं की संख्या अध्यापकों की संख्या से अधिक ही है। इस स्कूल के पुस्तकालय की तरफ आप स्वत: ही खींचे चले जाते है।
वैसे तो गाँव के नजदीक ही कोई न कोई कम्पनी लगी है जिससे वहाँ के स्थानीय निवासियों को रोजगार सुलभ है परंतु लोगो का मुख्य व्यवसाय पशु-चारण और दुग्ध – उत्पादन ही है। एक-एक घर में लगभग सेकड़ों गाय है। झुंड के झुंड चरती गायों को देखकर तो मुझे एक बार द्वापर युग और गुप्त-काल की याद आ गयी जहाँ नन्दगाँव मे भगवान श्रीकृष्ण गायों को चराने जाते थे और दूध की नदिया बहती थी। मुझे सबसे आश्चर्य की बात यह लगी कि इन गायों का स्वामी हिन्दू समुदाय से न होकर मुस्लिम समुदाय से थे और वह सभी भी गाय को दूध-उत्पादन के लिये ही पालते है। हिन्दु समुदाय के साथ–साथ उनके लिये भी गाय पूजनीय ही है साथ ही कभी भी वहा गाय का वध नही किया गया। घी से सराबोर रोटी के साथ छाछ अनिवार्यत: मिलेगी। इतना ही नही गाँव के लोगों द्वारा दूध/छाछ सप्ताह मे दो दिन "मुफ्त" में बांटा जाता है। एक बार तो मुझे लगा कि शायद मै किसी सपने में हूँ परंतु यह ग्रामीण गुजरात की वास्तविकता थी। कई-कई दिन घर से बाहर लोग पशुओं को चराते रहते है और एक गाडी पैसे देकर उन पशुओं का सारा दूध इकट्ठा कर यात्रियों के लिये चलने वाली सरकारी बसों की सहायता से शहर में पहुँचा देती है। परिणामत: उन सभी को रोजगार उनके घर पर ही मिल जाता है।
कच्छ के सफेद रण और भगवान द्त्तात्रेय के मन्दिर जहाँ कभी लोग जाने से भी डरते थे परंतु आज दृश्य पूर्णत: बदल चुका है। नरेन्द्र मोदी द्वारा इन स्थानों को पर्यटन का रूप देने से आज देश ही नहीं विदेशों से भी लोग कच्छ के सफेद रण और भगवान द्त्तात्रेय के मन्दिर को देखने आते है। हर वर्ष रणोत्सव मनाया जाता है जिसमे गुजरात के ग्रामोद्योग को बढावा देने हेतु हस्तकला इत्यादि की प्रदर्शनी लागायी जाती है जिसे देखने लाखों की संख्या मे विदेशी सैलानी आते है। परिणामत: वहाँ के ग्रामीण समाज को रोजगार वही उपलब्ध हो जाता है। इतना ही नहीं भुज से लगभग 19 किमी दूर एशिया का सबसे उन्नत केरा नामक एक गाँव है। इनके घर शहर की कोठियो जैसे ही है व इस गाँव के हर परिवार का कोई न कोई सद्स्य एनआरआई है।
महिलाएं देर रात तक बिना किसी भय के शहर / गाँव व नदियों / झीलों के सौन्दर्य घाटों पर घूमती है। अहमदाबाद का चिडियाघर सौन्दर्यता का एक विशिष्ट उदाहरण है। कानून – व्यवस्था के बारे मे गुजरात के कुछ पुलिसवालों से बात करके पता चला कि उन्हें अपवाद स्वरूप ही महीने में किसी झगड़े इत्यादि में जाना पड्ता है और तो और ग्रामीण गुजरात मे मुझे कही भी हिन्दु-मुस्लिम समुदाय के बीच किसी भी प्रकार की विभाजन की रेखा देखने को नहीं मिली जैसा कि बारबार मीडिया द्वारा दिखाया जाता है। इतना ही नहीं एक आंकड़े के अनुसार गुजरात में मुसलमानों की स्थिति अन्य राज्यों से कही अधिक बेहतर है। ध्यान देने योग्य है कि भारत के अन्य राज्यों की अपेक्षा गुजरात के मुसलमानों की प्रतिव्यक्ति आय सबसे अधिक है और सरकारी नौकरियों में भी गुजरात - मुसलमानों का प्रतिशत अन्य राज्यों की तुलना मे अव्वल नंबर पर है और तो और एक बार तो पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम ने भी भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद के 84वें स्थापना दिवस के मौके पर गुजरात के कृषि विकास को देखते हुए यहाँ तक कहा था कि जलस्तर में गिरावट, अनियमित बारिश और सूखे जैसे समस्याओं के बावजूद गुजरात 9 प्रतिशत की अभूतपूर्व कृषि विकास दर के माध्यम से भारत के अन्य राज्यों पर अपना परचम लहरा है जबकि भारत की कुल कृषि विकास दर मात्र 3 प्रतिशत है। विश्व प्रसिद्द ब्रोकरेज मार्केट सीएलएसए ने गुजरात के विकास विशेषकर इन्फ्रास्ट्रक्चर, ऑटोमोबाइल उद्योग तथा डीएमईसी प्रोजेक्ट की सराहना करते हुए यहाँ तक कहा कि नरेंद्र मोदी गुजरात का विकास एक सीईओ की तरह काम कर रहे है। यह कोई नरेंद्र मोदी को पहली बार सराहना नहीं मिली इससे पहले भी अमेरिकी कांग्रेस की थिंक टैंक ने उन्हें 'किंग्स ऑफ गवर्नेंस' जैसे अलंकारो से अलंकृत किया। नरेंद्र मोदी को टाइम पत्रिका के कवर पेज पर जगह मिलने से लेकर ब्रूकिंग्स के विलियम एन्थोलिस, अम्बानी बंधुओ और रत्न टाटा जैसो उद्योगपतियों तक ने एक सुर में सराहना की है।
नरेंद्र मोदी की प्रशासक कुशलता के चलते फाईनेंशियल टाइम्स ने हाल ही में लिखा था कि देश के युवाओं के लिए नरेंद्र मोदी प्रेरणा स्रोत बन चुके है। पाटण जिले के एक छोटे से चार्णका गाँव में सौर ऊर्जा प्लांट लगने से नौ हजार करोड़ का निवेश मिलने से वहाँ के लोगों का जीवन स्तर ऊपर उठ गया। ध्यान देने योग्य है कि अप्रैल महीने में नरेंद्र मोदी ने अमेरिकी काउंसिल जनरल पीटर तथा एशियाई विकास बैंक के अधिकारियों की मौजूदगी में एशिया के सबसे बड़े सौर ऊर्जा पार्क का उद्घाटन किया था जिससे सौर ऊर्जा प्लांट से 605 मेगावाट बिजली का उत्पादन किया जा सकेगा जबकि शेष भारत का यह आंकड़ा अभी तक मात्र दो सौ मेगावाट तक ही पहुंच पाया है । भले ही कुछ लोग गुजरात का विकास नकार कर अपनी जीविका चलाये पर यह एक सच्चाई है कि गुजरात की कुल मिलाकर 11 पंचवर्षीय योजनाओं का बजट भारत की 12वीं पंचवर्षीय योजना के बजट के लगभग समकक्ष है।
गुजरात के सरदार बल्लभ भाई पटेल को स्वतंत्र भारत का प्रधानमंत्री न बनाकर इतिहास में एक पाप किया गया जिसकी सजा पूरा देश आज तक भुगत रहा है परंतु वर्तमान समय मे अब ऐसा कोई पाप न हो यह सुनिश्चित करना होगा। नरेन्द्र मोदी जो कि संघ के प्रचारक रहे है परिणामत: उन्हें समाज के बीमारी की पहचान होने के साथ-साथ उन्हे उसकी दवा भी पता है। अत: अपनी इसी दूरदर्शिता और नेतृत्व क्षमता के चलते आज भारत ही नहीं विश्व भी नरेंद्र मोदी को भारत का भावी प्रधानमंत्री के रूप में देखता है जिसकी पुष्टि एबीपी नील्सन, सीएनएन-आईबीएन और इण्डिया टुडे तक सभी के सर्वेक्षण करते है और तो और नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता का अनुमान कई सोशल साइटो पर भी देखा जा सकता है।
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