ज्ञान ही शक्ति है। इसलिए ज्ञान का उद्देश्य "सभी का समान रूप से लाभ" होना चाहिए। लेकिन अगर ज्ञान किसी के अहंकार..
भारत इस समय किसी बड़ी संभावित साम्प्रदायिक-घटना रूपी ज्वालामुखी के मुहाने पर खड़ा हुआ प्रतीत हो रहा है। देश की एकता-अखंडता खतरे में पड़ती हुई नजर आ रही है। देश की संसद में भी आतंरिक सुरक्षा को लेकर तथा सरकार की विश्वसनीयता और उसकी कार्यप्रणाली पर प्रश्नचिंह खड़े किये जा रहे है। सांसदों की चीख-पुकार से सरकार की अब जाकर नीद खुली है। सरकार ने आनन्-फानन में देश में मचे अब तक के तांडव को पाकिस्तान की करतूत बताकर अपना पल्ला झड़ने की कोशिश करते हुए दोषियों के खिलाफ कार्यवाही करने के नाम पर भारत के गृहमंत्री ने पाकिस्तान के गृहमंत्री से रविवार को बात कर एक रस्म अदायगी मात्र कर दी और प्रति उत्तर में पाकिस्तान ने अपना पल्ला झाड़ते हुए भारत को आरोप-प्रत्यारोप का खेल खेलना बंद करने की नसीहत देते हुए यहाँ तक कह दिया कि भारत के लिए सही यह होगा कि वह अपने आंतरिक मुद्दों पर पर ध्यान दे और उन पर काबू पाने की कोशिश करे।
अब सरकार लाख तर्क दे ले कि इन घटनाओ के पीछे पाकिस्तान का हाथ है, परन्तु सरकार द्वारा समय पर त्वरित कार्यवाही न करने के कारण जनता उनके इन तर्कों से संतुष्ट नहीं हो रही है इसलिए अब प्रश्न चिन्ह सरकार की नियत पर खड़ा हो गया है क्योंकि असम में 20 जुलाईं से शुरू हुईं सांप्रादायिक हिंसा जिसमे समय रहते तरुण गोगोईं सरकार ने कोई बचाव-कदम नहीं उठाए मात्र अपनी राजनैतिक नफ़ा-नुक्सान के हिसाब-किताब में ही लगी रही। परिणामतः वहां भयंकर नर-संहार हुआ और वहा के लाखो स्थानीय निवासियों ने अपना घर-बार छोड़कर राहत शिवरों में रहने के लिए मजबूर हो गए।
असम के विषय में यह बात जग-जाहिर है कि असम और बंग्लादेश के मध्य की 270 किलोमीटर लम्बी सीमा में से लगभग 50 किलोमीटर तक की सीमा बिलकुल खुली है जहा से अवैध घुसपैठ होती है और इन्ही अवैध घुसपैठों के चलते लम्बे समय से वहा की स्थानीय जनसंख्या का अनुपात लगातार नीचे गिरता जा रहा है। यह भी सर्वविदित है कि असम में हुई हिंसा हिन्दू बनाम मुस्लिम न होकर भारतीय बनाम बंग्लादेशी घुसपैठ का है। जिसकी आवाज़ कुछ दिन पहले भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी ने भी बुलंद की थी और यह सरकार से मांग की थी कि असम से पलायन कर गए लोगों की स्थिति कश्मीरी पंडितों जैसी नहीं होनी चाहिए। ध्यान देने योग्य है कि 1985 में तत्कालीन प्राधानमंत्री राजीव गांधी के समय असम में यह समझौता हुआ था कि बंगलादेशी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें वापस भेजा जाय परन्तु इस विषय के राजनीतिकरण के चलते दुर्भाग्य से इस समझौते के प्रावधानों को कभी भी गम्भीरता से लागू नहीं किया गया। परिणामतः असम में 20 जुलाईं से उठी चिंगारी ने आज पूरे देश को अपनी चपेट में लिया है।
दक्षिण भारत के दो प्रमुख राज्यों आंध्र प्रदेश और कर्नाटक के साथ-साथ महाराष्ट्र से उत्तर-पूर्व के हजारो छात्रों का वहा से पलायन हो रहा है और अब यह सिलसिला भारत के दूसरो शहरो में भी शुरू हो जायेगा इस संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है। प्रधानमंत्री संसद में यह लाख तर्क देते रहे कि हर देशवासी की तरह पूर्वोत्तर के लोगों को देश के किसी भी भाग में रहने, पढ़ाईं करने और जीविकोपार्जन करने का अधिकार है। पर सच्चाई उनके इस तर्क से अब कोसों दूर हो चुकी है। देश की जनता को उनके तर्क पर अब विश्वास नहीं हो रहा है। सरकार के सामने अब मूल समस्या यही है कि वो जनता को विश्वास कैसे दिलाये।
IBTL Columns
मुम्बई में बने शहीदों के स्मारकों को तोडा गया, मीडिया की गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया। पुलिस पर हमला किया गया जिसमे गंभीर रूप से घायल हो गए। इतना ही नहीं यह आग रांची, बैंगलोर जैसे अनेक शहरों तक जा पहुची यहाँ तक की उत्तर प्रदेश के लखनऊ, इलाहाबाद जैसे कई शहर भी इस आग में झुलस गए परिणामतः प्रशासन द्वारा वहा कर्फ्यू लगा दिया गया। असल में अब समस्या यह है नहीं किस राज्य में किस समुदाय द्वारा सांप्रदायिक-हिंसा की जा रही है अथवा उन्हें ऐसा करने के लिए कौन उकसा रहा है जिससे उन्हें ऐसा करने का बढ़ावा मिल रहा है अपितु अब देश के सम्मुख विचारणीय प्रश्न यह है कि इतिहास अपने को दोहराना चाह रहा है क्या?
सरकार भारत-विभाजन जैसी वीभत्स त्रासदी वाले इतिहास से सबक क्यों नहीं ले रही है? क्या सरकार खिलाफत-आन्दोलन और अलास्का की घटना की प्रतिक्रिया स्वरुप भारत में हुई साम्प्रदयिक-घटना जैसी किसी बड़ी घटना का इंतज़ार कर रही है? यह बात सरकार को ध्यान रखनी चाहिए कि जो देश अपने इतिहास से सबक नहीं लिया करता उसका भूगोल बदल जाया करता है इस बात का प्रमाण भारत का इतिहास है। एक समुदाय द्वारा देश में मचाये जा रहे उत्पात पर निष्पक्ष कही जाने वाली मीडिया की अनदेखी और सरकार की चुप्पी से भारत के बहुसंख्यको में अभी काफी मौन-रोष पनप रहा है इस बात का सरकार और मीडिया को ध्यान रखना चाहिए और समय रहते इस समस्या को नियंत्रण में करने हेतु त्वरित कार्यवाही करना चाहिए।
# आखिर ये दंगे होते ही क्यों हैं : क्या कहते है आंकड़े
# स्वतंत्रता दिवस विशेष... सावरकर आज भी हैं!
यह एक कटु सत्य है कि विभिन्न समुदायों के बीच शांति एवं सौहार्द स्थापित करने की राह में सांप्रदायिक दंगे एक बहुत बड़ा रोड़ा बन कर उभरते है और साथ ही मानवता पर ऐसा गहरा घाव छोड़ जाते है जिससे उबरने में मानव को कई-कई वर्ष तक लग जाते है। ऐसे में समुदायों के बीच उत्पन्न तनावग्रस्त स्थिति में किसी भी देश की प्रगति कदापि संभव नहीं है। आम-जन को भी देश की एकता – अखंडता और पारस्परिक सौहार्द बनाये रखने के लिए ऐसी सभी देशद्रोही ताकतों को बढ़ावा न देकर अपनी सहनशीलता और धैर्य का परिचय देश के विकास में अपना सहयोग करना चाहिए। आज समुदायों के बीच गलत विभाजन रेखा विकसित की जा रही है। विदेशी ताकतों की रूचि के कारण स्थिति और बिगड़ती जा रही है जो भारत की एकता को बनाये रखने में बाधक है। अतः अब समय आ गया है देश भविष्य में ऐसी सांप्रदायिक घटनाये न घटे इसके लिए जनता स्वयं प्रतिबद्ध हो।
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